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शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

अनूदित साहित्य



पंजाबी कविता

जुगनूं की जून
परमिंदर सोढ़ी

हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव

एक पल रुकना
फूल के पास बैठना
तेरी ओर देखना

एक पल रुकना
नंगे पैर चलना
तेरे हाथों को छूना

एक पल रुकना
ज़िन्दगी को चूमना
तेरे पास पास होना

इससे परे
जो भी है
वह मेरा नहीं है

मुझे रेत के
पहाड़ पर
खड़ा न कर

मुझे वीत गए
वक़्त की
सूली पर न टांग

मैं भूतों के संग
लड़ना नहीं चाहता

मेरी हस्ती
किसी जुगनूं की
एक क्षण लंबी
टिमटिम से अधिक
कुछ नहीं है

मुझे बरसों और
सदियों से
न नाप

मैं अब हूँ
शाम तक होऊँ
या न होऊँ

मैं यहाँ हूँ
मुझे यहीं
होने दे

अब और यहीं
इस पल
मैं सारे का सारा
तेरा हूँ…
0
(यह कविता तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग आरसी पर 14 फरवरी 13 के अंक में पंजाबी में प्रकाशित हुई है। वहीं से साभार लेकर हिंदी अनुवाद दिया जा रहा है।)

परमिंदर सोढ़ी
वर्तमान निवास : ओसाका,जापान
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह : उत्सव, तेरे जाण तों बाद, इक चिड़ी ते महानगर, सांझे साह लैंदियां, झील वांग रुको, पत्ते दी महायात्रा(समूची कविता हिंदी व गुरमुखी में)
अनुवाद : आधुनिक जापानी कहानियाँ, सच्चाइयों के आर-पार, चीनी दर्शन ताओवाद, जापानी हाइकु शायरी, धम्मपद, गीता, अजोकी जापानी कविता
सम्पादन : संसार प्रसिद्ध मुहावरे। वार्ता : रब दे डाकिये और अजोकी जापानी कविता(मासिक अक्खर का विशेष अंक)।
अभी हाल में नया कविता संग्रह पल छिण जीणा प्रकाशित हुआ है।

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

अनूदित साहित्य





मित्रो, सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग 'आरसी' से पता चला कि पंजाबी कवि सरोज सुदीप अब नहीं रहे। तमन्ना जी ने अपने ब्लॉग 'आरसी' पर उनकी पुस्तक 'देवी' में से कुछ चुनिंदा पंजाबी कविताएँ प्रकाशित की हैं जिन्हें सुदीप जी ने अपनी दौहित्री 'देवी' को मुखातिब होकर लिखी थीं। वहीं से साभार लेकर कुछ कविताओं का हिंदी रूपांतर मैं यहाँ 'सेतु साहित्य' के पाठकों के समक्ष रखते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि दे रहा हूँ।
-सुभाष नीरव

पंजाबी कविता

देवी - कुछ कविताएँ
-सरोद सुदीप
हिंदी रूपांतरण : सुभाष नीरव


(1)
न चंचल पवन
न नाचना-कूदना
न किसी गीत का
सुर-सिरा
देवी
आराम से
सो रही है

वो जागे तो
मैं उसकी तोतली जुबान के संग
अपनी चुप जोड़ दूँगा
जो भूलें हुईं
उनके लिए
क्षमा मांग लूँगा

मेरे झुके हुए सिर के नीचे
वह झुककर झांकेगी
दो छोटी दंत पंक्तियों में
हँस पड़ेगी

उसके जागने की प्रतीक्षा में
मैं हाथ जोड़े बैठा हूँ...।


(2)
देवी मेरे पीछे-पीछे
चक्कर पर चक्कर लगाती फिरती है
खेलती-खेलती
मुझे देखती जो रहती है
मौन रह कर
मेरी साँसों में
अपनी साँसे घोलती
बहार में रहती है

मैं बूढ़े वृक्ष की भाँति
दूर तक
शाखाएँ फैलाये
उसको चील-बलाओं से
बचाने की खातिर
उसके पीछे-पीछे
चलता रहता हूँ...।


(3)
किसी के साज़ में
इतने सुर नहीं

पता नहीं
वो कौन-सा गीत है
जो ढेर सारे
इकट्ठे सुर लेकर
देवी के मुँह में रहता है

वह ऐसे गीत गाती है
जिसके अर्थ किसी के पास नहीं

मैं देवी की तरह
कभी भी
एक-सुर नहीं हुआ

उसके पीछे
किसी देव की सुरक्षा है
हे ईश्वर !
वह तेरे बिना
और कौन हो सकता है!


