लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं
रुपिंदर मान
(मूल पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव)
लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं
जब हँसती हैं तो यूं लगती हैं
जैसे अनार ने मुँह खोला हो
रोते समय फव्वारे-सी होती हैं
सहमी हों तो
बिल्ली से डरे कबूतर जैसी
खामोश होती हैं तो
सरोवर में शांत पानी-सी लगती हैं
गुनगुनाती हैं तो
हौले-हौले बहती बयार की
‘सन-सन’ बन जाती हैं
बेचैन होती हैं
दरिया के वेग-सी लगती हैं
ख़रमस्तियाँ करते हुए
समुन्दर की लहरें बन जाती हैं
लड़कियाँ बहुत ही अच्छी होती हैं
धीमे-धीमे चलती हैं तो
टीलों से फिसलकर गुजरती हवाएं लगती हैं
नहा कर निकलती हैं तो
सुल्फे की लपट-सी दहकती हैं
अंधेरे में दौड़ती हैं तो
जलती-बुझती मोमबत्तियाँ लगती हैं
लड़कियाँ तो आग की नदियाँ हैं
सुस्ताती हैं तो और भी हसीन लगती हैं
लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं
रूठ जाती हैं तो बड़ा तंग करती हैं
जीत कर भी हारती हैं
हर ज्यादती को सहती हैं
मेमना बन कर पांवों में लेटती हैं
गुस्से-गिले को दूर फेंकती हैं
लड़कियों के बग़ैर लड़के निरे भेड़ा हैं
जंगल में गुम हुए कुत्ते-से
या फिर
शहर में खो गए ग्रामीण-से…
लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं।
·
रुपिंदर मान
(मूल पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव)
लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं
जब हँसती हैं तो यूं लगती हैं
जैसे अनार ने मुँह खोला हो
रोते समय फव्वारे-सी होती हैं
सहमी हों तो
बिल्ली से डरे कबूतर जैसी
खामोश होती हैं तो
सरोवर में शांत पानी-सी लगती हैं
गुनगुनाती हैं तो
हौले-हौले बहती बयार की
‘सन-सन’ बन जाती हैं
बेचैन होती हैं
दरिया के वेग-सी लगती हैं
ख़रमस्तियाँ करते हुए
समुन्दर की लहरें बन जाती हैं
लड़कियाँ बहुत ही अच्छी होती हैं
धीमे-धीमे चलती हैं तो
टीलों से फिसलकर गुजरती हवाएं लगती हैं
नहा कर निकलती हैं तो
सुल्फे की लपट-सी दहकती हैं
अंधेरे में दौड़ती हैं तो
जलती-बुझती मोमबत्तियाँ लगती हैं
लड़कियाँ तो आग की नदियाँ हैं
सुस्ताती हैं तो और भी हसीन लगती हैं
लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं
रूठ जाती हैं तो बड़ा तंग करती हैं
जीत कर भी हारती हैं
हर ज्यादती को सहती हैं
मेमना बन कर पांवों में लेटती हैं
गुस्से-गिले को दूर फेंकती हैं
लड़कियों के बग़ैर लड़के निरे भेड़ा हैं
जंगल में गुम हुए कुत्ते-से
या फिर
शहर में खो गए ग्रामीण-से…
लड़कियाँ बहुत अच्छी होती हैं।
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(‘लकीर-94’ से साभार)
बेटियाँ
सुरिंदर ढिल्लों
(मूल पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव)
मेरी बेटी
गहरी नींद में सो रही है
सूरज अपने पूरे जोबन पर आ चुका है
मैं बेटी को
प्यार से उठाने की कोशिश करता हूँ
पर वह करवट बदल कर
फिर गहरी नींद में सो जाती है
अब मैं खीझ कर
फिर से उसे उठाने लगता हूँ
तो मेरी बेटी उनींदी आँखों से
मेरी ओर देखती है
मानो वास्ता दे रही हो
‘पापा…
मुझे बचपन की नींद तो
जी-भरकर ले लेने दो
फिर तो मैंने
सारी उम्र ही जागना है…।
·
(‘लकीर-98’ से साभार)
सुरिंदर ढिल्लों
(मूल पंजाबी से हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव)
मेरी बेटी
गहरी नींद में सो रही है
सूरज अपने पूरे जोबन पर आ चुका है
मैं बेटी को
प्यार से उठाने की कोशिश करता हूँ
पर वह करवट बदल कर
फिर गहरी नींद में सो जाती है
अब मैं खीझ कर
फिर से उसे उठाने लगता हूँ
तो मेरी बेटी उनींदी आँखों से
मेरी ओर देखती है
मानो वास्ता दे रही हो
‘पापा…
मुझे बचपन की नींद तो
जी-भरकर ले लेने दो
फिर तो मैंने
सारी उम्र ही जागना है…।
·
(‘लकीर-98’ से साभार)
4 टिप्पणियां:
सेतु साहित्य को हिन्दी चिट्ठाकारों के बीच लाना बहुत सार्थक काम है। इस सद्कार्य के लिये बहुत-बहुत साधुवाद! इससे हिन्दी जगत बहुत लाभान्वित होगा।
बहुत सुन्दर अनुवाद... सुभाष जी इसके लिए मूल कवयित्री से भी अधिक बधाई के पात्र है। पढ्ते हुए लगा ही नहीं जैसे अनुवाद हो। बस...वाह।
--पहली कविता सौन्दर्यदृष्टि से समन्वित है। बहुत रुची। रुची तो दूसरी भी। दोनों अलग-अलग रस से निष्पन्न हुई हैं। अनुवाद भी काव्यात्मक है।
--आपके ब्लॊग पर पहले की टिप्पणियों को यहाँ पोस्ट के साथ नहीं दिखाने का प्रावधान था, सो अपनी टिप्पणी देख नहीं पा रही थी।
-- पन्जाबी में जिसे ‘भेड़’ व बहुवचन में ‘भेड़ाँ’ कहा जाता है, हिन्दी में उसे ‘भेड़ें’ कहा जाएगा।
---देखिये, कभी अपनी कुछ पंजाबी कविताएँ हिंदी अनुवाद करके आप को दे सकूँ, समय निकाल कर।
---लघुकथाएँ भी रोचक व प्रभावी हैं। आप को इस कार्य के लिए साधुवाद!
आदरणीया डा0 कविता जी,
आपकी इस टिप्पणी के लिए सच में बहुत आभारी हूँ। अपनी पंजाबी कविताओं का हिंदी अनुवाद अवश्य भेजें।
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