रूसी कविता
इवान बूनिन की दो कविताएँ
मूल रूसी से हिंदी अनुवाद : अनिल जनविजय
शब्द
मौन हैं समाधियाँ और कब्रें
चुप हैं शव और अस्थियाँ
सिर्फ़ जीवित हैं शब्द झबरे
अँधेरे में डूबे हैं महीन
यह दुनिया कब्रिस्तान है
सिर्फ़ शिलालेख बोलते हैं प्राचीन
शब्द के अलावा खास
और कोई सम्पदा नहीं है
हमारे पास
इसलिए सम्भाल कर रखो इन्हें
अपनी पूरी ताकत भर
इन द्वेषपूर्ण दु:ख-भरे दिनों में
देना न इन्हें कहीं तुम फेंक
बोलने की यह ताकत ही
हमारी अमर उपलब्धि है एक।
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डर
पक्षियों के पास होता है घोंसला
जानवरों के पास कोई मांद
कितना दु:ख हुआ था उस दिन मुझे
जब निकल आया मैं बाहर
पिता के घर की दीवारें फांद
कहा- विदा, विदा
मैंने बचपन के घर को
जानवरों के पास होती है मांद
पक्षियों के पास कोई घोसला
धड़का दिल मेरा उदासी के साथ
घुसा जब अजनबी किराये के घर में
पुराना एक झोला था पास
और मन में हौसला…
सलीब बना छाती पे मैंने दूर किया
जीवन के हर डर को !
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१० अक्तूबर १८७० को रूस के वोरोनेझ नगर में जन्म। १५ वर्ष की उम्र में ही कविता लिखने लगे। १८९६ में हेनरी लाँगफेलो की कविताओं का बूनिन द्वारा किए गए अनुवाद ने उन्हें साहित्य में स्थापित कर दिया। १८९७ में ‘दुनिया के कगार पर’ पहला कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ। १९०१ में कविता-संग्रह ‘पतझड़’ प्रकाशित हुआ। ‘पतझड़’ कविता-संग्रह पर रूस की विज्ञान अकादमी द्वारा पूश्किन पुरस्कार मिला। १९३३ में बूनिन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए। ७ व ८ नवंबर १९५३ की मध्यरात्रि को निधन।
अनिल जनविजय
मास्को विश्वविद्यालय, मास्को
ई मेल : aniljanvijay@gmail.com
15 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार।
बूनिन ने, मुझे लगता है कि लघुकथाएँ भी काफी लिखी हैं। सही स्थिति तो भाई जनविजय ही बता सकते हैं। 'डर' कविता ने मन को मोह लिया। ग़ज़ब का अनुवाद है--एक-एक भाव को ज्यों का त्यों भीतर उतारता हुआ। निर्भरता किस क़दर आदमी को कमजोर बनाती है और आस्थाएँ किस क़दर उसको बल प्रदान करती हैं, यह इस कविता में बहुत ही खूबसूरती के साथ व्यक्त हुआ है।
KAVITAAYEN ACHCHHEE HAIN.SUNDAR
ANUWAAD KE LIYE ANIL JEE KO
BADHAAEE
जानवरों के पास होती है मांद
पक्षियों के पास कोई घोसला
धड़का दिल मेरा उदासी के साथ
घुसा जब अजनबी किराये के घर में
पुराना एक झोला था पास
बहुत ही अच्छा अनुवाद किया है अनिल जी ने .....
कविता एक गहरे विषाद में लिखी गयी है ....कवि के दर्द को अनुभव किया जा सकता है .....!!
jeevan aaur sangharsh kee kavitaayen prastut karne ke liye badhaai Anil jee aur Subhash jee dono ko. shabd jeevan ke poonjee hote hain, aadamee ke sabase majboot hathiyaar. unhen sambhaalkar rakhane kee salaah dete hue boonin ek yoddhaa kee tarah dikhate hain. ghar se nikal jaane ke baad vahee shbd unkee dhaal bante hain. achchhee rachanaayen.
सुंदर कविताओं से मिलाने के लिए आभार.
सहज शब्दों में बेहतरीन अनुवाद...अच्छा लगा बधाई...!
रुसी कवि बूनिन की कविताओं में गहरा विषाद है ,जिसके लिए वे जाने जाते हैं .यह अनिल जनविजय की अनुवाद कला और कविता की गहरी समझ का परिणाम है कि पूरी भावनात्मक गहराई कविताओं में जीवित बनी रही .बहुत पुराने मित्र से बहुत अरसे वाद नीरव जी के माध्यम से और कविताओं के म्माद्ध्यम से मुलाकात हुई .हार्दिक बधाई.
बहुत सुन्दर कविताएं और उतना सुन्दर अनुवाद.
इन कविताओं को पढ़वाने के लिए आभार.
चन्देल
subhash jee
pranam !
anil jee ,
namasakr !
behad sunder kavitaon ke anuwad ke liye anil jee ka aabhar .
DIL KO CHOONE WALI HAI ,
SAADAR !
१९९३ में बूनिन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए।
१९९३ नहीं, १९३३ में। देखें।
प्रिय सोनू जी, जानकारी के लिए आभारी हूँ। गलती को सही कर दिया गया है।
सुभाष नीरव
priya bhai subhash jee itni achchhi rachnaon ko padvane ke liye apna aabhar vyakt kartaa hoon
ashok andrey
priya bhai subhash jee itni achchhi rachnaon ko padvane ke liye apna aabhar vyakt kartaa hoon
ashok andrey
achi kavita hai.....
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