(4)
जैसा-जैसा मैं दिखाई देता हूँ
वैसा-वैसा मैं हूँ नहीं
देवी !

तू तो अँधेरे में
दीये उठाये फिरती है
एक दीया मुझे भी दे दे
मैं तेरे प्रकाश में
टिक जाना चाहता हूँ
हमेशा-हमेशा के लिए...।

(5)
मैंने स्वप्न में देखा
विभिन्न रंगों के फूल
देवी को
छिपाने की जुगत में
कभी उसके सिर को छूते
कभी दूर हट जाते
देवी उनमें खिलखिलाती
हँस रही थी
दो दाँत चमचमाते
सिर के बाल हवा में उड़ते
बहार बन-बन बहते

जागने पर
ख़यालों-ख़यालों में
देर तक
मैं बिस्तर में
करवटें लेता रहा
इस मिले स्वर्ग को
संभाल-संभाल रखता रहा...।

(6)
देवी अपना तौलिया
सिर पर टिकाये
कह रही है -
'यह तौलिया मामू का
यह तौलिया नानी का
यह तौलिया नानू का

मैं उसकी आँखों में
निरंतर झांकता रहता हूँ
हाय! मेरा तौलिया कहाँ है!

मेरा तौलिया भी तो देवी
तेरे पास है
जिससे मैं तन-मन की
रोज़ मैल उतारता हूँ...।

00


साहित्यिक नाम : सरोद सुदीप
वास्तविक नाम : मोहन सिंह
जन्म : जगरांव (पंजाब)
निधन : नवंबर 2012
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह - बेनाम बस्ती, उसनूं कहो, पराई धरती, लओ इह खत पा देणा, ला बैले, परले पार(चुनिंदा कविता), देवी। टैगोर की कविताओं का पंजाबी अनुवाद 'गीतांजलि'। काव्य नक्श(पंद्रह कवियों के बारे में संक्षिप्त निबंध)।

सोमवार, 27 अगस्त 2012

अनूदित साहित्य








पंजाबी कविता
दो कविताएँ/आसी
हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव

सिलसिला

कितनी हसीन थी
तेरी अलविदा की शाम
जी करता है -
तुझसे उम्र भर बिछुड़ता रहूँ।


तेरे मेरे पास

मैं तेरे करीब हूँ
जैसे नदिया के पास पानी हो
जैसे पानियों में रवानी हो
काग़ज़ी किश्तियों की कहानी हो
अल्हड़ की जवानी हो...


मैं तेरे समीप हूँ
खजूर पर अटकी पतंग की तरह
कब्र पर बैठे मलंग की तरह
हृदय में से उठती तरंग की तरह

मैं तेरे करीब हूँ
जैसे
चरवाहे का गीत हो
ज़माने की रीत हो
हवाओं में शीत हो

मैं इस तरह हूँ तेरे पास
ज्यों मेले में डरा हुआ बालक
सहम कर पकड़ी
माँ की उंगुली का ख़याल
रंगदार फिरकियों का फरफराहट…


मैं इस तरह
तेरे पास क्यों हूँ ?

