'अनूदित साहित्य' के अन्तर्गत इसबार प्रस्तुत हैं, पंजाबी के जाने-माने लघुकथाकार और "मिनी" त्रैमासिक पत्रिका के संपादक श्यामसुंदर अग्रवाल की दो उत्कृष्ट लघुकथाओं का हिन्दी अनुवाद -
संतू
प्रौढ़ उम्र का सीधा-सा संतू बेनाप बूट डाले पानी की बाल्टी उठा जब सीढ़ियाँ चढ़ने लगा तो मैंने उसे सचेत किया, "ध्यान से चढ़ना ! सीढ़ियों में कई जगह से ईंटें निकली हुई हैं। गिर न पड़ना।"
"चिन्ता न करो जी… मैं तो पचास किलो आटे की बोरी उठाकर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए भी नहीं गिरता।"
और सचमुच बड़ी-बड़ी दस बाल्टियाँ पानी ढोते हुए संतू का पैर एक बार भी नहीं फिसला।
दो रुपये का नोट और चाय का कप संतू को थमाते हुए पत्नी ने कहा- "तू रोज आकर पानी भर जाया कर।"
चाय की चुस्कियाँ लेते हुए संतू ने खुश होकर सोचा- 'रोज बीस रुपये बन जाते हैं पानी के। कहते हैं, अभी नहर में महीनाभर पानी नहीं आने वाला। मौज हो गई अपनी तो!'
उसी दिन नहर में पानी आ गया और नल में भी।
अगले दिन सीढ़ियाँ चढ़कर जब संतू ने पानी के लिए बाल्टी मांगी तो पत्नी ने कहा- " अब तो ज़रूरत नहीं। रात को ऊपर की टूटी में पानी आ गया था।"
"नहर में पानी आ गया !" संतू ने आह भरी और लौटने के लिए सीढ़ियाँ उतरने लगा। कुछ क्षण बाद ही किसी के सीढ़ियों में गिर पड़ने की आवाज़ हुई। मैंने दौड़कर देखा- संतू आंगन में औंधे मुँह पड़ा था। मैंने उसे उठाया। उसके माथे पर चोट लगी थी।
अपने माथे को पकड़ते हुए संतू बोला- "कल बाल्टी उठाये तो गिरा नही, आज खाली हाथ गिर पड़ा।"
मुझे लगा, उसको कल नहीं, आज सचेता करने की ज़रूरत थी!
यतीम
यतीम लड़के के दूध -से उजले कपड़ों की ओर ध्यान से देखते हुए जग्गू ने पूछा- "तू स्कूल जाता है?"
"हाँ, यतीमखाने के सारे बच्चे जाते हैं।"
"बड़ा किस्मत वाला है तू !" जग्गू ने यतीम लड़के को हसरतभरी दृष्टि से देखते हुए कहा।
"यतीम के साथ मज़ाक नहीं किया करते।" यतीम लड़का दु:खी मन से बोला।
"किस्मतवाला तो है ही ! मेरे पास न तेरे जैसे कपड़े हैं, न मैं स्कूल जा सकता हूँ।" जग्गू की आँखें भर आयीं।
"तू स्कूल नहीं जाता?… फिर सारा दिन क्या करता है?" यतीम लड़के ने हैरान होकर पूछा।
"होटल में बर्तन मांजता हूँ।"
"तू यतीमखाने क्यों नहीं आ जाता?"
"मन तो बहुत करता है, पर वे मुझे रखते नहीं।
"मन तो बहुत करता है, पर वे मुझे रखते नहीं।
"क्यों?…" यतीम लड़का हैरान था।
"मेरे मां-बाप जो जिंदा हैं।" कहते हुए जग्गू की आँखों में से आँसू टपकने लगे।
(हिन्दी रूपान्तर : सुभाष नीरव)