
पंजाबी कविता
पिछले दिनों पंजाबी की त्रैमासिक पत्रिका “प्रवचन” के नए अंक (जुलाई-सितम्बर 2008) में इमरोज़ जी

इमरोज़ की कविताएं
पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव
बीज
एक ज़माने से
तेरी ज़िन्दगी के दरख़्त
कविता को
तेरे साथ रहकर
देखा है
फूलते, फलते और फैलते…
और जब
तेरी ज़िन्दगी का दरख़्त
बीज बनना शुरू हो गया
मेरे अन्दर जैसे
कविता की पत्तियाँ
फूटने लग पड़ीं
और जिस दिन
तेरी ज़िन्दगी का दरख़्त बीज बन गया
उस रात इक कविता ने
मुझे बुलाकर अपने पास बिठाया
और अपना नाम बताया
अमृता-
जो दरख़्त से बीज बन गई
मैं काग़ज़ लेकर आया
वह कागज़ पर अक्षर-अक्षर हो गई
अब कविता अक्सर आने लग पड़ी है
तेरी शक्ल में तेरी ही तरह मुझे देखती
और कुछ समय मेरे संग हमकलाम होकर
मेरे अन्दर ही कहीं गुम हो जाती है…
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प्यास
आदमी ज़िन्दगी जीने को
शिद्दत से बड़ा प्यासा था
इस प्यास के संग चलता
ज़िन्दगी का पानी खोजता-तलाशता
वह एक चश्मे तक पहुँच गया
प्यास इतनी थी
कि वह न देख सका, न पहचान सका
कि यह ज़िन्दगी का चश्मा नहीं
वह तो प्यासे पानी का चश्मा था
प्यास बुझाने को जब वह
पानी के करीब गया
प्यासे पानी ने आदमी को पी लिया…
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सोहणी
तस्वीरों की दुकान के बाहर
सोहणी की तस्वीर देखी
मैं इस सोहणी को घर ले आया
इस सोहणी को देखते-देखते
मुझे कल की
वह सोहणी दिखाई देने लग पड़ी
जिसने पंजाब का एक दरिया
कच्चे घड़े से पार किया था
कई बार…
और आज मुझे
एक और सोहणी दिखाई दे रही है
जिसने आधी सदी से
अपनी कलम से
सारा पंजाब पार किया है-
लगातार…
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चार छोटी कविताएं
(1)
हाथ में पकड़ा फूलमैं काग़ज़ लेकर आया
वह कागज़ पर अक्षर-अक्षर हो गई
अब कविता अक्सर आने लग पड़ी है
तेरी शक्ल में तेरी ही तरह मुझे देखती
और कुछ समय मेरे संग हमकलाम होकर
मेरे अन्दर ही कहीं गुम हो जाती है…
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प्यास
आदमी ज़िन्दगी जीने को
शिद्दत से बड़ा प्यासा था
इस प्यास के संग चलता
ज़िन्दगी का पानी खोजता-तलाशता
वह एक चश्मे तक पहुँच गया
प्यास इतनी थी
कि वह न देख सका, न पहचान सका
कि यह ज़िन्दगी का चश्मा नहीं
वह तो प्यासे पानी का चश्मा था
प्यास बुझाने को जब वह
पानी के करीब गया
प्यासे पानी ने आदमी को पी लिया…
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सोहणी
तस्वीरों की दुकान के बाहर
सोहणी की तस्वीर देखी
मैं इस सोहणी को घर ले आया
इस सोहणी को देखते-देखते
मुझे कल की
वह सोहणी दिखाई देने लग पड़ी
जिसने पंजाब का एक दरिया
कच्चे घड़े से पार किया था
कई बार…
और आज मुझे
एक और सोहणी दिखाई दे रही है
जिसने आधी सदी से
अपनी कलम से
सारा पंजाब पार किया है-
लगातार…
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चार छोटी कविताएं
(1)
चुपचाप कह सकता है
कि मैं अमन के लिए हूँ
पर हाथ में पकड़ी तलवार
बोलकर भी नहीं कह सकती
कि मैं अमन के लिए हूँ…
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(2)
आसमान पर भले ही
आसमान जितना लिखा हो
कि ज़िन्दगी दु:ख है
तो भी
धरती पर आदमी
अपने बराबर तो लिख ही सकता है
कि ज़िन्दगी सुख भी है…
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(3)
मैं रंगों के संग खेलता
रंग मेरे संग खेलते
रंगों के संग खेलता-खेलता
मैं इक रंग हो गया
कुछ बनने, कुछ न बनने से
बेफिक्र, बेपरवाह…
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(4)
बिखरने के लिए लोग ही लोग
पर एक होने के लिए
एक भी मुश्किल…
दरख़्त पंछियों को जन्म नहीं देते
पर पंछियों को घर देते हैं…
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