पंजाबी कविता
तू मिलना ज़रूर…
सुरजीत
हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव
तू बेशक
कड़कती धूप बनकर मिलना
या गुनगुनी दोपहर की गरमाहट बन
घोर अंधेरी रात बनकर मिलना
या सफ़ेद-दुधिया चाँदनी का आँगन बन
मैं तुझे पहचान लूँगी
खिड़की के शीशे पर पड़तीं
रिमझिम बूँदों की टप-टप में से
दावानल में जलते गिरते
दरख़्तों की कड़-कड़ में से
मलय पर्वत से आतीं
सुहानी हवाओं की
सुगंधियों में मिलना
या हिमालय पर्वत की
नदियों के किनारे मिलना
धरती की कोख में पड़े
किसी बीज में मिलना
या किसी बच्चे के गले में लटकते
ताबीज़ में मिलना
लहलहाती फ़सलों की मस्ती में
या गरीबों की बस्ती में मिलना
पतझड़ के मौसम में
किसी चरवाहे की नज़र में उठते
उबाल में मिलना
या धरती पर गिरे सूखे पत्तों के
उछाल में मिलना
मैं तुझे पहचान लूँगी…
रिमझिम बूँदों की टप-टप में से
दावानल में जलते गिरते
दरख़्तों की कड़-कड़ में से
मलय पर्वत से आतीं
सुहानी हवाओं की
सुगंधियों में मिलना
या हिमालय पर्वत की
नदियों के किनारे मिलना
धरती की कोख में पड़े
किसी बीज में मिलना
या किसी बच्चे के गले में लटकते
ताबीज़ में मिलना
लहलहाती फ़सलों की मस्ती में
या गरीबों की बस्ती में मिलना
पतझड़ के मौसम में
किसी चरवाहे की नज़र में उठते
उबाल में मिलना
या धरती पर गिरे सूखे पत्तों के
उछाल में मिलना
मैं तुझे पहचान लूँगी…
किसी भिक्क्षु की चाल में से
किसी नर्तकी के नृत्य की लय में से
किसी वीणा के संगीत में से
किसी हुजूम के शोर में से।
तू मिलना बेशक
किसी अभिलाषी की आँख का आँसू बन
किसी साधक के ध्यान का चक्षु बन
किसी मठ के गुम्बद की गूँज बन
या रास्ता खोजता सारस बन
तू मिलना ज़रूर
मैं तुझे पहचान लूँगी।
किसी नर्तकी के नृत्य की लय में से
किसी वीणा के संगीत में से
किसी हुजूम के शोर में से।
तू मिलना बेशक
किसी अभिलाषी की आँख का आँसू बन
किसी साधक के ध्यान का चक्षु बन
किसी मठ के गुम्बद की गूँज बन
या रास्ता खोजता सारस बन
तू मिलना ज़रूर
मैं तुझे पहचान लूँगी।
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पंजाबी की चर्चित कवयित्री।
प्रकाशित कविता संग्रह –‘शिरकत रंग’
वर्तमान निवास : टोरोंटो (कनैडा)
संप्रति : टीचिंग।
ब्लॉग – सुरजीत (http://surjitkaur.blogspot.com)
ई मेल : surjit.sound@gmail.com
प्रकाशित कविता संग्रह –‘शिरकत रंग’
वर्तमान निवास : टोरोंटो (कनैडा)
संप्रति : टीचिंग।
ब्लॉग – सुरजीत (http://surjitkaur.blogspot.com)
ई मेल : surjit.sound@gmail.com
24 टिप्पणियां:
आप को परिवार समेत नये वर्ष की शुभकामनाये.
