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मित्रो, ‘सेतु साहित्य’ के नवम्बर 2011 अंक के लिए जिस पंजाबी कविता का मैंने चयन किया है, वह सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग ‘आरसी’ के 14 जुलाई 2010 के अंक में प्रकाशित हुई थी और मैंने तभी निश्चय कर लिया था कि इसे मैं हिंदी में अनुवाद करके अपने ब्लॉग ‘सेतु साहित्य’ के माध्यम से हिंदी के विशाल कविता प्रेमी पाठकों को उपलब्ध कराऊँगा। लेकिन अफ़सोस कि बहुत खोजबीन करने के बाद भी न तो तनदीप तमन्ना जी की ओर से और न ही अपने पंजाबी लेखक/कवि मित्रों की ओर से इस कविता के रचनाकार की कोई जानकारी मुझे मिल पाई है। मुझे तो यह भी नहीं मालूम हो सका कि यह कविता किसी कवि की है अथवा कवयित्री की… मैं जब जब इसे पढ़ता हूँ, यह अपनी गिरफ़्त में मुझे इस तरह ले लेती है कि फिर उससे बाहर निकलना मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता है। खैर, मेरे सब्र का प्याला अब भर चुका है और मैं अपने आप को इस कविता को आपसे साझा करने से नहीं रोक पा रहा हूँ। आप भी पढ़ें और अपनी राय दें कि क्या यह आपको भी उतना ही स्पंदित करती है, जितना मुझे इसने किया है। आपकी राय की प्रतीक्षा में…
-सुभाष नीरव
पंजाबी कविता
मैं कैसे आऊँगा
कंवलजीत ढुडीके
हिन्दी रूपान्तर : सुभाष नीरव
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विदा होते समय
दोस्त ताकीद करते हैं
अगली बार आना तो
लेकर आना
मौसम की सुगन्ध का एक टुकड़ा
लिपे घर की खुशबू
हलों के गीत
घी के तड़के की महक
घरती के कण
बेबे (माँ) की लम्बी टेर के गीत
कच्चे कोठों की तस्वीरें
घर के मक्खन की महक
मथानी की लय के संग-संग
पाठ करती बेबे की याद
बाहर वाले घर में से आती
गोबर की गंध
कूड़े के ढेरों पर उगी
घास की स्मृति…
मन में सोचता हूँ
अगली बार आया
तो कैसे आऊँगा…
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