शनिवार, 3 सितंबर 2011

अनूदित साहित्य


मित्रो, सेतु साहित्य ब्लॉग का प्रारंभ 14 अगस्त 2007 को हुआ था यानी इसने चार वर्ष की यात्रा पूरी कर ली है। इस यात्रा के दौरान सेतु साहित्य भारतीय एवं विदेशी भाषाओं(पंजाबी, बंगला, मराठी, मलयालम, ओड़िया, संथाली, रूसी, नेपाली, जापानी, ईरानी, अमेरिकन आदि) के उत्कृष्ट साहित्य (यथा- कविता, लघुकथा, कहानी, पत्र) के हिंदी अनुवाद अन्तर्जाल के विशाल हिन्दी पाठकों को उपलब्ध करवाता रहा है। आगे भी यह सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा। हम उन सभी अनुवादक मित्रो से अनुरोध करते हैं कि वे भी भारतीय अथवा विदेशी भाषाओं के साहित्य का हिन्दी अनुवाद सेतु साहित्य के लिए भेंजे। रचनाएं छोटी और सारगर्भित हों, बस इतना खयाल रखें। इस बार हम पंजाबी कवयित्री डा गुरमिंदर सिद्धू की कविता का हिंदी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका पंजाबी रूप सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग आरसी के 2 सितम्बर 2011 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

आपकी छोटी-सी प्रतिक्रिया भी हमारा मनोबल बढ़ाती है, इसलिए अपनी प्रतिक्रिया से हमें अवश्य अवगत कराते रहें…

सुभाष नीरव


पंजाबी कविता

बेटियों के चाँद-सूरज

डा गुरमिंदर सिद्धू

(हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव)

बेटियों के लिए

पिता होता है सूरज

ऊबड़-खाबड़ राहों में रौशनी बिखेरता

थके पैरों के सफ़र को ऊर्जा देता

कड़कड़ाते जाड़े में

गुनगुनी धूप सा

और कभी-कभी जेठ-हाड़ की

तीखी दुपहरी जैसा भी

जिसके धुर अन्दर बेटियों के लिए

शीतल छांव का सपना

बो रखा होता है

और एक दिन

किरणों की गठरी

बेटियों के सिर पर रख कर

किसी दूर देश की ओर भेज देता है।

बेटियों के लिए माँ

होती है चाँद

तपते सिर पर

चन्द्र-किरणों का शामियाना तानती

हथेलियों के छालों के लिए

चन्दन का लेप बनती

चीस मारते अटणों के लिए

शहद मीठा चुम्बन

दमघोंटू काली रातों में

दुधिया चाँदनी-सी

और

कभी-कभी

गूंगे साधु की कुटिया जैसी भी

जिसके अन्दर

बेटियों की सात खैरों के वास्ते

एक धूनी तपती रहती है

और एक दिन

माँ बनने का वरदान

बेटियों के माथे पर रख कर

किसी दूर देश की ओर चली जाती है…

13 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर ! इतनीसुन्दर अभिव्यक्ति की प्रशंसा के लिए शब्द नहीं है मेरे पास ..
इला

ashok andrey ने कहा…

dr gurvindar jee kavita to gehraa prabhav chhodti hai, kabhi-kabhi itni achchhi rachna ka rasaswadan karke man kaheen kho jataa hai shayad yahi rachna ki saphalta bhee hai-
aur ek din
maan banne ka vardaan
betion ke maathe par rakh kar
kisi door desh ki aur chali jaati hain....
aapko tatha gurvindar jee ko badhai.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बेटियों के लिए माँ

होती है चाँद

तपते सिर पर

चन्द्र-किरणों का शामियाना तानती

हथेलियों के छालों के लिए

चन्दन का लेप बनती


बहुत सुंदर रचना है डॉ गुरमिंदर जी की ....

आप निरंटर अनुवाद के कार्य में लगे हैं सुभाष जी ..

मेरे लिए भी क्षणिकाएं भेजिए न ...?

आपसे आग्रह किया था तनदीप जी की क्षणिकाएं भेजने का ....