नये साल का उपहार
http://blogparivaar.blogspot.com/
सुभाष जी,नववर्ष पर के पहले दिन एक अच्छी कविता पढने को मिली के लिए सुरजीत जी को बधाई दें।
भारतेन्दु मिश्र
सुरजीत की बहुत अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद। नया साल कवि और अनुवादक दोनों को सुख, शान्ति, स्वास्थ्य और संतोष प्रदान करता रहे।
कड़कती धूप बनकर मिलना
या गुनगुनी दोपहर की गरमाहट बन
घोर अंधेरी रात बनकर मिलना
या सफ़ेद-दुधिया चाँदनी का आँगन बन
मैं तुझे पहचान लूँगी
सबसे खूबसूरत पंक्तियाँ लगीं ....
सुरजीत जी अच्छा लिखतीं हैं ....
इनके ब्लॉग पे भी पढ़ा है इन्हें .....!!
सुन्दर कविता!!!
बहुत ही सुंदर अंक है..इस कोशिश को जारी रखियेगा
वर्तिका नंदा
nandavartika@gmail.com
भाई सुभाष,
सुरजीत जी की कविताएं बहुत पसंद आयीं. आप दोनों को बधाई.
चन्देल
भावुक करती रचना....
नववर्ष मंगलमय हो......
सुरजीत जी को सुन्दर कविता के लिए और नीरव जी को सुन्दर अनुवाद के लिए बधाई .साथ में नव वर्ष की बधाई .
nav varsh samaniyaa subhash jee aur surjit jee ko bahut bahut badhai.
surjit jee ko achchi kavita ke liye sahuwad aur kushal anuwad ke liye subhash jee kaa aabhar .
saadar
Surjeet jee ki iss sundar kavitaa ke liye badhai deta hoon
आप का अनुवाद भी बहुत प्रशंसनीय है...। मेरी बधाई...।
मानी
ACHCHHEE KAVITA KE LIYE SURJEET
JI KO BADHAAEE . ANUWAAD KEE KHOOBEE HAI KI KAHIN BHEE PUNJABI
KAVITA NAHIN LAGEE .
वाह...अतिसुन्दर...
" वह" आनंद स्वरुप,भावस्वरूप...कहाँ नहीं है..कण कण में व्याप्त है...बहुत ही सुन्दर शब्दों में इस भाव को रूपायित किया गया है..
पर उसे पहचान लेने का सामर्थ्य विरले ही किसीके पास होता है और जो यह आ जाए,तो फिर क्या बात है..फिर जीवन में कष्ट का संताप का कोई स्थान ही कहाँ बच जायेगा...
भावपूर्ण बहुत ही सुन्दर रचना तथा अनुवाद..
आभार.
सुरजीत जी की बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति.
आपका अनुवाद भी काबिले तारीफ़ है.
सलाम
अति सुंदर !
You are so gifted Surit.
What a beautiful translation!
बहुत प्रशंसनीय है...
क्या गहरी अनुभूति !
ਸੁਰਜੀਤ ਜੀ,
ਆਪ ਦਾ ਇਹ ਹਿੰਦੀ ਬਲਾਗ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਪੜ੍ਹਿਆ। ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਲੱਗਾ। ਸੁਭਾਸ਼ ਜੀ ਦਾ ਕੀਤਾ ਹਿੰਦੀ ਅਨੁਵਾਦ ਸ਼ਲਾਘਾਯੋਗ ਹੈ।
ਹਰਦੀਪ
अपनी वेगवती धार में बहा ले जाती है यह रचना .
Made me remember amrita pritam...
..Main tenu fir milaangi !
मिलन के कितने रूप , वह भी भावपूर्ण कोणों से जीवन की व्याख्या करते हुए ! सुरजित जी आपकी इस कविता की गहराई से अभिभूत हूँ।
धरती की कोख में पड़े
किसी बीज में मिलना
या किसी बच्चे के गले में लटकते
ताबीज़ में मिलना.
मैं तो बस अभिभूत हो गया, धन्य हो गया ये पढ़कर. कृपया पोस्ट डालना जरी रखें. धन्यवाद अपने विचार बांटने के लिए.
bahut khoob. nice blog
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