शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

अनूदित साहित्य



पंजाबी कविता

जुगनूं की जून
परमिंदर सोढ़ी

हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव

एक पल रुकना
फूल के पास बैठना
तेरी ओर देखना

एक पल रुकना
नंगे पैर चलना
तेरे हाथों को छूना

एक पल रुकना
ज़िन्दगी को चूमना
तेरे पास पास होना

इससे परे
जो भी है
वह मेरा नहीं है

मुझे रेत के
पहाड़ पर
खड़ा न कर

मुझे वीत गए
वक़्त की
सूली पर न टांग

मैं भूतों के संग
लड़ना नहीं चाहता

मेरी हस्ती
किसी जुगनूं की
एक क्षण लंबी
टिमटिम से अधिक
कुछ नहीं है

मुझे बरसों और
सदियों से
न नाप

मैं अब हूँ
शाम तक होऊँ
या न होऊँ

मैं यहाँ हूँ
मुझे यहीं
होने दे

अब और यहीं
इस पल
मैं सारे का सारा
तेरा हूँ…
0
(यह कविता तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग आरसी पर 14 फरवरी 13 के अंक में पंजाबी में प्रकाशित हुई है। वहीं से साभार लेकर हिंदी अनुवाद दिया जा रहा है।)

परमिंदर सोढ़ी
वर्तमान निवास : ओसाका,जापान
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह : उत्सव, तेरे जाण तों बाद, इक चिड़ी ते महानगर, सांझे साह लैंदियां, झील वांग रुको, पत्ते दी महायात्रा(समूची कविता हिंदी व गुरमुखी में)
अनुवाद : आधुनिक जापानी कहानियाँ, सच्चाइयों के आर-पार, चीनी दर्शन ताओवाद, जापानी हाइकु शायरी, धम्मपद, गीता, अजोकी जापानी कविता
सम्पादन : संसार प्रसिद्ध मुहावरे। वार्ता : रब दे डाकिये और अजोकी जापानी कविता(मासिक अक्खर का विशेष अंक)।
अभी हाल में नया कविता संग्रह पल छिण जीणा प्रकाशित हुआ है।

सोमवार, 3 दिसंबर 2012

अनूदित साहित्य





मित्रो, सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग 'आरसी' से पता चला कि पंजाबी कवि सरोज सुदीप अब नहीं रहे। तमन्ना जी ने अपने ब्लॉग 'आरसी' पर उनकी पुस्तक 'देवी' में से कुछ चुनिंदा पंजाबी कविताएँ प्रकाशित की हैं जिन्हें सुदीप जी ने अपनी दौहित्री 'देवी' को मुखातिब होकर लिखी थीं। वहीं से साभार लेकर कुछ कविताओं का हिंदी रूपांतर मैं यहाँ 'सेतु साहित्य' के पाठकों के समक्ष रखते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि दे रहा हूँ।
-सुभाष नीरव

पंजाबी कविता

देवी - कुछ कविताएँ
-सरोद सुदीप
हिंदी रूपांतरण : सुभाष नीरव


(1)
न चंचल पवन
न नाचना-कूदना
न किसी गीत का
सुर-सिरा
देवी
आराम से
सो रही है

वो जागे तो
मैं उसकी तोतली जुबान के संग
अपनी चुप जोड़ दूँगा
जो भूलें हुईं
उनके लिए
क्षमा मांग लूँगा

मेरे झुके हुए सिर के नीचे
वह झुककर झांकेगी
दो छोटी दंत पंक्तियों में
हँस पड़ेगी

उसके जागने की प्रतीक्षा में
मैं हाथ जोड़े बैठा हूँ...।


(2)
देवी मेरे पीछे-पीछे
चक्कर पर चक्कर लगाती फिरती है
खेलती-खेलती
मुझे देखती जो रहती है
मौन रह कर
मेरी साँसों में
अपनी साँसे घोलती
बहार में रहती है

मैं बूढ़े वृक्ष की भाँति
दूर तक
शाखाएँ फैलाये
उसको चील-बलाओं से
बचाने की खातिर
उसके पीछे-पीछे
चलता रहता हूँ...।


(3)
किसी के साज़ में
इतने सुर नहीं

पता नहीं
वो कौन-सा गीत है
जो ढेर सारे
इकट्ठे सुर लेकर
देवी के मुँह में रहता है

वह ऐसे गीत गाती है
जिसके अर्थ किसी के पास नहीं

मैं देवी की तरह
कभी भी
एक-सुर नहीं हुआ

उसके पीछे
किसी देव की सुरक्षा है
हे ईश्वर !
वह तेरे बिना
और कौन हो सकता है!


(4)
जैसा-जैसा मैं दिखाई देता हूँ
वैसा-वैसा मैं हूँ नहीं
देवी !

तू तो अँधेरे में
दीये उठाये फिरती है
एक दीया मुझे भी दे दे
मैं तेरे प्रकाश में
टिक जाना चाहता हूँ
हमेशा-हमेशा के लिए...।

(5)
मैंने स्वप्न में देखा
विभिन्न रंगों के फूल
देवी को
छिपाने की जुगत में
कभी उसके सिर को छूते
कभी दूर हट जाते
देवी उनमें खिलखिलाती
हँस रही थी
दो दाँत चमचमाते
सिर के बाल हवा में उड़ते
बहार बन-बन बहते

जागने पर
ख़यालों-ख़यालों में
देर तक
मैं बिस्तर में
करवटें लेता रहा
इस मिले स्वर्ग को
संभाल-संभाल रखता रहा...।

(6)
देवी अपना तौलिया
सिर पर टिकाये
कह रही है -
'यह तौलिया मामू का
यह तौलिया नानी का
यह तौलिया नानू का

मैं उसकी आँखों में
निरंतर झांकता रहता हूँ
हाय! मेरा तौलिया कहाँ है!

मेरा तौलिया भी तो देवी
तेरे पास है
जिससे मैं तन-मन की
रोज़ मैल उतारता हूँ...।

00


साहित्यिक नाम : सरोद सुदीप
वास्तविक नाम : मोहन सिंह
जन्म : जगरांव (पंजाब)
निधन : नवंबर 2012
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह - बेनाम बस्ती, उसनूं कहो, पराई धरती, लओ इह खत पा देणा, ला बैले, परले पार(चुनिंदा कविता), देवी। टैगोर की कविताओं का पंजाबी अनुवाद 'गीतांजलि'। काव्य नक्श(पंद्रह कवियों के बारे में संक्षिप्त निबंध)।