रविवार, 4 अक्तूबर 2009

अनूदित साहित्य


नेल्सन मंडेला के पत्र और विनी मंडेला से तलाक
प्रस्तुति और अनुवाद : यादवेन्द्र

4 फरवरी 1985
तुम्हारी बहन की मृत्यु के बारे में जब से जिंजी(बेटी) का टेलिग्राम मिला है, तब से मैं गहरे सदमे में हूँ और अब तक उससे उबर नहीं पाया हूँ। ऐसे मौकों पर मुझे बहुत शिद्दत से यह अहसास होता है कि मैं तुम्हें अपनी गैरहाज़िरी में असंख्य मुश्किलों व संकटों के बीच छोड़कर आ गया हूँ। पता नहीं, मैंने यह सही किया या गलत। इस मुद्दे पर विचार मंथन करने के बाद मैं बार बार अपने पुराने निर्णय पर ही पहुँचता हूँ, पर यह ज़रूर लगता है कि चौबीस वर्ष पहले इस फैसले तक पहुँचने से पहले मुझे अपने मन को और गहरे स्तर पर टटोलना चाहिए था।

मुझे लगता है कि विवाह का वास्तविक महत्व दो व्यक्तियों को परस्पर प्यार के बंधन में बांधना ही नहीं है बल्कि मुश्किल पलों में एक दूसरे पर अटूट भरोसा रखने की पूरी गारंटी देना भी है।

तुम्हारा प्रेम व सहयोग, तुम्हारे शरीर की उन्मुक्त ऊष्मा, परिवार को उपहारस्वरूप दिए गए तुम्हारे मोहक बच्चे, दोस्तों का तुम्हारा दायरा, तुम्हारे प्यार और साथ की उम्मीदें - मेरे लिए तो जीवन और आनन्द के यही पर्याय हैं। मेरे जीवन में वैसा प्रेम साक्षात् उपस्थित है जिसे प्रेम किया जाना चाहिए और जिस पर भरपूर भरोसा किया जाना चाहिए। इसी स्त्री के प्रेम और धैर्यवान सहयोग ने मेरे अन्दर शक्ति तथा उम्मीदों की लौ प्रज्जवलित रखी।

कई बार इन सबके रहते हुए भी प्रेम तथा आनन्द, भरोसे व उम्मीदों के भाव तिरोहित हो गए और मन गहरी व्यथा से भर गया - मेरी अंतरात्मा तथा अपराधबोध मेरे सम्पूर्ण अस्तित्व पर हावी हो गए। मेरे मन में बार बार यह सवाल सिर उठाने लगा कि एक युवा व अनुभवहीन स्त्री को निर्दय मरूभूमि में छोड़ कर चले जाने के पर्याप्त कारण क्या मेरे पास थे ? यह तो उसे सड़कों पर लूटपाट करने वालों के बीच फेंक आने जैसा कृत्य था, वह भी तब जब सहारे और सुरक्षा की उसे सबसे ज्यादा दरकार थी।

यह सच्चाई भी मेरा पीछा नहीं छोड़ती कि हाल के कुछ महीनों में ही तुम्हें अपने परिवार के चार लोगों का विछोह बर्दाश्त करना पड़ा। बिलाशक यह एक गंभीर व असहनीय आघात है - अक्सर मेरे मन में आता है कि मैं इस मौकों पर तुम्हारे साथ होता तो तुम्हें अपने सीने से लगा लेता, तुम्हें उन सारी अच्छी बातों की याद दिलाता जो तुम्हारी वज़ह से अच्छी हो पाईं और परिवार में निरन्तर घटती रही विपदाओं को भुला पाने में तुम्हारी मदद कर पाता।

मैं बखूबी जानता हूँ कि तुम अपने लोगों का कितना ध्यान रखती हो - खासतौर पर परिवार का - पर जब भी तुम पर कोई विपदा आन पड़ती है, मुझे चिंता होने लगती है कि तुम इस पर कैसे पार पाओगी ? जिंजी के टेलीग्राम मिलने के बाद से निरंतर यही चिंता मुझे खाए जा रही है - यह चिंता तभी दूर हो पाएगी जब मैं तुम्हें अपने सामने ज़ाहिरा तौर पर देख पाऊँगा।
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विनी मंडेला से तलाक : एक वक्तव्य

मेरे और मेरी पत्नी कामरेड नोमजामो विनी मंडेला के आपसी रिश्तों को लेकर मीडिया में बहुत सारी बातें कही-सुनी जा रही है। यह वक्तव्य मुझे इसीलिए देना पड़ रहा है जिससे उन कयासों पर विराम लग सके और वास्तविक स्थिति स्पष्ट हो। मुझे भरोसा है कि इसके बाद भविष्य में अटकलबाजियों की गुंजाइश नहीं रह जाएगी।

कामरेड नोमजामो के साथ मैंने उस समय विवाह किया जब देश का स्वतंत्रता संग्राम नाजुक मोड़ पर था। हम दोनों ने साझा तौर पर अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस को मज़बूत करने का और देश से रंगभेदी नीतियाँ जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया था इसलिए कभी भी सहज पारिवारिक जीवन हम नहीं जी पाये। पर इन दबावों के रहते हुए भी अपने प्यार भरे आपसी रिश्तों और वैवाहिक बंधन के प्रति हमारा समर्पण दिनों दिन सघन होता गया।

