कुप्रियानफ़ विचिस्लाव ग्लेबाविच
“विचिस्लाव कुप्रियानफ़ का जन्म 1939 में नवासिबीर्स्क नगर में हुआ। 1958 से 1960 तक वे लेनिनग्राद के उच्च नौसेना कालेज में हथियार इंजीनियरिंग की शिक्षा लेते रहे। फिर 1967 में उन्होंने मास्को विदेशी भाषा संस्थान के अनुवाद संकाय से एम.ए. किया। लम्बे समय तक वे 'ख़ुदोझेस्तविन्नया लितरातूरा' (ललित साहित्य) प्रकाशन गृह के लिए अनुवाद और सम्पादन का कार्य करते रहे। फिर सोवियत लेखक संघ में कार्यरत रहे। इसके अलावा राष्ट्रीय किशोर पुस्तकालय द्वारा आयोजित 'लाल परचम' साहित्य सभा के संयोजक रहे।
विचिस्लाव कुप्रियानफ़ ने छात्र जीवन में ही अनुवाद करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले उन्होंने रेनर मारिया रिल्के की कविताओं का मूल जर्मन से रूसी में अनुवाद किया। इसके अलावा सीधे जर्मन, अंग्रेज़ी, फ़्रांसिसी और स्पानी भाषाओं से 'ललित साहित्य' प्रकाशन गृह के लिए उन्होंने दर्जनों कवियों की ढेरों पुस्तकों के अनुवाद किए। इसके अलावा अरमेनियाई, लातवियाई, लिथुआनियाई तथा एस्तोनियाई लेखकों की रचनाओं का भी रूसी में अनुवाद
किया ।
1961 में कुप्रियानफ़ की कविताएँ पहली बार प्रकाशित हुईं। 1970 से वे गद्य भी लिखने लगे। 1981 में उनका पहला कविता-संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था- 'सीधे-सीधे'। आलोचकों ने बड़े जोश से इस क़िताब का स्वागत किया। जल्दी ही सभी यूरोपीय भाषाओं में इनकी कविताओं के अनुवाद छपने लगे। हिन्दी की पत्रिकाओं में सबसे पहले 1984-85 में अनिल जनविजय ने और फिर 1990 के आसपास वरयाम सिंह ने कुप्रियानफ़ की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित कराए। श्रीलंका में इनकी कविताओं की एक पुस्तक तमिल भाषा में प्रकाशित हो चुकी है। अब तक तीस से ज़्यादा भाषाओं में कुप्रियानफ़ की कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। विचिस्लाव कुप्रियानफ़ को रूसी आलोचक रूस में छ्न्द रहित नई कविता का प्रवर्तक मानते हैं।" विचिस्लाव कुप्रियानफ़ के विषय में यह टिप्पणी और उनकी दस कविताओं का हिंदी अनुवाद “सेतु साहित्य” के लिए हिंदी के जाने-माने लेखक, कवि और अनुवादक अनिल जनविजय से हमें प्राप्त हुआ है।
दस रूसी कविताएं -विचिस्लाव कुप्रियानफ़
प्रस्तुति व हिंदी अनुवाद : अनिल जनविजय
1. साँप
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9lfHabIOjXMk_ZGQsy5QBBpnf1F0B8x28EvP-yvE5c0TEjFkQiEv92Tq2S_XXGPDqPVNGFMr-rm3YoecIXISZ6GBvJxxhBaSME2PWQ8UzaDKA2QgeEg-TGBmshFr1UY39As-UX5uxtCQ1/s200/earth11_1024_768.jpg)
अन्त नहीं है उसका
कि ठहर जाए कहीं
और पंख नहीं हैं
कि उड़ जाए
धीरे-धीरे सरकता है वह
छाती से छाती पर
००
2. अमरीका