तू इस तरह
मेरे पास क्यों नहीं ?
00

आसी
जन्म : 11 सितम्बर 1965, निधन : 3 नवंबर 2001
बहुत छोटी उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले इस पंजाबी कवि ने अपनी कविताओं से एक अलग पहचान बनाई थी। इन्होंने पंजाबी साहित्य को पाँच कविता संग्रह दिए - ' 'पुट्ठा घुकदा चरखा', 'उखड़ी अजान दी भुमिका', 'सहिजे सहिजे कहि', 'मैं उडाण विच हां' और ' 'निर्देशक'

रविवार, 13 मई 2012

अनूदित साहित्य













पंजाबी कविता
कुछ प्रश्न कविताएं
-दर्शन बुट्टर
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


लिखी कोई नई कविता ?
कविता तो
समय लिखता है
मैं तो शब्दों को तरतीब देता हूँ।

आईना क्या कहता है ?
ज़रूरी नही
सुनेहरी फ्रेमों वाले
शीशों के अक्स भी सुनेहरी हों

यह भी ज़रूरी नहीं
कि तिड़के शीशे में से
कोई चेहरा नज़र न आए।

कोई मुक्कदस किताब ?
ज़रूरत ही नहीं जिल्द की
बिखरे पन्नों को
प्रारंभ हो
अन्त तो
खुद ही लिख लेते है, सिरफिरे।

क्या मांगते हो ?
अगर दी हैं आँखें
तो अब
नज़र भी दे
अगर दिए हैं पैर
तो अब
सफ़र भी दे।

थकी तो नहीं उड़ान ?
राह तो बहुत रोका दहलीज ने
पर
जीने योग्य पैरों ने
पूरा कर ही लिया सफ़र को
नम तो बार-बार हुईं पलकें
पर
हँसने योग्य होंठों ने
घेर ही लिया- मुस्कानों को।
 
फिसले हैं कभी पैर ?
मख़मली लिबास पहनकर
सघन झाड़ियों में से
गुज़रा नहीं जाता, पल्ला बचाकर
कभी न कभी
कहीं न कहीं
रोक ही लेती है कोई
पल्लू पकड़कर।

इतनी बेगानगी ?
अब मैं
भावुक सफ़र नहीं
गंभीर अहसास ही हूँ
अब सिर्फ़
तेरी तलाश नहीं
अपनी तलाश भी हूँ।


उत्तर-आधुनिकता ?
हो सकता है
लुभावने शब्दों की जूठ को
इतनी शोहरत मिले
इस महफ़िल में
कि… सच के बोल ही
मनफी होकर रह जाएँ
तालियों के शोर में।
0
(उक्त कविताएं पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका हुण के जून-नवंबर 2005 के अंक में प्रकाशित हुई थीं। वहीं से लेकर इनका हिंदी अनुवाद किया गया है)



दर्शन बुट्टर
जन्म : 7 अक्तूबर 1954, गांव- खूही, तहसील-नाभा, ज़िला-पटियाला(पंजाब)
शिक्षा : एम ए (पंजाबी)
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह औड़ दे बद्दल(1984), सल्हाबी हवा(1994), शबद,शहिर ते रेत(1996), खड़ावां(2001), दर्द मजीठी(2006) और महा कम्बणी(2009)

पुरस्कार/सम्मान : सिरोमणि पंजाबी कवि पुरस्कार- 2006(भाषा विभाग पंजाब, पटियाला), जनवादी कविता पुरस्कार-1999(जनवादी कविता मंच, पंजाब), सफ़दर हाश्मी पुरस्कार -2009(पंजाब राज्य बिजली बोर्ड लेखक सभा, पंजाब), बीबी स्वर्ण कौर यादगारी अवार्ड-2001(रोज़ाना नवां ज़माना, जालंधर) तथा अन्य अनेक पुरस्कार ।

सम्प्रति : अधिकारी, पंजाब एंड सिन्ध बैंक
सम्पर्क : 143/2, हीरा महल, नाभा-147201(पंजाब)
टेलीफोन : 01765-223110(घर), 098728 23110
ईमेल : darshansinghbuttar@gmail.com

