सोमवार, 3 दिसंबर 2012

अनूदित साहित्य





मित्रो, सुश्री तनदीप तमन्ना के पंजाबी ब्लॉग 'आरसी' से पता चला कि पंजाबी कवि सरोज सुदीप अब नहीं रहे। तमन्ना जी ने अपने ब्लॉग 'आरसी' पर उनकी पुस्तक 'देवी' में से कुछ चुनिंदा पंजाबी कविताएँ प्रकाशित की हैं जिन्हें सुदीप जी ने अपनी दौहित्री 'देवी' को मुखातिब होकर लिखी थीं। वहीं से साभार लेकर कुछ कविताओं का हिंदी रूपांतर मैं यहाँ 'सेतु साहित्य' के पाठकों के समक्ष रखते हुए उन्हें अपनी विनम्र श्रद्धांजलि दे रहा हूँ।
-सुभाष नीरव

पंजाबी कविता

देवी - कुछ कविताएँ
-सरोद सुदीप
हिंदी रूपांतरण : सुभाष नीरव


(1)
न चंचल पवन
न नाचना-कूदना
न किसी गीत का
सुर-सिरा
देवी
आराम से
सो रही है

वो जागे तो
मैं उसकी तोतली जुबान के संग
अपनी चुप जोड़ दूँगा
जो भूलें हुईं
उनके लिए
क्षमा मांग लूँगा

मेरे झुके हुए सिर के नीचे
वह झुककर झांकेगी
दो छोटी दंत पंक्तियों में
हँस पड़ेगी

उसके जागने की प्रतीक्षा में
मैं हाथ जोड़े बैठा हूँ...।


(2)
देवी मेरे पीछे-पीछे
चक्कर पर चक्कर लगाती फिरती है
खेलती-खेलती
मुझे देखती जो रहती है
मौन रह कर
मेरी साँसों में
अपनी साँसे घोलती
बहार में रहती है

मैं बूढ़े वृक्ष की भाँति
दूर तक
शाखाएँ फैलाये
उसको चील-बलाओं से
बचाने की खातिर
उसके पीछे-पीछे
चलता रहता हूँ...।


(3)
किसी के साज़ में
इतने सुर नहीं

पता नहीं
वो कौन-सा गीत है
जो ढेर सारे
इकट्ठे सुर लेकर
देवी के मुँह में रहता है

वह ऐसे गीत गाती है
जिसके अर्थ किसी के पास नहीं

मैं देवी की तरह
कभी भी
एक-सुर नहीं हुआ

उसके पीछे
किसी देव की सुरक्षा है
हे ईश्वर !
वह तेरे बिना
और कौन हो सकता है!


(4)
जैसा-जैसा मैं दिखाई देता हूँ
वैसा-वैसा मैं हूँ नहीं
देवी !

तू तो अँधेरे में
दीये उठाये फिरती है
एक दीया मुझे भी दे दे
मैं तेरे प्रकाश में
टिक जाना चाहता हूँ
हमेशा-हमेशा के लिए...।

(5)
मैंने स्वप्न में देखा
विभिन्न रंगों के फूल
देवी को
छिपाने की जुगत में
कभी उसके सिर को छूते
कभी दूर हट जाते
देवी उनमें खिलखिलाती
हँस रही थी
दो दाँत चमचमाते
सिर के बाल हवा में उड़ते
बहार बन-बन बहते

जागने पर
ख़यालों-ख़यालों में
देर तक
मैं बिस्तर में
करवटें लेता रहा
इस मिले स्वर्ग को
संभाल-संभाल रखता रहा...।

(6)
देवी अपना तौलिया
सिर पर टिकाये
कह रही है -
'यह तौलिया मामू का
यह तौलिया नानी का
यह तौलिया नानू का

मैं उसकी आँखों में
निरंतर झांकता रहता हूँ
हाय! मेरा तौलिया कहाँ है!

मेरा तौलिया भी तो देवी
तेरे पास है
जिससे मैं तन-मन की
रोज़ मैल उतारता हूँ...।

00


साहित्यिक नाम : सरोद सुदीप
वास्तविक नाम : मोहन सिंह
जन्म : जगरांव (पंजाब)
निधन : नवंबर 2012
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह - बेनाम बस्ती, उसनूं कहो, पराई धरती, लओ इह खत पा देणा, ला बैले, परले पार(चुनिंदा कविता), देवी। टैगोर की कविताओं का पंजाबी अनुवाद 'गीतांजलि'। काव्य नक्श(पंद्रह कवियों के बारे में संक्षिप्त निबंध)।

मंगलवार, 20 नवंबर 2012

अनूदित साहित्य



चित्र : बलराम अग्रवाल
हिमाचली कविता
दो कविताएं/अशोक दर्द
हिंदी रूपांतर : स्वयं कवि द्बारा