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZ375HDz0lxlcR-BWXDSXGo3k4Ch0GUFDeFB59UeqhlfMZOM4s5xbti-emNR-JDpeQqJ4O6GdiQ2aDoLciRfrfbPbBKsnF4W-0vpOng-cdb1wX6mqg8e4QTlWGaRDrbMY6s763b7Gucg8O/s200/Image(49).jpg)
सागर के उस किनारे पर
रहने वाले
कुछ अदृश्य लोग
शोर कर रहे हैं
बहुत ज़्यादा
००
3. तुम
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgk47ZspUAjUtpCV2MEOM1-dECbSWhlF6_yFYdnyNup_jGFRXrahhERcD3Zd0t1V_A9SdFS_Gi0xrub5u2zqcgYM85HqMKSWD7dLLyeLz1e9uNCofqEw5M19f17eahxD3sBQDXLWgHtaqje/s200/6614082-sm.jpg)
तुम जब गुज़रती हो पास से
तुम्हारे कन्धे पर होती है चिड़िया
या तितली
या फिर कोई सितारा
या बोझ
तुम्हारे इन ख़ूबसूरत कंधों को
छू सकता है अपनी हथेलियों से
सिर्फ़ तुम्हारा पति
या प्रेमी
बाक़ी दूसरे लोग
बस देख सकते हैं इन्हें
या सुन सकते हैं इनके बारे में
उन लोगों से
जो गुज़र चुके हैं कभी
तुम्हारे निकट से
००
4. ख़ून का रिश्ता
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHNMsITpZiJjAtU67e1YoqoJ5bIaFevZFG_Oip7f9I9dSIYyW9g88viPRCaRufo4Uj-GXnaBOybk_Qv_wLH6XEvg69h829kVvPc-GJdWJ75OaX9KHkkYAxVg9C0PgYBW2x-vljMMg9sue-/s200/Tree13.jpg)
मैं कुछ देखना नहीं चाहता
मैं कुछ सुनना भी नहीं चाहता
और कुछ कहूंगा भी नहीं
होंठ काटता हूँ अपने
महसूस करता हूँ
ख़ून का स्वाद
आँखें बन्द करता हूँ
देखता हूँ रंग
ख़ून का
कान बन्द करता हूँ
सुनता हूँ ख़ून की आवाज़
नहीं, सम्भव नहीं है
ख़ुद में ही सिमट जाना
और तोड़ लेना इस दुनिया से
ख़ून का नाता
सिर्फ़ एक ही रास्ता है
हमेशा हम
बोलते और सुनते रहें
सुनते और बोलते रहें
शब्द बसे हैं हर किसी के ख़ून में
5. गायन-पाठ (एक)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2I1EZ-JHV4S9he6Ap0oxR5SaH62yD2cYT0x9B9IxLoClCRWIaLZzyi1DhJHJipEL-AJbt9U0VH64b6npvKMh9F1Y2sF801RF9Wbw8UhFOUYGjPZPddmcODZUcIYjJA4igEJmw4FjSp6Z5/s200/6612011-sm.jpg)
आदमी ने ईजाद किया पिंजरा
पंखों से पहले
और अब पिंजरों में गाते हैं पंख
गीत स्वतन्त्र उड़ान का
जबकि पिंजरों के सामने
गाते हैं पंखहीन
पिंजरों के न्याय के गीत
पक्षी और पिंजरा
गा सकते हैं एक साथ
लेकिन उड़ नहीं सकते
उड़ सकते हैं एक साथ
सिर्फ़ पंख और आकाश ही
००
6. गायन-पाठ (दो)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio54ac5N3ZWklJZny8_jM1vXMiS21gI0RMOjmsgK2zG56_JxhXbc41kNMKLusJYv8zZhmTSdVRhetCyhFwGkwg-BcIQXzttjRrywUD-mq7qaxJwIQKhgKNAcEEmC8Bqi5Xj1kQsQvy2-ET/s200/Untitled26.jpg)
पक्षी गा रहे हैं
हम लोगों से डरते हैं
और हम गाते हैं
डर के मारे
मछलियाँ गा रही हैं
हम लोगों से डरती हैं
और हम चुप हैं
डर के मारे
जानवर गा रहे हैं
हम लोगों से डरते हैं
और हम गुर्रा रहे हैं
डर के मारे
लोग गा रहे हैं
हम जानवर नहीं हैं
डरिए नहीं
