मैं कमज़ोर हूँ
मैं कमज़ोर हूँ
मैं लड़ नहीं सकता
ख़ुद जीने के लिए मैं दूसरों को
जाल में नहीं फँसा सकता
मैं लड़ नहीं सकता
ख़ुद जीने के लिए मैं दूसरों को
जाल में नहीं फँसा सकता
मैं कमज़ोर हूँ
लेकिन मुझे इतना नीचे गिरने में
आती है शरम
कि कत्ल करूँ दूसरों का
ख़ुद जीने के लिए
लेकिन मुझे इतना नीचे गिरने में
आती है शरम
कि कत्ल करूँ दूसरों का
ख़ुद जीने के लिए
मैं कमज़ोर हूँ
लेकिन मुझे इतना नीचे गिरने में
आती है शरम
कि दूसरों के शब्दों को कह सकूँ
अपने शब्दों की तरह
लेकिन मुझे इतना नीचे गिरने में
आती है शरम
कि दूसरों के शब्दों को कह सकूँ
अपने शब्दों की तरह
मैं कमज़ोर हूँ
0
0
दूर नहीं रही मुझ से कभी जो
मेरी सब कविताओं की माँ है वो
अब घिस गई...
पैंसिल ओ पैंसिल !
मेरे लिए घिस दिया तूने अपना शरीर
सारा जीवन चाकू की झेली तूने पीर
मरने से पहले भी हुई न अधीर
आत्मत्यागी है तू जैसे कोई फकीर
मेरे लिए घिस दिया तूने अपना शरीर
सारा जीवन चाकू की झेली तूने पीर
मरने से पहले भी हुई न अधीर
आत्मत्यागी है तू जैसे कोई फकीर
ओ पैंसिल मेरी !
मन में है मेरे विचार कुछ ऎसा
कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।
0
मन में है मेरे विचार कुछ ऎसा
कि बन जाऊँ मैं बिल्कुल तुझ जैसा ।
0
जैसे अंगूर में बीज़ होता है
अंगूर के दाने में जैसे
छिपा होता है बीज़
मेरे मन के भीतर भी वैसे
छिपी है खीज ।
अंगूर के दाने में जैसे
छिपा होता है बीज़
मेरे मन के भीतर भी वैसे
छिपी है खीज ।
खट्टे अंगूर से बनती है
तेज़ मादक शराब
ओ खीज मेरे दिल की
बन जा तू भी ख़ुशी की आब ।
0
तेज़ मादक शराब
ओ खीज मेरे दिल की
बन जा तू भी ख़ुशी की आब ।
0
अस्पताल के हमारे इस कमरे में
परदे सफ़ेद हैं
शाम का डूबता हुआ सूरज
उनमें रंग भरता है
परदे सफ़ेद हैं
शाम का डूबता हुआ सूरज
उनमें रंग भरता है
यह कमरा बिल्कुल वैसा ही है
जैसे हमारे स्कूल का कमरा था
मुझे याद आते हैं अपने वे अध्यापक
अंग्रेज़ी पढ़ाते थे जो हमें
ब्लैक-बोर्ड को ढंग से साफ़ करके
अपनी बगल में दबाकर क़िताब
हमसे विदा लेते थे वे--
"फिर मिलेंगे, दोस्तो !"
जैसे हमारे स्कूल का कमरा था
मुझे याद आते हैं अपने वे अध्यापक
अंग्रेज़ी पढ़ाते थे जो हमें
ब्लैक-बोर्ड को ढंग से साफ़ करके
अपनी बगल में दबाकर क़िताब
हमसे विदा लेते थे वे--
"फिर मिलेंगे, दोस्तो !"
जब कक्षा से बाहर निकलते थे वे
शाम के डूबते हुए सूरज की रोशनी
उनके कंधों पर लहराती थी
शाम के डूबते हुए सूरज की रोशनी
उनके कंधों पर लहराती थी
मैं भी जाना चाहता हूँ जीवन से
सब कुछ पूरी तरह साफ़ कर
"फिर मिलेंगे, दोस्तो !" कहते हुए
वैसे ही जैसे मेरे अध्यापक
पाठ ख़त्म करके कक्षा से निकलते थे।
सब कुछ पूरी तरह साफ़ कर
"फिर मिलेंगे, दोस्तो !" कहते हुए
वैसे ही जैसे मेरे अध्यापक
पाठ ख़त्म करके कक्षा से निकलते थे।
जैसे एन्कू ने बुद्ध की मूर्ति बनाई
मैं वैसे ही रिरियाना
चाहता हूँ कविता में
जैसे कोई चोट खाया कुत्ता किंकियाता है
चाहता हूँ कविता में
जैसे कोई चोट खाया कुत्ता किंकियाता है
मैं चाहता हूँ कि वैसी ही
चमकदार हों मेरी कविताएँ
जैसे पीले-पीले चमकते हैं गेंदे के फूल
चमकदार हों मेरी कविताएँ
जैसे पीले-पीले चमकते हैं गेंदे के फूल
मैं वैसी ही सरलता के साथ
लिखना चाहता हूँ कविताएँ
जैसे उड़ते-उड़ते चिड़िया गिराती है बीट
लिखना चाहता हूँ कविताएँ
जैसे उड़ते-उड़ते चिड़िया गिराती है बीट
और कभी-कभी मैं इतनी ज़ोर से
कविताएँ पढ़ना चाहता हूँ
जैसे गूँजती है सीटी जलयान की रवाना होने से पहले।
कविताएँ पढ़ना चाहता हूँ
जैसे गूँजती है सीटी जलयान की रवाना होने से पहले।
अनिल जनविजय
मास्को विश्वविद्यालय, मास्को
ई मेल : aniljanvijay@gmail.com