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

अनूदित साहित्य


पंजाबी कविता


पंजाबी की बहुचर्चित लेखिका सुरिन्दर नीर ने पिछले दिनों फेसबुक पर नवतेज भारती जी की एक छोटी-सी बहुत खूबसूरत कविता पंजाबी में पोस्ट की। कविता मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैंने इसका तुरन्त हिंदी में अनुवाद किया। आजकल नवतेज जी दिल्ली में आए हुए हैं। मैंने उनका फोटो फेस बुक से लिया तथा उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी विकिपीडिया से ली। नवतेज भारती पंजाबी के बहुत बड़े और अग्रज कवि हैं। इन दिनों लंदन, ऑनटरियो में रहते हैं। पंजाबी और अंग्रेजी में इनकी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ‘सिम्बल दे फुल्ल’(1968), ‘लीला’ (1999)-(अजमेर रोडे के साथ), एंडलैस आई(2002) प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 1959, 1960 और 1961 में लगातार तीन वर्षों तक इन्हें कविता के लिए ‘बेस्ट पोइट आफ़ स्टेट अवार्ड’ से नवाज़ा जा चुका है और वर्ष 2003 में ‘बेस्ट ऑवरसीज़ ऑथर अवार्ड’ का भी सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। इनका मेल आई डी है- navtejbharati@gmail.com फोन नंबर है- 08826939917 नवतेज भारती जी फेसबुक पर भी उपलब्ध हैं-http://www.facebook.com/profile.php?id=1429587564&sk=wall


धरती की बोली
नवतेज भारती
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

धरती की बात करते समय
हमारे शब्दों में
पत्तियों की हरियाली
चमकने लगती है
वृक्षों का साहस
समा जाता है

धरती की बात करते समय
हमारे शब्दों में
कपास खिल उठती है
आम टसकने लगते हैं

धरती की बात करते समय
हमारी बोली -
मीठी हो जाती है।
00

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

अनूदित साहित्य






पंजाबी कविता

अमिया कुंवर की कविताएँ


ठंडक

तेरे मिलन के क्षण
जैसे मरुस्थल में से गुजरते हुए
दो घूंट जल मिलने पर
भीतर तक ठंडक पहुँच जाए।

ठौर

उम्रें बीतीं
रिश्तों के बीहड़ गाहते

तुझे देखा
ठौर मिल गई।


स्याही चूस

मुहब्बत से
लबालब भरा आपा
छलकने को बेताब
कहीं छलक न जाए
बिखर न जाए

इससे पहले
जज्बों की बूँद
ज़िन्दगी के सफ़े पर
धब्बा बन फैल जाए

आ, स्याही चूस बन
इस सफ़े पर बिछ जा
मेरे अस्तित्व को
अपने में सोख ले।


ख़ैरात

रूह को थी
एक बुरकी की भूख
एक घूंट की प्यास

तेरे सामने
काँसा करते ही
तूने अपने जिस्म की
सारी भूख, प्यास
इसकी खैरात कर दी।


यादों की राख

यादों की राख तले
अभी भी मुहब्बत के
अंगारे सुलगते हैं

नंगी उंगलियों से
राख खंगाली
तो अहसास हुआ
किसी रिश्ते की चिमटी नहीं मिली मुझे।


यादें

खूंटी से बांध कर रखी थीं
कब से
तेरी यादें
तुझे सामने देखते ही
रस्सी तुड़ाकर भाग गईं।


दुविधा

सिरहाने तेरी यादें
पैताने तेरी मुहब्बत
बाही - पीठ फेरे तेरा वजूद
समझ में नहीं आता
करवट किस तरफ़ बदलूँ...
00

पंजाबी की चर्चित कवयित्री।
प्रकाशित पुस्तकें : पहला कविता संग्रह हिंदी में 'समय गवाही देगा' 1987 में प्रकाशित। तीन कविता संग्रह पंजाबी में - छिणों की गाथा(2000), कवियो वाच(2006), धम्मी वेला(2009)। आलोचना की दो पुस्तकें - बिम्ब विधान और पंजाबी प्रगीत(2000) और गुरमुखी लिपि पर हिंदी भाषा का प्रभाव(2003)। दो संपादित पुस्तकें - अखरां दी जाई(2005) और जश्न जारी है(2006)। इसके अतिरिक्त 55 से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी और हिंदी से पंजाबी में, पंजाबी से हिंदी में अनुवाद। मुख्य तौर पर अमृता प्रीतम, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रथम बुक्स, अजीत कौर, कुसुम अंसल, सिम्मी हर्षिता, डा. संगत सिंह, देविंदर सिंह, डा. हरबंस सिंह चावला, कमल कुमार और हंसराज रहबर की पुस्तकों का अनुवाद।