पर भाग गए सब
उड़ गए इधर-उधर
तैर गए इधर-उधर
डर के मारे
और लोग गा रहे हैं
००
7. पुरूष का हाथ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQvYsQFDXSxqc2uky3ey1M_g89vrEKR6A2KMpEsma9-u-jLQk2dFtU7elYU79yqp11xzfZYXGK2BiNMyRraEWMgCJqFTN1zIdC8u2QR9O90Kn57Kp8-_drjZOCdc2_-oGAR3LdT3oWyPQm/s200/4127682369.jpg)
पुरूष का हाथ
स्त्री और बच्चे की हथेलियाँ थाम
उठता है पक्ष में या विरोध में
और विरोध में ठहरकर
निर्माण करता है
क़िताबों के पन्ने पलटता है
सहारा देता है स्वप्नरहित सिर को
फिर ढूंढता है दूसरी हथेली
सम्बन्ध के लिए
००
8. दम्भ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5iINlCA7P5ecE8sT0eru4e-Q9AYLSA7XTAGVFcxSpWGJc1PyoeNTg57VuoO7Kyq5D7xDCkIP8n1OMtzgwrXVZ8K-F6KXCuKgOUYUhDwpw2MMsQVs1UkP3clEfpasoJEEeCeHDlHJ9REXr/s200/six.gif)
हर रात मृतक
उठ खड़ा होता है कब्र से
और छू कर देखता है कब्र का पत्थर
कहीं किसी ने
मिटा तो नहीं दिया
पत्थर पर से उसका नाम
००
9. सफ़ेद लबादा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuIoE4pe6GMH5aVewTLuxpSAtadrRALGDGluGFMB_y4Vrm3-vbVRGCfWz5Cs1g9sqHKl575_plST_PmracJs92YX3Ho3By5OZG_e3t_LB5dV7ltDKPUQ8_AwgGv_PpRrcKOiir3-YPPQXo/s200/slonecznik.jpg)
कवि को दीजिए सफ़ेद लबादा
छद्म आवरण
जब आक्रमण करती है बर्फ़ीली ठंड
गुप्त टोही है वह
शत्रु की ख़बर लाता है
देता है आशा की गुनगुनी गरमाहट
फूलों की गुप्त भाषा में
कवि को दीजिए सफ़ेद लबादा
वह उपचारक है, चिकित्सक है, विरला विशेषज्ञ है
आत्मा का रक्षक है
अकेला ठीक कर सकता है जो
मानव के टूटे हुए पंख
यह वायदा करने की
जल्दी मत कीजिए
कि आप उसे देंगे ईनाम
कवि को दीजिए सफ़ेद लबादा
उसका श्रम
मांगता है सफ़ाई
००
10. समय की आत्मकथा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFRX7dCkP2yf3WZgmHhyphenhyphenndmVtbm9ppel93yFhYARfnivxxcgoHFz89IiYtU58X55moZJ4U6f0yY6CmyWcCcpvJVhMSCXDIqnngaG-hGkzOXQ7DOZR3LktwNDBaZsfM0IiGHj3T2YKNs6U5/s200/3386114077.jpg)
मेरे बारे में हमेशा कहा जाता है कि
मैं नहीं हूँ
पर मैं चलता रहता हूँ हमेशा
मैं उनकी प्रतीक्षा नहीं करता
जो मुझे ढूंढ नहीं पाते
उनके पास से दूर चला जाता हूँ
जो चाहते हैं मुझे मूर्ख बनाना
ठहर जाता हूँ मैं उनके पास
जिनके पास महसूस करता हूँ अपनापन
जिनके प्यार भरे दिल में जगह है मेरे लिए
और मेरी सुइयों की कद्र है
आख़िर
मेरी पहुँच में है
सब कुछ
००
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_rJ7u9GIFMSTheK0cpUriUxcDS8EEj_BF6hq2mfIwd6PFlC7KbpAFv33ESL_KVue_asl0DYUdSMat-qXGtIXNtJ6_A4qD6MJFep9wfOYD5fJUfYOvQ3rt5tVE5UGgG-y1ayZDQV1USJEw/s200/anil_janvijay.jpg)
