रविवार, 11 नवंबर 2007

अनूदित साहित्य


रूसी लघुकथाएं


बोझ
लियो तोल्स्तोय

कुछ फौजियों ने दुश्मन के इलाके पर हमला किया तो एक किसान भागा हुआ खेत में अपने घोड़े के पास गया और उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा, पर घोड़ा था कि उसके काबू में ही नहीं आ रहा था।

किसान ने उससे कहा, "मूर्ख कहीं के, अगर तुम मेरे हाथ न आए तो दुश्मन के हाथ पड़ जाओगे।"

"दुश्मन मेरा क्या करेगा?" घोड़ा बोला।

"वह तुम पर बोझ लादेगा और क्या करेगा।"
"तो क्या मैं तुम्हारा बोझ नहीं उठाता?" घोड़े ने कहा, "मुझे क्या फ़र्क पड़ता है कि मैं किसका बोझ उठाता हूँ।"



देहाती की बुद्धि
लियो तोल्स्तोय

एक शहर के चौराहे पर एक विशाल शिला पड़ी थी। यह शिला इतनी बड़ी थी कि यातायात में बाधा पहुँचाती थी। उस शिला को हटाने के लिए इंजीनियरों को बुला कर पूछा गया कि शिला को कैसे हटाएं और इसको हटाने में कितना खर्च आएगा?

एक इंजीनियर ने कहा कि इस शिला के टुकड़े करने पड़ेंगे और उन टुकड़ों को गाड़ी अथवा ठेले में ले जाना पड़ेगा। इससे लगभग आठ हजार रुपये का खर्च होगा।

दूसरे इंजीनियर ने सलाह दी कि शिला के नीचे एक बड़े मजबूत ठेले का फट्टा लगाया जाए और लुढ़का कर शिला को उस पर रखकर ले जाया जाए। इसमें लगभग छह हजार रुपये का खर्च आएगा।

वहां पर एक देहाती भी था, जो उन लोगों की बातें सुन रहा था। सुनकर वह बोला, "मैं इस शिला के पास एक बहुत बड़ा गड्ढ़ा खुदवाऊँगा। उस बड़े गड्ढ़े में इस शिला को लुढ़कवा दूँगा। ऊपर से खोदी हुई मिट्टी से समतल कर दूँगा।"

अधिकारियों को उसकी योजना पसंद आयी और उन्होंने उसको स्वीकृति दे दी। देहाती ने वैसा ही किया। उसे सौ रुपये दिए गए, ऊपर से सौ रुपये इनाम के भी!
(अशोक भाटिया द्वारा संपादित "विश्व साहित्य से लघुकथाएं" पुस्तक से साभार)

1 टिप्पणी:

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

वाह! हमारे देश के इंजिनियर भी तो यही कर रहे हैं.