मंगलवार, 18 मार्च 2008

अनूदित साहित्य

दो मराठी कविताएं – सिसिलिया कार्व्हालो
हिंदी अनुवाद : अनामिका

(1)


गठिया से दुखती उंगलियों पर
उम्मीद रख कर आयोडेक्स मलने जैसे निरर्थक
इस सालते अपने मन पर मैं
कविता चुपड़ना चाहती हूँ फिर
सब के प्रति कड़वा गुस्सा भर आता है…
इस लादे हुए औरतपन पर घृणा करते-करते
क्यों संभालने लगती हूँ अपने कंधे का पल्लू ?
इस विचार से मैं खुद ही को कोसती हूँ
यह भाषा मुझे पराई लगती है
पुरुष की नज़रों की तरह
मेरे अनजाने ही मुझे गढ़ने का हक
भूतकाल के पास गिरवी पड़ा है
इस बात पर भी झुंझलाहट…

इस झुंझलाने का कोई अर्थ नहीं शायद!

फिर भी मुझे दिखाई देती है
यह कविता विराट माया है
पुरुषार्थ को गोद में लिए
स्तनपान कराती हुई।

(2)


अपने पर सारा विश्वास मर जाए तो
हे परमेश्वर !
आत्महत्या का मार्ग बचा कर रख
यह खूबसूरत ज़िंदगी
एक-दूसरे को कठिन व अशक्य बनाने वाले
इन दिनों में
सारे रिश्ते तोड़ते समय
भीतर शांति तो बनाए रख।
बचा ले अपने लोहारी फेफड़ों से
मेरी बची हुई सांसें
और तख़्ती को कोरा-साफ़ रख
न जन्म लिख्नने के वास्ते।
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(अनामिका द्वारा संपादित और इतिहास बोध प्रकाशन, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित पुस्तक "कहती हैं औरतें" से साभार)


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