“विचिस्लाव कुप्रियानफ़ का जन्म 1939 में नवासिबीर्स्क नगर में हुआ। 1958 से 1960 तक वे लेनिनग्राद के उच्च नौसेना कालेज में हथियार इंजीनियरिंग की शिक्षा लेते रहे। फिर 1967 में उन्होंने मास्को विदेशी भाषा संस्थान के अनुवाद संकाय से एम.ए. किया। लम्बे समय तक वे 'ख़ुदोझेस्तविन्नया लितरातूरा' (ललित साहित्य) प्रकाशन गृह के लिए अनुवाद और सम्पादन का कार्य करते रहे। फिर सोवियत लेखक संघ में कार्यरत रहे। इसके अलावा राष्ट्रीय किशोर पुस्तकालय द्वारा आयोजित 'लाल परचम' साहित्य सभा के संयोजक रहे।
विचिस्लाव कुप्रियानफ़ ने छात्र जीवन में ही अनुवाद करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले उन्होंने रेनर मारिया रिल्के की कविताओं का मूल जर्मन से रूसी में अनुवाद किया। इसके अलावा सीधे जर्मन, अंग्रेज़ी, फ़्रांसिसी और स्पानी भाषाओं से 'ललित साहित्य' प्रकाशन गृह के लिए उन्होंने दर्जनों कवियों की ढेरों पुस्तकों के अनुवाद किए। इसके अलावा अरमेनियाई, लातवियाई, लिथुआनियाई तथा एस्तोनियाई लेखकों की रचनाओं का भी रूसी में अनुवाद
किया ।
1961 में कुप्रियानफ़ की कविताएँ पहली बार प्रकाशित हुईं। 1970 से वे गद्य भी लिखने लगे। 1981 में उनका पहला कविता-संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका शीर्षक था- 'सीधे-सीधे'। आलोचकों ने बड़े जोश से इस क़िताब का स्वागत किया। जल्दी ही सभी यूरोपीय भाषाओं में इनकी कविताओं के अनुवाद छपने लगे। हिन्दी की पत्रिकाओं में सबसे पहले 1984-85 में अनिल जनविजय ने और फिर 1990 के आसपास वरयाम सिंह ने कुप्रियानफ़ की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित कराए। श्रीलंका में इनकी कविताओं की एक पुस्तक तमिल भाषा में प्रकाशित हो चुकी है। अब तक तीस से ज़्यादा भाषाओं में कुप्रियानफ़ की कविताएँ प्रकाशित हुई हैं। विचिस्लाव कुप्रियानफ़ को रूसी आलोचक रूस में छ्न्द रहित नई कविता का प्रवर्तक मानते हैं।" विचिस्लाव कुप्रियानफ़ के विषय में यह टिप्पणी और उनकी दस कविताओं का हिंदी अनुवाद “सेतु साहित्य” के लिए हिंदी के जाने-माने लेखक, कवि और अनुवादक अनिल जनविजय से हमें प्राप्त हुआ है।
दस रूसी कविताएं -विचिस्लाव कुप्रियानफ़
प्रस्तुति व हिंदी अनुवाद : अनिल जनविजय
1. साँप
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi9lfHabIOjXMk_ZGQsy5QBBpnf1F0B8x28EvP-yvE5c0TEjFkQiEv92Tq2S_XXGPDqPVNGFMr-rm3YoecIXISZ6GBvJxxhBaSME2PWQ8UzaDKA2QgeEg-TGBmshFr1UY39As-UX5uxtCQ1/s200/earth11_1024_768.jpg)
अन्त नहीं है उसका
कि ठहर जाए कहीं
और पंख नहीं हैं
कि उड़ जाए
धीरे-धीरे सरकता है वह
छाती से छाती पर
००
2. अमरीका
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZ375HDz0lxlcR-BWXDSXGo3k4Ch0GUFDeFB59UeqhlfMZOM4s5xbti-emNR-JDpeQqJ4O6GdiQ2aDoLciRfrfbPbBKsnF4W-0vpOng-cdb1wX6mqg8e4QTlWGaRDrbMY6s763b7Gucg8O/s200/Image(49).jpg)