रविवार, 18 दिसंबर 2011

अनूदित साहित्य


गत 9 दिसम्बर 2011 को साहित्य अकादमी, दिल्ली के सभागार में हिंदी कथाकार और कार्टूनिस्ट राजकमल के उपन्यास पर चर्चा गोष्ठी का आयोजन था। वहीं हिंदी के कथाकार मित्र रमेश कपूर से भेंट हुई। उनके हाथ में पंजाबी कवि राजिंदर आतिश की कविताओं की एक पुस्तक थी। मैंने वहीं पुस्तक में से कुछ कविताएं पढ़ीं जो मुझे अच्छी लगीं। मित्र रमेश कपूर स्वयं भी एक अच्छे अनुवादक हैं और उनकी पत्नी वीजय लक्ष्मी जी को भी पंजाबी से हिंदी में अनुवाद का अच्छा अनुभव है। मैंने तुरन्त रमेश कपूर जी से कहा कि वह राजिंदर आतिश जी की कुछ कविताओं का हिन्दी अनुवाद मुझे “सेतु साहित्य” के लिए भेजें। उन्होंने मेरे अनुरोध पर राजिंदर आतिश की तीन कविताओं का हिंदी अनुवाद भेजा है जिसे यहाँ ‘सेतु साहित्य’ के पाठकों के लिए प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है, आपको भी ये कविताएं पसन्द आएँगी और आप अपनी राय से हमें अवगत कराएंगे…
-सुभाष नीरव



पंजाबी कविता

राजिंदर आतिश की तीन कवितायें
अनुवाद : वीजय लक्ष्मी

दूरी


जितनी दूर जा रहा हूं मैं
धरती और सिकुड़ती जा रही है

अब निपट दूर हूँ
और धरती मेरी मुठ्ठी में है

समझ नहीं सकते आप
नजदीक रह कर
समझना हो मुझे तो
निकल जाओ दूर
भूल जाओ सदा के लिये।



वापसी


मैं लौट आऊंगा
उसी तरह जैसे
लम्बे सफर के बाद लौट आते हैं जहाज
अपने ठिकाने
और बदल जाते हैं मुसाफिर

एक शोर मेरे साथ-साथ
रेंगता है
कभी याद आता है
एक घर
एक गुमशुदा बच्चे का चेहरा
लोरी-सी लय
गूंजती रहती है कानों में
लौट आऊंगा मैं
एक खोये हुए बच्चे की तरह
लम्बे सफर से लौटे
जहाज की तरह
जैसे गुजरे हुए मौसम
लौट आते हैं मुड़-मुड़ क़र

ठूंठ वृक्षों की शाखाओं पर
लौट आते हैं हरिताभ पत्ते।

यायावर


जा चुकी परछाइयों के यायावर !
लौट आ
लौट आ, नंगी सोच के
नंगे सफर ! तू भी लौट आ

परछाईं नंगे बदन की तड़पी
और दौड़ पड़ी
डूब रहे सागर की ओर
नंगे रास्तों का नंगा सफर
परेशान है

इस जंगल में
कभी एक शहर बसता था
शहर कल हंसा और जंगल रो दिया
रेत सागर की खामोश है सदा के लिए
जागता है सिर्फ
खो चुकी राहों पर रुहों का सफर
भटकते हैं निशाचर पल
डावांडोल तकदीर की स्याह राह पर
घर जिसका न सोचो तो सांझी कब्र है
चीखती हुई चुप्पी है या
सिमटा हुआ इक शोर है
जा चुकी परछाइयों के
लौटने की आस लिए चला गया है यायावर
जाने दे, नंगी सोच के नंगे सफर !
तू भी लौट आ ।
00
(अनुवादक सम्पर्क :
ए -4/14, सैक्टर -18,
रोहिणी ,दिल्ली- 110 089
मोबाइल: : 9891252314)


