रविवार, 22 अगस्त 2010

अनूदित साहित्य


रूसी कविता

इवान बूनिन की दो कविताएँ
मूल रूसी से हिंदी अनुवाद : अनिल जनविजय

शब्द

मौन हैं समाधियाँ और कब्रें
चुप हैं शव और अस्थियाँ
सिर्फ़ जीवित हैं शब्द झबरे

अँधेरे में डूबे हैं महीन
यह दुनिया कब्रिस्तान है
सिर्फ़ शिलालेख बोलते हैं प्राचीन

शब्द के अलावा खास
और कोई सम्पदा नहीं है
हमारे पास

इसलिए सम्भाल कर रखो इन्हें
अपनी पूरी ताकत भर
इन द्वेषपूर्ण दु:ख-भरे दिनों में

देना न इन्हें कहीं तुम फेंक
बोलने की यह ताकत ही
हमारी अमर उपलब्धि है एक।
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डर

पक्षियों के पास होता है घोंसला
जानवरों के पास कोई मांद
कितना दु:ख हुआ था उस दिन मुझे
जब निकल आया मैं बाहर
पिता के घर की दीवारें फांद

कहा- विदा, विदा
मैंने बचपन के घर को

जानवरों के पास होती है मांद
पक्षियों के पास कोई घोसला
धड़का दिल मेरा उदासी के साथ
घुसा जब अजनबी किराये के घर में
पुराना एक झोला था पास
और मन में हौसला…

सलीब बना छाती पे मैंने दूर किया
जीवन के हर डर को !

१० अक्तूबर १८७० को रूस के वोरोनेझ नगर में जन्म। १५ वर्ष की उम्र में ही कविता लिखने लगे। १८९६ में हेनरी लाँगफेलो की कविताओं का बूनिन द्वारा किए गए अनुवाद ने उन्हें साहित्य में स्थापित कर दिया। १८९७ में ‘दुनिया के कगार पर’ पहला कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ। १९०१ में कविता-संग्रह ‘पतझड़’ प्रकाशित हुआ। ‘पतझड़’ कविता-संग्रह पर रूस की विज्ञान अकादमी द्वारा पूश्किन पुरस्कार मिला। १९३३ में बूनिन नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए। ७ व ८ नवंबर १९५३ की मध्यरात्रि को निधन।




अनुवादक संपर्क :
अनिल जनविजय
मास्को विश्वविद्यालय, मास्को
ई मेल : aniljanvijay@gmail.com