सागर के उस किनारे पर
रहने वाले
कुछ अदृश्य लोग
शोर कर रहे हैं
बहुत ज़्यादा
००
3. तुम
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgk47ZspUAjUtpCV2MEOM1-dECbSWhlF6_yFYdnyNup_jGFRXrahhERcD3Zd0t1V_A9SdFS_Gi0xrub5u2zqcgYM85HqMKSWD7dLLyeLz1e9uNCofqEw5M19f17eahxD3sBQDXLWgHtaqje/s200/6614082-sm.jpg)
तुम जब गुज़रती हो पास से
तुम्हारे कन्धे पर होती है चिड़िया
या तितली
या फिर कोई सितारा
या बोझ
तुम्हारे इन ख़ूबसूरत कंधों को
छू सकता है अपनी हथेलियों से
सिर्फ़ तुम्हारा पति
या प्रेमी
बाक़ी दूसरे लोग
बस देख सकते हैं इन्हें
या सुन सकते हैं इनके बारे में
उन लोगों से
जो गुज़र चुके हैं कभी
तुम्हारे निकट से
००
4. ख़ून का रिश्ता
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgHNMsITpZiJjAtU67e1YoqoJ5bIaFevZFG_Oip7f9I9dSIYyW9g88viPRCaRufo4Uj-GXnaBOybk_Qv_wLH6XEvg69h829kVvPc-GJdWJ75OaX9KHkkYAxVg9C0PgYBW2x-vljMMg9sue-/s200/Tree13.jpg)
मैं कुछ देखना नहीं चाहता
मैं कुछ सुनना भी नहीं चाहता
और कुछ कहूंगा भी नहीं
होंठ काटता हूँ अपने
महसूस करता हूँ
ख़ून का स्वाद
आँखें बन्द करता हूँ
देखता हूँ रंग
ख़ून का
कान बन्द करता हूँ
सुनता हूँ ख़ून की आवाज़
नहीं, सम्भव नहीं है
ख़ुद में ही सिमट जाना
और तोड़ लेना इस दुनिया से
ख़ून का नाता
सिर्फ़ एक ही रास्ता है
हमेशा हम
बोलते और सुनते रहें
सुनते और बोलते रहें
शब्द बसे हैं हर किसी के ख़ून में
5. गायन-पाठ (एक)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj2I1EZ-JHV4S9he6Ap0oxR5SaH62yD2cYT0x9B9IxLoClCRWIaLZzyi1DhJHJipEL-AJbt9U0VH64b6npvKMh9F1Y2sF801RF9Wbw8UhFOUYGjPZPddmcODZUcIYjJA4igEJmw4FjSp6Z5/s200/6612011-sm.jpg)
आदमी ने ईजाद किया पिंजरा
पंखों से पहले
और अब पिंजरों में गाते हैं पंख
गीत स्वतन्त्र उड़ान का
जबकि पिंजरों के सामने
गाते हैं पंखहीन
पिंजरों के न्याय के गीत
पक्षी और पिंजरा
गा सकते हैं एक साथ
लेकिन उड़ नहीं सकते
उड़ सकते हैं एक साथ
सिर्फ़ पंख और आकाश ही
००
6. गायन-पाठ (दो)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEio54ac5N3ZWklJZny8_jM1vXMiS21gI0RMOjmsgK2zG56_JxhXbc41kNMKLusJYv8zZhmTSdVRhetCyhFwGkwg-BcIQXzttjRrywUD-mq7qaxJwIQKhgKNAcEEmC8Bqi5Xj1kQsQvy2-ET/s200/Untitled26.jpg)
पक्षी गा रहे हैं
हम लोगों से डरते हैं
और हम गाते हैं
डर के मारे
मछलियाँ गा रही हैं
हम लोगों से डरती हैं
और हम चुप हैं
डर के मारे
जानवर गा रहे हैं
हम लोगों से डरते हैं
और हम गुर्रा रहे हैं
डर के मारे
लोग गा रहे हैं
हम जानवर नहीं हैं
डरिए नहीं
पर भाग गए सब
उड़ गए इधर-उधर
तैर गए इधर-उधर
डर के मारे
और लोग गा रहे हैं
००
