मित्रो, सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग 'आरसी' से पता चला कि पंजाबी कवि सरोज सुदीप अब नहीं
रहे। तमन्ना जी ने अपने ब्लॉग 'आरसी' पर
उनकी पुस्तक 'देवी' में से कुछ चुनिंदा
पंजाबी कविताएँ प्रकाशित की हैं जिन्हें सुदीप जी ने अपनी दौहित्री 'देवी' को मुखातिब होकर लिखी थीं। वहीं से साभार लेकर
कुछ कविताओं का हिंदी रूपांतर मैं यहाँ 'सेतु साहित्य'
के पाठकों के समक्ष रखते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि दे रहा
हूँ।
-सुभाष
नीरव
पंजाबी कविता
देवी - कुछ
कविताएँ
-सरोद सुदीप
हिंदी
रूपांतरण : सुभाष नीरव
(1)
न चंचल पवन
न नाचना-कूदना
न किसी गीत का
सुर-सिरा
देवी
आराम से
सो रही है
वो जागे तो
मैं उसकी तोतली जुबान के संग
अपनी चुप जोड़ दूँगा
जो भूलें हुईं
उनके लिए
क्षमा मांग लूँगा
मेरे झुके हुए सिर के नीचे
वह झुककर झांकेगी
दो छोटी दंत पंक्तियों में
हँस पड़ेगी
उसके जागने की प्रतीक्षा में
मैं हाथ जोड़े
बैठा हूँ...।
(2)
देवी मेरे
पीछे-पीछे
चक्कर पर
चक्कर लगाती फिरती है
खेलती-खेलती
मुझे देखती जो
रहती है
मौन रह कर
मेरी साँसों
में
अपनी साँसे
घोलती
‘बहार’ में रहती है
मैं बूढ़े वृक्ष की भाँति
दूर तक
शाखाएँ फैलाये
उसको चील-बलाओं
से
बचाने की
खातिर
उसके पीछे-पीछे
चलता रहता
हूँ...।
(3)
किसी के साज़
में
इतने सुर नहीं
पता नहीं
वो कौन-सा गीत
है
जो ढेर सारे
इकट्ठे सुर
लेकर
देवी के मुँह
में रहता है
वह ऐसे गीत
गाती है
जिसके अर्थ
किसी के पास नहीं
मैं देवी की
तरह
कभी भी
एक-सुर नहीं
हुआ
उसके पीछे
किसी देव की
सुरक्षा है
हे ईश्वर !
वह तेरे बिना
और कौन हो
सकता है!
(4)
जैसा-जैसा मैं
दिखाई देता हूँ
वैसा-वैसा मैं हूँ नहीं
देवी !
तू तो अँधेरे
में
दीये उठाये
फिरती है
एक दीया मुझे
भी दे दे
मैं तेरे
प्रकाश में
टिक जाना
चाहता हूँ
हमेशा-हमेशा
के लिए...।
(5)
मैंने स्वप्न
में देखा
विभिन्न रंगों
के फूल
देवी को
छिपाने की
जुगत में
कभी उसके सिर
को छूते
कभी दूर हट
जाते
देवी उनमें
खिलखिलाती
हँस रही थी
दो दाँत
चमचमाते
सिर के बाल
हवा में उड़ते
बहार बन-बन
बहते
जागने पर
ख़यालों-ख़यालों में
देर तक
मैं बिस्तर में
करवटें लेता रहा
इस मिले स्वर्ग को
संभाल-संभाल रखता रहा...।
(6)
देवी अपना
तौलिया
सिर पर टिकाये
कह रही है -
'यह
तौलिया मामू का
यह तौलिया
नानी का
यह तौलिया
नानू का
मैं उसकी आँखों में
निरंतर झांकता रहता हूँ
हाय! मेरा तौलिया कहाँ है!
मेरा तौलिया भी तो देवी
तेरे पास है
जिससे मैं तन-मन की
रोज़ मैल उतारता हूँ...।
00
साहित्यिक नाम : सरोद सुदीप
वास्तविक नाम : मोहन सिंह
जन्म : जगरांव (पंजाब)
निधन : नवंबर 2012
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह - बेनाम
बस्ती, उसनूं कहो, पराई
धरती, लओ इह खत पा देणा, ला बैले,
परले पार(चुनिंदा कविता), देवी। टैगोर की
कविताओं का पंजाबी अनुवाद 'गीतांजलि'।
काव्य नक्श(पंद्रह कवियों के बारे में संक्षिप्त निबंध)।
9 टिप्पणियां:
बहुत बहुत बहुत उम्दा रचनाएँ....एक बारगी पढ़ना अन्याय पूर्ण होगा....फिर आना होगा शेष रचना पढ़ने-
देवी को केन्द्र में रखकर कही गई सभी कविताएं अद्भुत हैं.
बधाई.
चन्देल
सरोद सुदीप उर्फ़ मोहन सिंह जो अब स्वर्गीय हैं की श्रद्धांजलि-स्वरूप प्रस्तुत इन कविताओं को देखकर मुझे लगता है कि सरोद जी ने अपने आराध्य के रूप में देवी को उसी तरह अपने शब्दों में साधा था जिस प्रकार गुरूदेव रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने | इनकी कविताओं में रवीन्द्र काव्य-साधना की स्पष्ट छाप है | इन्हें पढ़कर बहुत अभिभूत हुआ |
sarod saroj jee ko ishwar shanti pradna kare . sahity k roop me sada ve hum sab ke samaksh rshege . sunder ksvitson kr snuwad ke liye bhi sadhuwad
saadar
sarod saroj jee ko ishwar shanti pradna kare . sahity k roop me sada ve hum sab ke samaksh rshege . sunder ksvitson kr snuwad ke liye bhi sadhuwad
saadar
बहुत अच्छी रचनाएं...
और अनुवाद भी बहुत अच्छा...
बहुत अच्छी रचनाएं...
और अनुवाद भी बहुत अच्छा...
Bahut hi acchi lagi Sudeep ki yeh kavitayen !
नीरव साहिब नमश्कार। एक ज़माने के बाद आपना ब्लॉग देखा है। सुदीप साहिब की नज़्मों का हिंदी में अनुवाद करके आपने बहुत अच्छा काम किया है। बहुत बहुत शुक्रिया जी। आशा है के जल्दी ही फ़ोन पर भी बातें होंगीं।
तनदीप तमन्ना कैनाडा
एक टिप्पणी भेजें