बेनामी ने कहा…

सच है.. माँ - बाप चाँद और सूरज ही तो होते हैं... चाँद और सूरज ही के बगैर सृष्टि कहाँ.. बहुत सुन्दर रचना..

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता नीरव. बधाई.

चन्देल

रचना दीक्षित ने कहा…

सलामत रहें सभी चंद सूरज और उनके तारे.
लाजवाब अभिव्यक्ति

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

gahri anubhuti se srijan...

और एक दिन

माँ बनने का वरदान

बेटियों के माथे पर रख कर

किसी दूर देश की ओर चली जाती है…
Gurminder ji ko anupam rachna ke liye badhai,

PRAN SHARMA ने कहा…

STARIY KAVITA KEE BHAVABHIVYAKTI
KE LIYE KAVYITRI KO BADHAAEE AUR
SHUBH KAMNA .

सुनील गज्जाणी ने कहा…

प्रणाम !
गुरमिंदर जी को अच्छी कविता के लिए और नीरव जी सब को उम्दका अनुवाद के लिए बधाई !

उमेश महादोषी ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता।

Sushil Kumar ने कहा…

अच्छे भाव ।

daanish ने कहा…

सूरज और चाँद के माध्यम से
बहुत ही भावपूर्ण सृजन किया गया है
बेटी से माँ बाप के रिश्तों को
बहुत ही चमत्कारिक शब्दावली से संवारा गया है
अनुवाद ,
अपने आप में अनूठा बन पडा है
बधाई स्वीकारें .

सुभाष नीरव ने कहा…

डा. गुरमिंदर सिद्धू जी की कविता ‘बेटियों के चांद-सूरज’ मैंने तनदीप तमन्ना जी के पंजाबी ब्लॉग ‘आरसी’ में पढ़ी थी और ‘आरसी’ पर इस खूबसूरत कविता के लिए अपनी टिप्पणी छोड़ी थी और साथ ही, इसके हिंदी अनुवाद को ‘सेतु साहित्य’ पर प्रकाशित करने की मंशा प्रकट की थी। डा. सिद्धू ने मेरी वह टिप्पणी पढ़कर ‘सेतु साहित्य’ पर अपनी कविता का हिंदी अनुवाद पढ़ा और मुझे पंजाबी में मेल करके अपनी जो टिप्पणी मुझे प्रेषित की, उसका हिंदी अनुवाद मैं आप सबसे साझा कर रहा हूँ-


माननीय सुभाष नीरव जी
आज ही ‘आरसी’(तनदीप तमन्ना का पंजाबी ब्लॉग) की साइट खोली तो यह पढ़कर रूह खिल उठी कि आपने मेरी कविता ‘धीयां दे चन्न सूरज’ हिंदी में अनुवाद करके ‘सेतु साहित्य’ पर लगाई है। फिर, सेतु साहित्य की साइट खोली तो एक और करिश्मा… इतनी प्यारी टिप्पणियां… ऐसा लगता है, मेरी कलम को और स्याही मिल गई हो। मैं उन सभी सुहृदय लेखकों/पाठकों की शुक्रगुजार हूँ, जिन्होंने इतने खूबसूरत अहसासों से नवाज़ कर मेरी लेखनी को पंख लगा दिये हैं… आपने सचमुच मेरी कविता को स्थान देकर मेरी हौसला-अफ़जाई की है। मैं दिल की गहराई से आपकी धन्यवादी हूँ।

और फिर इस वेबसाइट पर प्रकाशित अन्य रचनाएं… वाह ! एक से एक बढ़कर ! लोकभाषा में कहूँ तो रंग लगे हुए हैं… मुझे तो पता ही नहीं था कि इंटरनेट साहित्य में ये कमाल भी हो रहे हैं… इसमें आपकी मेहनत लिश्कारे मारती है। दूसरी भाषाओं की महान कृतियों को अपने लोगों के सम्मुख करना एक महान कार्य है जिसमें आप पूरी तरह सफल हुए हैं। ईश्वर करे, ‘सेतु साहित्य’ इंटरनेट की दुनिया में और चमके और बड़े से बड़ा मुकाम हासिल करे…
बहुत बहुत अदब और सत्कार के साथ
डा0 गुरमिंदर सिद्धू