7. पुरूष का हाथ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQvYsQFDXSxqc2uky3ey1M_g89vrEKR6A2KMpEsma9-u-jLQk2dFtU7elYU79yqp11xzfZYXGK2BiNMyRraEWMgCJqFTN1zIdC8u2QR9O90Kn57Kp8-_drjZOCdc2_-oGAR3LdT3oWyPQm/s200/4127682369.jpg)
पुरूष का हाथ
स्त्री और बच्चे की हथेलियाँ थाम
उठता है पक्ष में या विरोध में
और विरोध में ठहरकर
निर्माण करता है
क़िताबों के पन्ने पलटता है
सहारा देता है स्वप्नरहित सिर को
फिर ढूंढता है दूसरी हथेली
सम्बन्ध के लिए
००
8. दम्भ
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi5iINlCA7P5ecE8sT0eru4e-Q9AYLSA7XTAGVFcxSpWGJc1PyoeNTg57VuoO7Kyq5D7xDCkIP8n1OMtzgwrXVZ8K-F6KXCuKgOUYUhDwpw2MMsQVs1UkP3clEfpasoJEEeCeHDlHJ9REXr/s200/six.gif)
हर रात मृतक
उठ खड़ा होता है कब्र से
और छू कर देखता है कब्र का पत्थर
कहीं किसी ने
मिटा तो नहीं दिया
पत्थर पर से उसका नाम
००
9. सफ़ेद लबादा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjuIoE4pe6GMH5aVewTLuxpSAtadrRALGDGluGFMB_y4Vrm3-vbVRGCfWz5Cs1g9sqHKl575_plST_PmracJs92YX3Ho3By5OZG_e3t_LB5dV7ltDKPUQ8_AwgGv_PpRrcKOiir3-YPPQXo/s200/slonecznik.jpg)
कवि को दीजिए सफ़ेद लबादा
छद्म आवरण
जब आक्रमण करती है बर्फ़ीली ठंड
गुप्त टोही है वह
शत्रु की ख़बर लाता है
देता है आशा की गुनगुनी गरमाहट
फूलों की गुप्त भाषा में
कवि को दीजिए सफ़ेद लबादा
वह उपचारक है, चिकित्सक है, विरला विशेषज्ञ है
आत्मा का रक्षक है
अकेला ठीक कर सकता है जो
मानव के टूटे हुए पंख
यह वायदा करने की
जल्दी मत कीजिए
कि आप उसे देंगे ईनाम
कवि को दीजिए सफ़ेद लबादा
उसका श्रम
मांगता है सफ़ाई
००
10. समय की आत्मकथा
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiFRX7dCkP2yf3WZgmHhyphenhyphenndmVtbm9ppel93yFhYARfnivxxcgoHFz89IiYtU58X55moZJ4U6f0yY6CmyWcCcpvJVhMSCXDIqnngaG-hGkzOXQ7DOZR3LktwNDBaZsfM0IiGHj3T2YKNs6U5/s200/3386114077.jpg)
मेरे बारे में हमेशा कहा जाता है कि
मैं नहीं हूँ
पर मैं चलता रहता हूँ हमेशा
मैं उनकी प्रतीक्षा नहीं करता
जो मुझे ढूंढ नहीं पाते
उनके पास से दूर चला जाता हूँ
जो चाहते हैं मुझे मूर्ख बनाना
ठहर जाता हूँ मैं उनके पास
जिनके पास महसूस करता हूँ अपनापन
जिनके प्यार भरे दिल में जगह है मेरे लिए
और मेरी सुइयों की कद्र है
आख़िर
मेरी पहुँच में है
सब कुछ
००
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh_rJ7u9GIFMSTheK0cpUriUxcDS8EEj_BF6hq2mfIwd6PFlC7KbpAFv33ESL_KVue_asl0DYUdSMat-qXGtIXNtJ6_A4qD6MJFep9wfOYD5fJUfYOvQ3rt5tVE5UGgG-y1ayZDQV1USJEw/s200/anil_janvijay.jpg)
अनुवादक संपर्क :
अनिल जनविजय
मास्को विश्वविद्यालय, मास्को
ई मेल : aniljanvijay@gmail.com
अनिल जनविजय
मास्को विश्वविद्यालय, मास्को
ई मेल : aniljanvijay@gmail.com