बड़ा होने के लिए

ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरे
गगनचुम्बी महलों का क्या लाभ
जहाँ-
सम्वेदनाओं के नरम-कोमल फूलों के लिए
कोई जगह ही न हो।

सोने-चाँदी से सजी
उन ड्योढ़ियों का क्या फायदा
जिसके दर से कोई दरवेश
बिना दुआ दिए ही
खाली झोली लौट जाए।

गगनचुम्बी गुम्बदों के नीचे
भरे हुए गोदामों का क्या औचित्य
जिसकी मुंडेरों पर
बैठी चिड़िया
भूखी ही उड़ जाए
और
मुट्ठीभर दाने फेंकने के लिए
जिनके बाशिंदों के
कांपने लगें हाथ।

ऐसे गगनचुम्बी महलों से तो
वह कुटिया कहीं अच्छी है
जहाँ
सम्वेदनाओं के पुष्प कुम्हलाते नहीं
दरवेश बिना दुआ दिए
नहीं लौटते खाली हाथ
और चिड़ियाँ
मुंडेर पर भूखे पेट नहीं फुदकतीं।

सच तो यह है मेरे मित्र !
घर बड़ा होने से
कोई बड़ा नहीं होता
दिल बड़ा होना चाहिए।
0

माँ नहीं बदली

पंख उग आने पर
सिखा देती है
माँ जब उड़ना
तब
कल के नन्हें चूजे
परिंदे बन
उड़ जाते हैं
घोंसला छोड़
उन्मुक्त आकाश में
और फिर
नहीं पहचानते वे माँ को।

युग बीते
माँ नहीं बदली
वह अब भी
सेती है अंडे
ढोती है चोंच भर
अन्न-पानी
सुबह से शाम तक
भूखी-प्यासी रहकर
अपनी संतति की ममता में
झपट पड़ती है उन पर
जो देखते हैं
टेढ़ी आँख से
उसके घोंसले की ओर।

बहुत कुछ बदला
पर, युग बीतने के बाद भी
नहीं बदली तो
माँ नहीं बदली।
00


जन्म : 23 अप्रैल 1966, गाँव- घट्ट (टप्पर), ज़िला-चम्बा(हिमाचल प्रदेश)

शिक्षा : शास्त्री, प्रभाकर, जे.बी.टी., एम..(हिंदी), बी.एड ।

सरल स्वभावी एवं मृदुभाषी अशोक दर्द यूं तो एक शिक्षक हैं और राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, बनीखेत(ज़िला- चम्बा) में बतौर भाषा-अध्यापक कार्यरत हैं, लेकिन साथ ही साथ हिमाचल के एक बेहद संवेदनशील युवा कवि के रूप में भी ख्यात हैं। इनकी कविता में प्रकृति और मानव जन-जीवन की संवेदनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति हमें मिलती है। हिंदी और हिमाचली भाषा में रचनारत इस लेखक/कवि की रचनाएँ देश की अनेक छोटी-बड़ी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय स्तर के अनेक संकलनों में कविताएं संकलित हुई हैं। इन्होंने करीब डेढ़ दर्जन एल्बमों में हिमाचली गीत लेखन व भजन लेखन किया है। आकाशवाणी शिमला और धर्मशाला से कविताओं का निरंतर पाठ होता रहता है। एक कविता संग्रह हिंदी में अंजुरी भर शब्द प्रकाशित हो चुका है और चार कविता संग्रह प्रकाशनाधीन हैं। कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान(मथुरा, उत्तर प्रदेश), नीला आसमान साहित्य सम्मान(हिमखंड पत्रिका, मंडी,हिमाचल), न्यू ॠतुंभरा तुलसीदास सम्मान एवं साहित्य अलंकरण 2012 से नवाज़े जा चुके हैं।

सम्पर्क : प्रवास कुटीर, गाँव व डाकघर बनीखेत, तहसील- डलहौजी, ज़िला-चम्बा(हिमाचल प्रदेश)

टेलीफोन : 09418248262

ईमेल : ashokdard23@gmail.com

सोमवार, 27 अगस्त 2012

अनूदित साहित्य








पंजाबी कविता
दो कविताएँ/आसी
हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव

सिलसिला

कितनी हसीन थी
तेरी अलविदा की शाम
जी करता है -
तुझसे उम्र भर बिछुड़ता रहूँ।


तेरे मेरे पास

मैं तेरे करीब हूँ
जैसे नदिया के पास पानी हो
जैसे पानियों में रवानी हो
काग़ज़ी किश्तियों की कहानी हो
अल्हड़ की जवानी हो...