राजिंदर आतिश
जन्म : 8 सितम्बर, 1956, जबलपुर (मध्य प्रदेश)

पंजाबी में नई कविता की अग्रिम पंक्ति के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर। कई रचनाओं का हिन्दी के इलावा अन्य भाषाओं में भी अनुवाद। पंजाबी की कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं के सह-सम्पादक व सम्पादक। पंजाबी चैनलों पर भी रचनाओं का प्रसारण ।

प्रकाशित कृतियाँ :
हुण दी घड़ी कविता संग्रह। 'टुकडे-टुकड़े सूरज' और 'वणगी' में कविताएं संकलित।

सम्प्रति : अपना व्यवसाय तथा दिल्ली प्रदेश के प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव ।
सम्पर्क : एफ - 123, द्वितीय तल, मानसरोवर गार्डन , नई दिल्ली - 110015
मोबाइल-7838393284

शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

अनूदित साहित्य


मित्रो, ‘सेतु साहित्य’ के नवम्बर 2011 अंक के लिए जिस पंजाबी कविता का मैंने चयन किया है, वह सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग ‘आरसी’ के 14 जुलाई 2010 के अंक में प्रकाशित हुई थी और मैंने तभी निश्चय कर लिया था कि इसे मैं हिंदी में अनुवाद करके अपने ब्लॉग ‘सेतु साहित्य’ के माध्यम से हिंदी के विशाल कविता प्रेमी पाठकों को उपलब्ध कराऊँगा। लेकिन अफ़सोस कि बहुत खोजबीन करने के बाद भी न तो तनदीप तमन्ना जी की ओर से और न ही अपने पंजाबी लेखक/कवि मित्रों की ओर से इस कविता के रचनाकार की कोई जानकारी मुझे मिल पाई है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम हो सका कि यह कविता किसी कवि की है अथवा कवयित्री की… मैं जब जब इसे पढ़ता हूँ, यह अपनी गिरफ़्त में मुझे इस तरह ले लेती है कि फिर उससे बाहर निकलना मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता है। खैर, मेरे सब्र का प्याला अब भर चुका है और मैं अपने आप को इस कविता को आपसे साझा करने से नहीं रोक पा रहा हूँ। आप भी पढ़ें और अपनी राय दें कि क्या यह आपको भी उतना ही स्पंदित करती है, जितना मुझे इसने किया है। आपकी राय की प्रतीक्षा में…
-सुभाष नीरव




पंजाबी कविता

मैं कैसे आऊँगा
कंवलजीत ढुडीके
हिन्दी रूपान्तर : सुभाष नीरव






विदा होते समय
दोस्त ताकीद करते हैं
अगली बार आना तो
लेकर आना
मौसम की सुगन्ध का एक टुकड़ा
लिपे घर की खुशबू
हलों के गीत
घी के तड़के की महक
घरती के कण
बेबे (माँ) की लम्बी टेर के गीत
कच्चे कोठों की तस्वीरें
घर के मक्खन की महक
मथानी की लय के संग-संग
पाठ करती बेबे की याद
बाहर वाले घर में से आती
गोबर की गंध
कूड़े के ढेरों पर उगी
घास की स्मृति…

मन में सोचता हूँ
अगली बार आया
तो कैसे आऊँगा…
00

बुधवार, 5 अक्टूबर 2011

अनूदित साहित्य






पंजाबी कविता

मित्रो, ‘सेतु साहित्य’ के अक्तूबर 2011 अंक में हम पंजाबी के बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि-कथाकार-चित्रकार जगतारजीत की कुछ कविताओं का हिंदी अनुवाद आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। आशा है, आपको ये कविताएं पसन्द आएंगी। आपकी छोटी-सी प्रतिक्रिया भी हमारा मनोबल बढ़ाती है, इसलिए अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवश्य अवगत कराते रहें…
-सुभाष नीरव


