चित्र : बलराम अग्रवाल |
हिमाचली कविता
दो कविताएं/अशोक दर्द
हिंदी रूपांतर : स्वयं कवि द्बारा
बड़ा होने के लिए
ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरे
गगनचुम्बी महलों का क्या लाभ
जहाँ-
सम्वेदनाओं के नरम-कोमल फूलों के लिए
कोई जगह ही न हो।
सोने-चाँदी से सजी
उन ड्योढ़ियों का क्या फायदा
जिसके दर से कोई दरवेश
बिना दुआ दिए ही
खाली झोली लौट जाए।
गगनचुम्बी गुम्बदों के नीचे
भरे हुए गोदामों का क्या औचित्य
जिसकी मुंडेरों पर
बैठी चिड़िया
भूखी ही उड़ जाए
और
मुट्ठीभर दाने फेंकने के लिए
जिनके बाशिंदों के
कांपने लगें हाथ।
ऐसे गगनचुम्बी महलों से तो
वह कुटिया कहीं अच्छी है
जहाँ
सम्वेदनाओं के पुष्प कुम्हलाते नहीं
दरवेश बिना दुआ दिए
नहीं लौटते खाली हाथ
और चिड़ियाँ
मुंडेर पर भूखे पेट नहीं फुदकतीं।
सच तो यह है मेरे मित्र !
घर बड़ा होने से
कोई बड़ा नहीं होता
दिल बड़ा होना चाहिए।
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माँ नहीं बदली
पंख उग आने पर
सिखा देती है
माँ जब उड़ना
तब –
कल के नन्हें चूजे
परिंदे बन
उड़ जाते हैं
घोंसला छोड़
उन्मुक्त आकाश में
और फिर
नहीं पहचानते वे माँ को।
युग बीते
माँ नहीं बदली
वह अब भी
सेती है अंडे
ढोती है चोंच भर
अन्न-पानी
सुबह से शाम तक
भूखी-प्यासी रहकर
अपनी संतति की ममता में
झपट पड़ती है उन पर
जो देखते हैं
टेढ़ी आँख से
उसके घोंसले की ओर।
बहुत कुछ बदला
पर, युग बीतने के बाद भी
नहीं बदली तो
माँ नहीं बदली।
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जन्म : 23 अप्रैल 1966, गाँव- घट्ट
(टप्पर), ज़िला-चम्बा(हिमाचल प्रदेश)
शिक्षा : शास्त्री, प्रभाकर, जे.बी.टी., एम.ए.(हिंदी),
बी.एड ।
सरल स्वभावी एवं मृदुभाषी अशोक दर्द यूं तो एक
शिक्षक हैं और राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, बनीखेत(ज़िला- चम्बा) में बतौर भाषा-अध्यापक कार्यरत हैं, लेकिन साथ ही
साथ हिमाचल के एक बेहद संवेदनशील युवा कवि के रूप में भी ख्यात हैं। इनकी कविता
में प्रकृति और मानव जन-जीवन की संवेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति हमें मिलती है। हिंदी
और हिमाचली भाषा में रचनारत इस लेखक/कवि की रचनाएँ देश की अनेक छोटी-बड़ी पत्रिकाओं
में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय स्तर के अनेक संकलनों में कविताएं संकलित हुई
हैं। इन्होंने करीब डेढ़ दर्जन एल्बमों में हिमाचली गीत लेखन व भजन लेखन किया है।
आकाशवाणी शिमला और धर्मशाला से कविताओं का निरंतर पाठ होता रहता है। एक कविता
संग्रह हिंदी में ‘अंजुरी भर शब्द’ प्रकाशित हो चुका है और चार कविता संग्रह
प्रकाशनाधीन हैं। ‘कविवर मैथिलीशरण गुप्त
सम्मान(मथुरा, उत्तर प्रदेश), नीला आसमान साहित्य सम्मान(हिमखंड पत्रिका,
मंडी,हिमाचल), न्यू ॠतुंभरा तुलसीदास सम्मान एवं साहित्य अलंकरण 2012 से नवाज़े जा
चुके हैं।
सम्पर्क : प्रवास कुटीर, गाँव व डाकघर – बनीखेत, तहसील- डलहौजी, ज़िला-चम्बा(हिमाचल प्रदेश)
टेलीफोन : 09418248262
ईमेल : ashokdard23@gmail.com
11 टिप्पणियां:
गगनचुम्बी गुम्बदों के नीचे
भरे हुए गोदामों का क्या औचित्य
जिसकी मुंडेरों पर
बैठी चिड़िया
भूखी ही उड़ जाए
सोचने की बात है
दूसरी कविता -माँ तो माँ ही होती है
दोनों ही रचनाएं बहुत अच्छी लगीं
वह कुटिया कहीं अच्छी है
जहाँ
सम्वेदनाओं के पुष्प कुम्हलाते नहीं
दरवेश बिना दुआ दिए
नहीं लौटते खाली हाथ
और चिड़ियाँ
मुंडेर पर भूखे पेट नहीं फुदकतीं।
Umda Arthpurn !
अशोक दर्द की इन दोनों ही कविताओं में उनका सूफी-चिन्तन दृष्टिगत है। क्योंकि मैं व्यक्तिगत रूप से अशोक दर्द से मिल चुका हूँ इसलिए कह सकता हूँ कि यह चिन्तन उनके व्यक्तित्व से मेल खाता है। स्पष्टत: कवि की अभिव्यक्ति यदि उसके व्यक्तित्व से भिन्न होगी तो प्रभावकारी नहीं सिद्ध होगी। यह उल्लेखनीय है कि अशोक दर्द वही लिख रहे हैं जो वह जी रहे हैं।
अशोक दर्द की कविताओं की सादगी दिल को छू गई । भाषा की सुगन्ध इन्हें और आत्मीय बना देती है ।
अशोक दर्द की कविताओं में जीवन जीने और मूल्यों को लेकर जो बेकसी है , वह कवि के अनंत संभावनाओं के द्वार खोलता है | माँ और चिड़ियाँ पर कविता करते हुए कवि ने कविता में सही जमीन की तलाश की है | उन्हे भाई साहब , मेरे ओर से बधाई भेंजे | साभार |
अशोक दर्द जी की दोनों कविताएं बहुत अच्छी लगीं।
दर्द जी की कविताओं मानवीय संवेदना की गहन अभिव्यक्ति है. बहुत सुन्दर कविताएं.
रूपसिंह चन्देल
बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 26-11-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत सुन्दर कविताएं!
नीरव जी, हर बार प्रभावशाली कवितायेँ लाते हैं आप खोजकर! पढ़ते हुए अच्छा लगता है।
नीरव जी, हर बार प्रभावशाली कवितायेँ लाते हैं आप खोजकर! पढ़ते हुए अच्छा लगता है।
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