शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

अनूदित साहित्य


पंजाबी कविता


तू मिलना ज़रूर…
सुरजीत

हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव

तू बेशक
कड़कती धूप बनकर मिलना
या गुनगुनी दोपहर की गरमाहट बन
घोर अंधेरी रात बनकर मिलना
या सफ़ेद-दुधिया चाँदनी का आँगन बन

मैं तुझे पहचान लूँगी
खिड़की के शीशे पर पड़तीं
रिमझिम बूँदों की टप-टप में से
दावानल में जलते गिरते
दरख़्तों की कड़-कड़ में से

मलय पर्वत से आतीं
सुहानी हवाओं की
सुगंधियों में मिलना
या हिमालय पर्वत की
नदियों के किनारे मिलना

धरती की कोख में पड़े
किसी बीज में मिलना
या किसी बच्चे के गले में लटकते
ताबीज़ में मिलना
लहलहाती फ़सलों की मस्ती में
या गरीबों की बस्ती में मिलना
पतझड़ के मौसम में
किसी चरवाहे की नज़र में उठते
उबाल में मिलना
या धरती पर गिरे सूखे पत्तों के
उछाल में मिलना

मैं तुझे पहचान लूँगी…
किसी भिक्क्षु की चाल में से
किसी नर्तकी के नृत्य की लय में से
किसी वीणा के संगीत में से
किसी हुजूम के शोर में से।

तू मिलना बेशक
किसी अभिलाषी की आँख का आँसू बन
किसी साधक के ध्यान का चक्षु बन
किसी मठ के गुम्बद की गूँज बन
या रास्ता खोजता सारस बन
तू मिलना ज़रूर
मैं तुझे पहचान लूँगी।
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पंजाबी की चर्चित कवयित्री।
प्रकाशित कविता संग्रह –‘शिरकत रंग’
वर्तमान निवास : टोरोंटो (कनैडा)
संप्रति : टीचिंग।
ब्लॉग – सुरजीत (http://surjitkaur.blogspot.com)
ई मेल : surjit.sound@gmail.com