शुक्रवार, 19 मार्च 2010

अनूदित साहित्य


पंजाबी कविता


वह कहती
तरसेम
मूल पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव

वह कहती-
सपनों में न आया कर
सपनों की पहचान नहीं होती
साक्षात मिला कर
किसी मेले में
उत्सव में
या कहीं भीड़ वाली जगह में
बहुत दिल करता है
हाथों में हाथ थामे
दो कदम चलने को
डरना नहीं,
भीड़ की आँखें नहीं होतीं।

वह कहती-
बेशक समुंदर की सीमा नहीं होती
प्यार की भी कोई उम्र नहीं होती
पर, बड़ी अभागी होती है
पानी में रहकर, पानी की प्यास
तू प्यास तो बन
मैं पानी की हर बूँद में समा जाऊँगी।

वह कहती-
पते घरों के होते हैं
सड़कों के नहीं
सड़कों ने तो बतानी ही है
घरों की राह।

वह कहती-
रेत का वजूद तो
हवा के साथ है
जब चाहे, जिधर भी ले जाए उड़ा कर
बना दे, रेत का टीला
या बना दे, टीले को मैदान
उड़ा कर ले जाए किसी बाग में
या फेंक दे किसी कीचड़ में।

वह कहती-
नदियाँ कुछ नहीं होतीं
किसी के विरह-दु:ख में
बहे हुए आँसू होते हैं
जो नदियाँ बन जाते हैं
ये नदियाँ
जब जम जाती हैं
चट्टानें बन जाती हैं
चट्टानें कुछ नहीं होतीं
किसी की प्रतीक्षा में
पथराई आँखें ही होती हैं !
0

जन्म : 21 जुलाई 1967, बरनाला(पंजाब)।
शिक्षा : एम.ए.(पंजाबी,हिंदी), बी.एड.
कृतियाँ : दो कविता संग्रह -'खुली अक्ख दा सुपना' और 'माया', बाल कहानी संग्रह-'हरी किश्ती' । इसके अतिरिक्त 'महाकवि संतोख सिंह : जीवन ते रचना', साक्षात्कार की दो पुस्तकें - 'मंथन' और 'रू-ब-रू', तीन संपादित पुस्तकें - 'सतरां दे रंग(कविता)', 'अदबी मुहांदरे(लेखकों के पैन स्कैच)', 'साहित सिरजणा और समीखिया(डा. सतिंदर सिंह नूर की मुलाकातें)'। लगभग दस पुस्तकों का हिंदी से पंजाबी व पंजाबी से हिंदी में अनुवाद।
संप्रति : अध्यापन।
संपर्क : बी-IV/814, दशमेश गली, गांधी आर्य हाई स्कूल के पास,
बरनाला-148101 (पंजाब)
फोन : 098159-76485