मैं तेरे समीप हूँ
खजूर पर अटकी पतंग की तरह
कब्र पर बैठे मलंग की तरह
हृदय में से उठती तरंग की तरह

मैं तेरे करीब हूँ
जैसे
चरवाहे का गीत हो
ज़माने की रीत हो
हवाओं में शीत हो

मैं इस तरह हूँ तेरे पास
ज्यों मेले में डरा हुआ बालक
सहम कर पकड़ी
माँ की उंगुली का ख़याल
रंगदार फिरकियों का फरफराहट…


मैं इस तरह
तेरे पास क्यों हूँ ?

तू इस तरह
मेरे पास क्यों नहीं ?
00

आसी
जन्म : 11 सितम्बर 1965, निधन : 3 नवंबर 2001
बहुत छोटी उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले इस पंजाबी कवि ने अपनी कविताओं से एक अलग पहचान बनाई थी। इन्होंने पंजाबी साहित्य को पाँच कविता संग्रह दिए - ' 'पुट्ठा घुकदा चरखा', 'उखड़ी अजान दी भुमिका', 'सहिजे सहिजे कहि', 'मैं उडाण विच हां' और ' 'निर्देशक'

रविवार, 13 मई 2012

अनूदित साहित्य













पंजाबी कविता
कुछ प्रश्न कविताएं
-दर्शन बुट्टर
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव


लिखी कोई नई कविता ?
कविता तो
समय लिखता है
मैं तो शब्दों को तरतीब देता हूँ।

आईना क्या कहता है ?
ज़रूरी नही
सुनेहरी फ्रेमों वाले
शीशों के अक्स भी सुनेहरी हों

यह भी ज़रूरी नहीं
कि तिड़के शीशे में से
कोई चेहरा नज़र न आए।

कोई मुक्कदस किताब ?
ज़रूरत ही नहीं जिल्द की
बिखरे पन्नों को
प्रारंभ हो
अन्त तो
खुद ही लिख लेते है, सिरफिरे।

क्या मांगते हो ?
अगर दी हैं आँखें
तो अब
नज़र भी दे
अगर दिए हैं पैर
तो अब
सफ़र भी दे।

थकी तो नहीं उड़ान ?
राह तो बहुत रोका दहलीज ने
पर
जीने योग्य पैरों ने
पूरा कर ही लिया सफ़र को
नम तो बार-बार हुईं पलकें
पर
हँसने योग्य होंठों ने
घेर ही लिया- मुस्कानों को।
 
फिसले हैं कभी पैर ?
मख़मली लिबास पहनकर
सघन झाड़ियों में से
गुज़रा नहीं जाता, पल्ला बचाकर
कभी न कभी
कहीं न कहीं
रोक ही लेती है कोई
पल्लू पकड़कर।

इतनी बेगानगी ?
अब मैं
भावुक सफ़र नहीं
गंभीर अहसास ही हूँ
अब सिर्फ़
तेरी तलाश नहीं
अपनी तलाश भी हूँ।


उत्तर-आधुनिकता ?
हो सकता है
लुभावने शब्दों की जूठ को
इतनी शोहरत मिले
इस महफ़िल में
कि… सच के बोल ही
मनफी होकर रह जाएँ
तालियों के शोर में।
0
(उक्त कविताएं पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका हुण के जून-नवंबर 2005 के अंक में प्रकाशित हुई थीं। वहीं से लेकर इनका हिंदी अनुवाद किया गया है)



दर्शन बुट्टर
जन्म : 7 अक्तूबर 1954, गांव- खूही, तहसील-नाभा, ज़िला-पटियाला(पंजाब)
शिक्षा : एम ए (पंजाबी)
प्रकाशित पुस्तकें : कविता संग्रह औड़ दे बद्दल(1984), सल्हाबी हवा(1994), शबद,शहिर ते रेत(1996), खड़ावां(2001), दर्द मजीठी(2006) और महा कम्बणी(2009)

पुरस्कार/सम्मान : सिरोमणि पंजाबी कवि पुरस्कार- 2006(भाषा विभाग पंजाब, पटियाला), जनवादी कविता पुरस्कार-1999(जनवादी कविता मंच, पंजाब), सफ़दर हाश्मी पुरस्कार -2009(पंजाब राज्य बिजली बोर्ड लेखक सभा, पंजाब), बीबी स्वर्ण कौर यादगारी अवार्ड-2001(रोज़ाना नवां ज़माना, जालंधर) तथा अन्य अनेक पुरस्कार ।

सम्प्रति : अधिकारी, पंजाब एंड सिन्ध बैंक
सम्पर्क : 143/2, हीरा महल, नाभा-147201(पंजाब)
टेलीफोन : 01765-223110(घर), 098728 23110
ईमेल : darshansinghbuttar@gmail.com