जगतारजीत के तीन कविताएँ
(हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव)


खिड़की

उसने आहिस्ता से
खिड़की खोली
सिर बाहर निकाला
आँखें घुमाईं
गली सुनसान थी
तेज़ बहती हवा के साथ
रेतकण थे
नीले आसमान के आगे
रूई के फ़ाहों जैसे बादल
उड़े जा रहे थे
पश्चिम दिशा की ओर

कमरे में दाख़िल हुए
रेतकणों से बेख़बर
वह खिड़की में बैठी
नज़रों से सी रही थी बादल
आँखों से टपकते आँसुओं से
भरती रही उनमें पानी

खिड़की के इस ओर के हिस्से को
घर कहते हैं
जो अपने नियम के अंदर चलता है
खिड़की के दूसरी ओर का हिस्सा
गली से जुड़ा हुआ है
जिसके पार
जंगल-बियाबान है

वह दोनों के बीच अटकी
खिड़की के पल्ले की भाँति
हिल रही है।

कपड़े

खुले आसमान के नीचे
घर की स्त्री
टब में से धोए हुए कपड़े उठा
तार पर फैला रही है

तार पर फैलाते समय
उसके मन के अंदर
जी उठता है वह रूप
जिसने मैला वस्त्र उतार
रख दिया था धोने के लिए

हाथों से धुला वस्त्र उठाती
उंगलियों से छूती
आँखों से देखती-देखती
तार के हवाले कर देती
पल भर में उसने सारा परिवार
एक-दूजे के पास-पास
एक जगह पर इकट्ठा कर दिया

परिवार के सदस्य
आजकल ऐसे ही
हफ़्ते में एक-आध बार
अपने-अपने कमरों में से निकल
एक-दूसरे से मिलते हैं
फिर तह होकर जा टिकते हैं
अपनी-अपनी जगहों पर
अगली मुलाकात तक।

धोबी

मैले-कुचैले वस्त्र
चले जा रहे हैं
नदी नहाने
बैठ धोबी के सिर पर

भांत-भांत के रंगों वाले
भिन्न-भिन्न नाप के
जाति कोई, धर्म कोई
बंधे एक ही गठरी
चले जा रहे
बैठ धोबी के सिर पर

पसीने में भीगा कोई
किसी बदन का साथ छोड़
देर बाद
नया-नकोर कोई
रहा हिचकिचाता मैल से
आए बास किसी से
लहू के बूँद की
सभी एक जगह
एक बार नदी चले
बैठ धोबी के सिर पर

बस्ती के बाहर-बाहर
धोबी का घर है

मैले-कुचैले वस्त्र
चले जा रहे हैं
नदी नहाने
बैठ धोबी के सिर पर।
00

जगतारजीत सिंह
जन्म : 12 दिसंबर 1951
शिक्षा : एम.ए., पी. एचडी
प्रकाशित पुस्तकें : कला अते कलाकार(कला), 1992 व 2005(पंजाबी व हिंदी में)। जंगली सफ़र(कविता), 2002(पंजाबी में)। रबाब(कविता),2006(पंजाबी में)। रंग अते लकीरें(कला), 2006(पंजाबी में)। अंधेरे में फूल जैसी सफ़ेद मेज(कविताएँ),2010(हिंदी में)। अद्धी चुंज वाली चिड़ी(बाल कहानियाँ), 2010(पंजाबी में)। अमलतास(कविताएँ), 2011(पंजाबी में)। पेंटर शोभासिंह : एक अध्ययन(प्रैस में)।
अनुवाद : घुन खादा होधा(असमी से) 2002, साहित्य अकादमी के लिए। स्वामी विवेकानन्द : एक जीवनी(हिंदी से) 2005, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए। जंग खादी तलवार अते दो छोटे नावल(असमी से) 2009( साहित्य अकादमी के लिए)।
सम्मान : भाषा विभाग, पंजाब(1992)। पंजाबी अकादमी, दिल्ली(2002)। हिंदी अकादमी, दिल्ली(2005)। भाषा विभाग, पंजाब(2007)।
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