रोबेन द्वीप पर जो दो दशक मैंने बिताए उस दौरान वे व्यक्तिगत तौर पर मेरे लिए अवलंब और सांत्वना का अनिवार्य संबल बनी रहीं। कामरेड नोमजामो बच्चों के पालन पोषण का दूभर बोझ एकाकी ही अपने कंधों पर वहन करती रहीं... सरकार ने उन्हें जो यातनाएं दीं उन सबको उन्होंने अनुकरणीय धैर्य से सहन किया और स्वातंत्र्य संघर्ष के अपने संकल्प से उन्हें कभी भी कोई लेशमात्र भी डिगा नहीं पाया। उनकी दृढ़ता देख कर उनके प्रति मेरा व्यक्तिगत सम्मान, प्रेम और स्नेह दिनों दिन बढ़ता गया है। इतना ही नहीं, पूरे विश्व ने उनके ऐसे गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। उनके प्रति मेरा प्रेम कभी समाप्त नहीं हो सकता।

यद्यपि पिछले कुछ समय से अनेक मुद्दों पर हमारे बीच मतभेद बढ़े हैं, और इसी को ध्यान में रख कर आपस में मिलकर हमने अलग रहने का फैसला किया। हमें लगा कि हम दोनों के लिए यही श्रेयस्कर होगा। मीडिया में उनके विरुद्ध जो भी लिखा और कहा जा रहा है, मेरा यह कदम उनसे कतई प्रभावित नहीं है... कामरेड नोमजामो के लिए जैसे मेरा सम्पूर्ण समर्थन पहले हुआ करता था, मेरी ओर से वह भविष्य में जीवन के कठिन क्षणों में भी वैसा ही मिलता रहेगा।

जहाँ तक व्यक्तिगत स्तर पर मेरी बात है, मुझे कामरेड नोमजामो के सान्निध्य में बिताए क्षणों का लेशमात्र भी अफ़सोस नहीं है। हमारी पहुँच और वश के बाहर की परिस्थितियाँ निरंतर हमें प्रतिकूल दिशाओं में ढकेलती गईं। किसी आरोप-प्रत्यारोप के बगैर आज मैं अपनी पत्नी से अलग हो रहा हूँ। इस नाजुक घड़ी में भी मुझे एक-एक करके वे तमाम क्षण याद आ रहे हैं जब मैं पहली बार उनसे मिला था। मैं जेल के अन्दर रहूँ या बाहर - उनके लिए जो प्यार और स्नेह अपने मन में संजोए रहा हूँ उन सबको याद करते हुए मैं उन्हें गले लगाता हूँ।

देवियो और सज्जनों, मुझे विश्वास है कि इस मौके पर आप भी उस पीड़ा का अनुमान कर पा रहे होंगे जिनसे मुझे गुजरना पड़ रहा है।

मुझे यह मानने में कोई संकोच नहीं कि पति और पिता के अपने सामान्य पारिवारिक दायित्वों का कुशलतापूर्वक निर्वाह न कर पाने की पीड़ा मेरे मन पर इस कदर हावी हो जाती थी कि कई ज़रूरी बातें मेरी निगाहों से कदाचित् छूटती चली गईं। मैं यह स्वीकार करने में भी एक पल नहीं लगाऊँगा कि जेल में रहते हुए मेरा जीवन जितना कठिन और दूभर था, मेरी पत्नी को उससे ज्यादा यातनापूर्ण जीवन जीना पड़ा - इसके बाद जेल से छूटने के बाद भी मुझे कम और मेरी पत्नी को ज्यादा पीड़ादायी अनुभवों से गुजरना पड़ा। विडम्बना यह रही कि जिस व्यक्ति से उन्होंने विवाह किया, वह जल्दी ही उन्हें अकेला छोड़ कर चला गया और एक मिथक बन गया - लम्बे अंतराल पर वह मिथक अपने घर लौटा, पर अंतत: साबित हुआ एक अदना आदमी ही!

अपनी बेटी जिंजी की शादी के अवसर पर मैंने कहा था कि स्वतंत्रता सैनानियों के भाग्य में अस्थिर पारिवारिक जीवन ही लिखे होते हैं। मेरे जीवन की तरह जब संघर्ष ही आपका जीवन बन जाए तो इसमें परिवार के लिए अलग से कोई जगह बचती ही कहाँ है। यह सदैव मेरे जीवन के सबसे बड़े पछतावों में रहा है, और जीवन की जो दिशा मैंने चुनी उसका सर्वाधिक पीड़ादायी पक्ष भी यही है।

मैंने इसी अवसर पर कहा था कि अपने बच्चों की पीठ पर हाथ रखे बगैर ही हमने उन्हें बड़ा होने को छोड़ दिया। जब लम्बे कारावास से मुक्त होकर मैं बच्चों के पास पहुँचा तो उन्होंने तल्खी से कहा - 'हमें लगता था कि हमारे भी पिता हैं और चाहे गैरहाज़िरी लम्बी हो, वे हमारे बीच फिर लौट आएंगे। पिता घर लौटे तो पर तुरंत ही हमें अकेला छोड़ कर वे घर से फिर निकल पड़े क्योंकि अब वे पूरे देश के पिता बन गए थे।' तब हमारी हिम्मत जवाब दे गई। देश का पिता बनना एक नायाब सम्मान है लेकिन एक परिवार का पता बनने में सुख ज्यादा है - पर अफ़सोस यह सुख मेरे हिस्से बहुत थोड़ा ही आ पाया।
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(13 अप्रैल 1992 को प्रेस कांफ्रेस में पढ़ा गया वक्तव्य - नेल्सन मंडेला की आत्मकथा 'लांग वाक टु फ्रीडम' से उद्धृत।)


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