बुधवार, 11 मई 2011

अनूदित साहित्य



पंजाबी कविता


प्रभजोत सोही की दो कविताएँ
हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव

जब चुप बोलती है…

अक्सर चुप नहीं बोलती
पर जब कभी
चुप बोलती है तो
दर्द का अनुवाद होती है
हाथों से फिसल गए अवसरों
अथवा
चोरी किए पलों की
मीठी खारिश होती है

अक्सर चुप नहीं बोलती
पर जब कभी
चुप बोलती है
तो सैलाब होती है
बह जाते हैं मुकुट
गल जाती हैं पदवियाँ
बगावती सीनों में से निकली
ललकार… हू-ब-हू
इंकलाब होती है

अक्सर चुप नहीं बोलती
पर जब कभी
चुप बोलती है तो
कई बार
अन्दर उतर जाती है
सांसों के संग तैरती
महीन पलों को पकड़ती
दायरे और बिन्दु तक का
सफ़र तय करती
कुछ अनकहा भी
कह जाती है

अक्सर चुप नहीं बोलती…
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अनहद

ज़िन्दगी शिकायत बनी
खड़ी है सामने
जज्बात पर काबिज़
‘अक्ल’
फेंक चुकी है
आख़िरी हथियार
ताकत का नशा…
अक्ल का गर्व
कमज़ोरी की शर्मिन्दगी
सब तरह के भाव
ज़िन्दगी को
कह गए हैं अलविदा

अब तो शून्य है सिर्फ़
और इस शून्य की चीख़
गूँज रही है
अन्दर… बाहर
और मैं कर रहा हूँ प्रतीक्षा
किसी अनहद नाद की…
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(प्रभजोत सोही की कुछ पंजाबी कविताएं तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग “आरसी’ के 8 मई 2011 के अंक में प्रकाशित हुई हैं। उन्हीं में से इन दो कविताओं का हिंदी अनुवाद हम ‘सेतु साहित्य’ के हिंदी पाठकों को उपलब्ध करा रहे हैं। आशा है, हिंदी के पाठक इन्हें पसन्द करेंगे।)





पंजाब के ज़िला-लुधियाना के एक गाँव सोहियां में निवास।
एक कविता संग्रह पंजाबी में “किवें कहां” वर्ष 2005 में प्रकाशित।