पंजाबी लघुकथा
बदला
डा. श्यामसुंदर दीप्ति
हिंदी अनुवाद : स्वयं लेखक द्वारा
“देख ! तू हर बात पर जिद मत किया कर। जो काम करने का होता है, वह तू करती नहीं।” उमा ने रचना को झिड़कते हुए कहा।
“करती तो हूँ सारा काम। सब्जी बनाने के लिए टमाटर नहीं लाके दिए थे ! आपके साथ कपड़े भी तो धुलवाये थे।” रचना ने मम्मी को दलील दी।
“यही काम तो नहीं करने होते। पढ़ भी लिया कर।” उमा को और गुस्सा आ गया।
“कर तो लिया स्कूल का काम।” रचना ने अपना स्पष्टीकरण दिया।
“अच्छा ! ज्यादा बातें मत कर और एक तरफ़ होकर बैठ।” रचना सिलाई-मशीन के कपड़े को पकड़ने लगी। उमा को गुस्सा आ गया और उसने थप्पड़ जमा दिया।
“अब अगर जो हाथ आ जाता मशीन में !”
रचना रोने लगी।
“अब रोना आ गया, चुप कर, नहीं तो और लगेगी एक। अच्छी बातें नहीं सीखनी, कोई कहना नहीं मानना।”
थोड़ी देर में दरवाजा खटका। उमा ने रचना से कहा, “अच्छा ! जाकर देख, कौन है बाहर?”
पहले तो वह बैठी रही और गुस्से से मम्मी की तरफ़ देखती रही, पर फिर दुबारा कहने पर उठी और दरवाजा खोला। रचना के पापा का कोई दोस्त था।
रचना दरवाजा खोलकर लौट आई।
“कौन था ?” रमा ने पूछा।
“अंकल थे।” रचना ने रूखा-सा जवाब दिया और साथ ही बोली, “मैंने अंकल को नमस्ते भी नहीं की।”
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(उक्त लघुकथा किताब घर, नई दिल्ली से प्रकाशित सुकेश साहनी एवं रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ द्बारा संपादित पुस्तक “बाल मनोवैज्ञानिक लघुकथाएँ” से साभार ली गई है)
97, गुरू नानक एवेन्यू,
मजीठा रोड
अमृतसर- 143004
दूरभाष: 098158-08506
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9 टिप्पणियां:
बेचारी रचना.... सारा गुस्सा अकंल पर उतार दिया.
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सुन्दर लघु-कथा। !
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ACHCHHEE LAGHU KATHA KE LIYE
LEKHAK KO BADHAAEE .
बच्चे का स्वाभाविक प्रतिरोध रचना को बहुत दमदार बना देता है
भाई, 'सेतु साहित्य' पर लम्बे अरसे बाद रचना पढ़ने को मिली है। ईश्वर तुम्हें स्वस्थ रखे, यह मित्रों और परिवारजनों के लिए तो आवश्यक है ही, साहित्य-सेवा के लिए भी आवश्यक है। स्वयं लेखक द्वारा अनूदित रचना को क्या उसके द्वारा हिन्दी में ही लिखित रचना नहीं माना जाना चाहिए? मैं इस बारे में स्पष्ट नहीं हूँ इसलिए पूछ-भर रहा हूँ।
मनोवैज्ञानिक धरातल अनेक उत्कृष्ट लघुकथाएँ डॉ दीप्ति ने दी हैं। इत्तफाक से आज ही मैं उनकी 'हद' के बारे में सोच रहा था और उसकी तुलना विष्णु प्रभाकर जी की 'फर्क' से कर रहा था। 'हद' अनेक अर्थों में 'फर्क' से बेहतर रचना है। उनकी 'गुब्बारा' की तरह ही 'बदला' भी बाल-मनोविज्ञान की अनुपम रचना है। फिलहाल इतना ही, बाकी कहीं और।
बाल मनोविज्ञान का बहुत खूबसूरत चित्रण. अनुवाद और उसे प्रकाशित कर पढ़वाने के लिए तुम्हारा आभार.
चन्देल
badhiya laghukatha!
thanks for sharing!!!
regards,
ek sachchai ko vayakt karti huii laghu katha ko padvane ke liye main aapka tatha lekhak ka aabhar vayakt karta hoon
लघुकथा निश्चित रूप से प्रभावी है। पर क्या इसका अंत थोड़ा अधूरा/अस्वाभाविक नहीं लगता? लघुकथा को पड़कर अंत में ऐसा लगता है जैसे रचना के जबाब को रमा (माँ) ने सुना ही नहीं।
......... उमेश महादोषी
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