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सुभाष नीरव
पंजाबी कविता
बेटियों के चाँद-सूरजडा गुरमिंदर सिद्धू
(हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव)
बेटियों के लिए
पिता होता है सूरज
ऊबड़-खाबड़ राहों में रौशनी बिखेरता
थके पैरों के सफ़र को ऊर्जा देता
कड़कड़ाते जाड़े में
गुनगुनी धूप सा
और कभी-कभी जेठ-हाड़ की
तीखी दुपहरी जैसा भी
जिसके धुर अन्दर बेटियों के लिए
शीतल छांव का सपना
बो रखा होता है
और एक दिन
किरणों की गठरी
बेटियों के सिर पर रख कर
किसी दूर देश की ओर भेज देता है।
बेटियों के लिए माँ
होती है चाँद
तपते सिर पर
चन्द्र-किरणों का शामियाना तानती
हथेलियों के छालों के लिए
चन्दन का लेप बनती
चीस मारते अटणों के लिए
शहद मीठा चुम्बन
दमघोंटू काली रातों में
दुधिया चाँदनी-सी
और
कभी-कभी
गूंगे साधु की कुटिया जैसी भी
जिसके अन्दर
बेटियों की ‘सात खैरों’ के वास्ते
एक धूनी तपती रहती है
और एक दिन
माँ बनने का वरदान
बेटियों के माथे पर रख कर
किसी दूर देश की ओर चली जाती है…