रविवार, 13 मई 2012

अनूदित साहित्य













पंजाबी कविता
कुछ प्रश्न कविताएं
-दर्शन बुट्टर
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


लिखी कोई नई कविता ?
कविता तो
समय लिखता है
मैं तो शब्दों को तरतीब देता हूँ।

आईना क्या कहता है ?
ज़रूरी नही
सुनेहरी फ्रेमों वाले
शीशों के अक्स भी सुनेहरी हों

यह भी ज़रूरी नहीं
कि तिड़के शीशे में से
कोई चेहरा नज़र न आए।

कोई मुक्कदस किताब ?
ज़रूरत ही नहीं जिल्द की
बिखरे पन्नों को
प्रारंभ हो
अन्त तो
खुद ही लिख लेते है, सिरफिरे।

क्या मांगते हो ?
अगर दी हैं आँखें
तो अब
नज़र भी दे
अगर दिए हैं पैर
तो अब
सफ़र भी दे।

थकी तो नहीं उड़ान ?
राह तो बहुत रोका दहलीज ने
पर
जीने योग्य पैरों ने
पूरा कर ही लिया सफ़र को
नम तो बार-बार हुईं पलकें
पर
हँसने योग्य होंठों ने
घेर ही लिया- मुस्कानों को।
 
फिसले हैं कभी पैर ?
मख़मली लिबास पहनकर
सघन झाड़ियों में से
गुज़रा नहीं जाता, पल्ला बचाकर
कभी न कभी
कहीं न कहीं
रोक ही लेती है कोई
पल्लू पकड़कर।

इतनी बेगानगी ?
अब मैं
भावुक सफ़र नहीं
गंभीर अहसास ही हूँ
अब सिर्फ़
तेरी तलाश नहीं
अपनी तलाश भी हूँ।


उत्तर-आधुनिकता ?
हो सकता है
लुभावने शब्दों की जूठ को
इतनी शोहरत मिले
इस महफ़िल में
कि… सच के बोल ही
मनफी होकर रह जाएँ
तालियों के शोर में।
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(उक्त कविताएं पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका हुण के जून-नवंबर 2005 के अंक में प्रकाशित हुई थीं। वहीं से लेकर इनका हिंदी अनुवाद किया गया है)



दर्शन बुट्टर
जन्म : 7 अक्तूबर 1954, गांव- खूही, तहसील-नाभा, ज़िला-पटियाला(पंजाब)
शिक्षा : एम ए (पंजाबी)
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह औड़ दे बद्दल(1984), सल्हाबी हवा(1994), शबद,शहिर ते रेत(1996), खड़ावां(2001), दर्द मजीठी(2006) और महा कम्बणी(2009)

पुरस्कार/सम्मान : सिरोमणि पंजाबी कवि पुरस्कार- 2006(भाषा विभाग पंजाब, पटियाला), जनवादी कविता पुरस्कार-1999(जनवादी कविता मंच, पंजाब), सफ़दर हाश्मी पुरस्कार -2009(पंजाब राज्य बिजली बोर्ड लेखक सभा, पंजाब), बीबी स्वर्ण कौर यादगारी अवार्ड-2001(रोज़ाना नवां ज़माना, जालंधर) तथा अन्य अनेक पुरस्कार ।

सम्प्रति : अधिकारी, पंजाब एंड सिन्ध बैंक
सम्पर्क : 143/2, हीरा महल, नाभा-147201(पंजाब)
टेलीफोन : 01765-223110(घर), 098728 23110
ईमेल : darshansinghbuttar@gmail.com

11 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

वाह बहुत अच्छी लगी ये क्षणिकायें ......
कुछ अलग हट के नए पहलुओं को छूती हुई .....
दर्शन जी को बधाई .....!

अब तो क्षणिका विशेषांक छपने चला गया वर्ना इन्हें जरुर शामिल करती .....

बलराम अग्रवाल ने कहा…

अगर दी हैं आँखें/तो अब/‘नज़र’ भी दे/अगर दिए हैं/ पैर/तो अब/सफ़र भी दे। तथा,
अब मैं/भावुक सफ़र नहीं/गंभीर अहसास ही हूँ/अब सिर्फ़/‘तेरी तलाश’ नहीं/‘अपनी तलाश’ भी हूँ---जैसे काव्यपरक उत्तर दर्शन बुट्टर को गम्भीर कवि सिद्ध करने के लिए काफी हैं। उनकी ये सभी कविताएँ उल्लेखनीय हैं।

PRAN SHARMA ने कहा…

CHHOTEE - CHHOTEE KAVITAAON MEIN
BADEE - BADEE BAAT . AAP TO GAAGAR
MEIN SAAGAR BHARNE KEE KSHAMTAA
RAKHTE HAI BUTTAR SAAB !

Devi Nangrani ने कहा…

इतनी बेगानगी ?
अब मैं
भावुक सफ़र नहीं
गंभीर अहसास ही हूँ
अब सिर्फ़
‘तेरी तलाश’ नहीं
‘अपनी तलाश’ भी हूँ।
Ati arthpoorn kavyathmak anubhooti
Padhte kahin abhaas hi nahin hua ki yeh original rachna ka aks hai. Bahut badhayi v shubhkamnaon ke saath

leena malhotra ने कहा…

bahut sundar kavitayen hain.. anuvad karke pathhko ka vistar karne ke liye abhaar..

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

यार बहुत जानदार कविताएं हैं. नया प्रयोग बहुत ही आकर्षक है.

चन्देल

बेनामी ने कहा…

Aap ka anuvad khubsurt hai aur buttar dian kavitavaN vi…
gurpreet ( poet ) poetgurpreet@gmail.com

अनुपमा पाठक ने कहा…

प्रश्न कविताओं में निहित सर्वश्रेष्ठ उत्तर...
वाह!

Raju Patel ने कहा…

दर्शन जी ,मैं तो आप का फेन हो गया ---क्या लिखते है आप...!! अनुवादक को इस अनुवाद के लिए ढेर सारा शुक्रिया....!!!

बेनामी ने कहा…

very nice & sweet poems.......! ramesh

Vandana Ramasingh ने कहा…

ज़रूरी नही
सुनेहरी फ्रेमों वाले
शीशों के अक्स भी सुनेहरी हों

वाह बेहतरीन क्षणिकाएं