पंजाबी कविता
जुगनूं की जून
परमिंदर सोढ़ी
हिंदी रूपांतर :
सुभाष नीरव
एक पल रुकना
फूल के पास बैठना
तेरी ओर देखना
एक पल रुकना
नंगे पैर चलना
तेरे हाथों को छूना
एक पल रुकना
ज़िन्दगी को चूमना
तेरे पास पास होना
इससे परे
जो भी है
वह मेरा नहीं है
मुझे रेत के
पहाड़ पर
खड़ा न कर
मुझे वीत गए
वक़्त की
सूली पर न टांग
मैं भूतों के संग
लड़ना नहीं चाहता
मेरी हस्ती
किसी जुगनूं की
एक क्षण लंबी
टिमटिम से अधिक
कुछ नहीं है
मुझे बरसों और
सदियों से
न नाप
मैं अब हूँ
शाम तक होऊँ
या न होऊँ
मैं यहाँ हूँ
मुझे यहीं
होने दे
अब और यहीं
इस पल
मैं सारे का सारा
तेरा हूँ…
0
(यह कविता तनदीप
तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग ‘आरसी’ पर 14 फरवरी 13 के अंक में पंजाबी में
प्रकाशित हुई है। वहीं से साभार लेकर हिंदी अनुवाद दिया जा रहा है।)
परमिंदर सोढ़ी
वर्तमान निवास : ओसाका,जापान
प्रकाशित पुस्तकें :
कविता संग्रह : उत्सव, तेरे जाण तों बाद, इक चिड़ी ते महानगर, सांझे साह लैंदियां,
झील वांग रुको, पत्ते दी महायात्रा(समूची कविता हिंदी व गुरमुखी में)
अनुवाद : आधुनिक
जापानी कहानियाँ, सच्चाइयों के आर-पार, चीनी दर्शन – ताओवाद, जापानी हाइकु शायरी, धम्मपद, गीता, अजोकी
जापानी कविता
सम्पादन : संसार
प्रसिद्ध मुहावरे। वार्ता : रब दे डाकिये और अजोकी जापानी कविता(मासिक ‘अक्खर’ का विशेष अंक)।
अभी हाल में नया
कविता संग्रह ‘पल छिण जीणा’ प्रकाशित हुआ है।
16 टिप्पणियां:
सुगठित कविताएँ..बहुत सुंदर..
Dhanyawad Nirav ji ..
Dhanyawad Subhash Nirav ji
komal bhaav kii kavitayen
Kavita man ko bhaa gayee hai .
Anuwaad laajawaab hai . lagaa ki
main hindi kee kavita padh rahaa
hun .
बहुत सुन्दर. दोनों को बधाई.
चन्देल
chand shabdon men bahut kuchh keh gaye Parmindar jee,badhai.
सम्पूर्णता को सादर !
हम तक इस कविता को पहुँचाने का शुक्रिया सुभाष जी।
एक पल में ही जी ली पूरी ज़िंदगी ... बहुत सुंदर अनुवाद ।
परमिंदर सोढ़ी की कविता 'जुगनू की जून' का हिंदी अनुवाद पढ़ा. कवि के साथ अनुवादक को भी इस सुंदर और रसभरी कविता के लिए बधाई.
-ऊषा राजे सक्सेना
मन छूती और फिर वहीं अटक जाती सुकुमार कविता। बधाई एक सुन्दर कविता और उतने ही प्रभावशाली अनुवाद के लिए।
शैल अग्रवाल
Sabhi doston ke liye dhanyewad..
sodhiparminder@gmail.com
परमिंदर सोढ़ी की यह पंजाबी कविता अपने प्रभाव में अन्यतम और हृदयस्पर्शी है |
Dear Subhash ji,
Read some of the poems in the Setu-Sahitya. 'Juganu' was excellent. Keep it up.
Suresh Dhingra
namaskar
behad sunder abhivyakti , dono vibhutiyon ko hardik badhai
saadar
अब और यहीं
इस पल
मैं सारे का सारा
तेरा हूँ…
___________________
समर्पण को व्यक्त करती जो आज नहीँ मिलना मुश्किल है
एक टिप्पणी भेजें