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

अनूदित साहित्य


पंजाबी कविता


पंजाबी की बहुचर्चित लेखिका सुरिन्दर नीर ने पिछले दिनों फेसबुक पर नवतेज भारती जी की एक छोटी-सी बहुत खूबसूरत कविता पंजाबी में पोस्ट की। कविता मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैंने इसका तुरन्त हिंदी में अनुवाद किया। आजकल नवतेज जी दिल्ली में आए हुए हैं। मैंने उनका फोटो फेस बुक से लिया तथा उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी विकिपीडिया से ली। नवतेज भारती पंजाबी के बहुत बड़े और अग्रज कवि हैं। इन दिनों लंदन, ऑनटरियो में रहते हैं। पंजाबी और अंग्रेजी में इनकी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ‘सिम्बल दे फुल्ल’(1968), ‘लीला’ (1999)-(अजमेर रोडे के साथ), एंडलैस आई(2002) प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 1959, 1960 और 1961 में लगातार तीन वर्षों तक इन्हें कविता के लिए ‘बेस्ट पोइट आफ़ स्टेट अवार्ड’ से नवाज़ा जा चुका है और वर्ष 2003 में ‘बेस्ट ऑवरसीज़ ऑथर अवार्ड’ का भी सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। इनका मेल आई डी है- navtejbharati@gmail.com फोन नंबर है- 08826939917 नवतेज भारती जी फेसबुक पर भी उपलब्ध हैं-http://www.facebook.com/profile.php?id=1429587564&sk=wall


धरती की बोली
नवतेज भारती
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव

धरती की बात करते समय
हमारे शब्दों में
पत्तियों की हरियाली
चमकने लगती है
वृक्षों का साहस
समा जाता है

धरती की बात करते समय
हमारे शब्दों में
कपास खिल उठती है
आम टसकने लगते हैं

धरती की बात करते समय
हमारी बोली -
मीठी हो जाती है।
00

शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

अनूदित साहित्य






पंजाबी कविता

अमिया कुंवर की कविताएँ


ठंडक

तेरे मिलन के क्षण
जैसे मरुस्थल में से गुजरते हुए
दो घूंट जल मिलने पर
भीतर तक ठंडक पहुँच जाए।

ठौर

उम्रें बीतीं
रिश्तों के बीहड़ गाहते

तुझे देखा
ठौर मिल गई।


स्याही चूस

मुहब्बत से
लबालब भरा आपा
छलकने को बेताब
कहीं छलक न जाए
बिखर न जाए

इससे पहले
जज्बों की बूँद
ज़िन्दगी के सफ़े पर
धब्बा बन फैल जाए

आ, स्याही चूस बन
इस सफ़े पर बिछ जा
मेरे अस्तित्व को
अपने में सोख ले।


ख़ैरात

रूह को थी
एक बुरकी की भूख
एक घूंट की प्यास

तेरे सामने
काँसा करते ही
तूने अपने जिस्म की
सारी भूख, प्यास
इसकी खैरात कर दी।


यादों की राख

यादों की राख तले
अभी भी मुहब्बत के
अंगारे सुलगते हैं

नंगी उंगलियों से
राख खंगाली
तो अहसास हुआ
किसी रिश्ते की चिमटी नहीं मिली मुझे।


यादें

खूंटी से बांध कर रखी थीं
कब से
तेरी यादें
तुझे सामने देखते ही
रस्सी तुड़ाकर भाग गईं।


दुविधा

सिरहाने तेरी यादें
पैताने तेरी मुहब्बत
बाही - पीठ फेरे तेरा वजूद
समझ में नहीं आता
करवट किस तरफ़ बदलूँ...
00

पंजाबी की चर्चित कवयित्री।
प्रकाशित पुस्तकें : पहला कविता संग्रह हिंदी में 'समय गवाही देगा' 1987 में प्रकाशित। तीन कविता संग्रह पंजाबी में - छिणों की गाथा(2000), कवियो वाच(2006), धम्मी वेला(2009)। आलोचना की दो पुस्तकें - बिम्ब विधान और पंजाबी प्रगीत(2000) और गुरमुखी लिपि पर हिंदी भाषा का प्रभाव(2003)। दो संपादित पुस्तकें - अखरां दी जाई(2005) और जश्न जारी है(2006)। इसके अतिरिक्त 55 से अधिक पुस्तकों का अंग्रेजी और हिंदी से पंजाबी में, पंजाबी से हिंदी में अनुवाद। मुख्य तौर पर अमृता प्रीतम, नेशनल बुक ट्रस्ट, प्रथम बुक्स, अजीत कौर, कुसुम अंसल, सिम्मी हर्षिता, डा. संगत सिंह, देविंदर सिंह, डा. हरबंस सिंह चावला, कमल कुमार और हंसराज रहबर की पुस्तकों का अनुवाद।