मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

अनूदित साहित्य


पंजाबी कविता

तनदीप तमन्ना की पाँच कविताएँ
हिंदी रूपान्तर : सुभाष नीरव

1
ख़ुदा ख़ैर करे

मैं सरसरी पूछ बैठी-
“क्या हाल-चाल है ?”
तेरा जवाब था कि
“जो आग लगने के बाद
सरकंडों की झाड़ियों का होता है…”

अधर सिल गए थे मेरे
कुछ पलों का सन्नाटा
तेरा दर्द
मेरी रूह के हवाले कर गया था।

तूने कहा-
“…चाहे बातें न कर
पर
हुंकारा तो भर…
शाम आराम से बीत जाए…”

मैंने कहा-
“…कहीं शाम के साथ
बातें भी बीती न हो जाएं
हुंकारा भरते-भरते
कोई बात न शुरू हो जाए।”

तूने देखा हसरत भरी नज़रों से
और फिर
ठंडी आह भरकर रह गया था।

तूने वास्ता दिया था
“बाहरों में तो न मिला कर
पतझर-सा चेहरा लेकर…”

मैंने कहा-
“तेरा गिला भी जायज़ है
पर मैं तुझे
बारिश में तो मिलती हूँ
आँखों में झड़ी लेकर…।”

अब हम दोनों चुप खड़े थे !

मेरी आँखों के अंदर की
शोख तितली
तेरे मन के
मनचले भौंरे का हाथ थाम
तर्क के ग्लेशियर की
सीमा पार कर चुकी थी
और हम
सूरज को क्षितिज पर
अस्त होता देख रहे थे।
00

2
कुछ कहना तो ज़रूर था

आज
कुछ कहना तो था
शब्दों के
दाँत भिच गए…
ख़यालों के
होश उड़ गए
अहसासों को
लकवा मार गया
इशारे आँखों में ही
पथरा गए

वैसे
आज
कुछ कहना तो
ज़रूर था !
00

3
पिरामिड

सदियों पहले
किसी ने दफ़ना दिया था मुझे
देह पर चंदन का लेप कर
हीरे, चांदी और सोने से लाद कर
गहरी नींद की दवा दे कर!

पर मैं
मैं उस पिरामिड में से
हर रात जागती हूँ
तारों की रोशनी में
आहिस्ता से पैर धर
हवा के मातमी
सुरों की हामी भर
धरती का चप्पा-चप्पा
पर्वत, नदियाँ, समन्दर,
ज्वालामुखी, ग्लेशियर घूम
तुझे किसी योग-मुद्रा में लीन
तपस्या करते देख
तेरे हठ को सलाम कर
अगली बार
समाधि खुलने की आस लिए
पौ फटने से पहले ही
आँखों में से ढ़ुलकदे मोतियों को
तेरे बे-रहम शहर की
रेत में बीज कर
ताबूत की ओर लौट आती हूँ !
00

4
कस्तूरी गायब है

यहाँ घरों में
सब कुछ है
पर कुछ भी तो नहीं…
यहाँ भरे हुए बर्तन खनकते हैं।

और इन घरों के बाशिंदे
मरुस्थल में
तड़फती मछलियाँ हैं।

हज़ारों रोशनियों में
सिल्क के पर्दों के पीछे
सूरज को पकड़ने के लिए
साये जीते हैं।

परबतों की चीख
नदी का दर्द
समाये रह जाते हैं
दिलकश चित्रों के अंदर।

एक्वेरिअम में पाल कर मछलियाँ
पालते हैं भ्रम
ठांठे मारते समुद्र का।
आलीशान घरों के कमरे
सिकुड़ जाते हैं
और पीर
और भी बढ़ जाती है
महकों के प्यासे मृगों की।
00
5
दर्द

अतीत का
ज़िक्र छिड़ते ही
हाथों के बीच का आटा
खमीर बन गया है

एक रात
हाँ, उस रात
तेरे दर्द के जंगल में से
गुजरी थी
पंख कतरे गए थे मेरी
चीख के।

जंगल की ख़ामोशी
परतें बन चढ़ गई थी
मेरे जेहन पर।

काले फ़नीअर
विष त्याग गए थे
शब्द रहित दर्द
बाहें खोल कर आया।

जब हम जुदा हुए तो
तेरा लावा…
मेरा ग्लेशियर…
बांहों में भर
दर्द
किसी पहाड़ी घर की
चिमनी में से
धुआँ बनकर निकल रहा था।
00

पंजाबी की युवा कवयित्री। कनाडा में रहते हुए अपनी माँ-बोली पंजाबी भाषा की सेवा अपने पंजाबी ब्लॉग “आरसी” के माध्यम से कर रही हैं। गुरूमुखी लिपि में निकलने वाले उनके इस ब्लॉग में न केवल समकालीन पंजाबी साहित्य होता है, अपितु उसमें पंजाबी पुस्तकों, मुलाकातों और साहित्य से जुड़ी सरगर्मियों की भी चर्चा हुआ करती है। इधर “आरसी” में हिन्दी भाषा के साहित्य के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं के अनुवाद को भी तरजीह दी जा रही है।
“आरसी” का लिंक है- www.punjabiaarsi.blogspot.com
तनदीप तमन्ना का ई मेल है- tamannatandeep@gmail.com

21 टिप्‍पणियां:

सहज साहित्य ने कहा…

किसी को मेरी बात बड़ी लग सकती है,पर मुझे तनदीप की कविताओं में अमृता प्रीतम की कविताओं की खनक महसूस होती है । शब्दों की अपनी एक खुशबू होती है ,जो इन सभी कविताओं में बरकरार है । अनुवाद में भी उसी सोंधी सुगन्ध को अनुवादक ने बचाए रखा है ।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com

Silver Screen ने कहा…

Andar ki aag ko bin dekhe mehsoos karna , adhoore safar ko pagdandi ke uupar vichha dena aur chandni raat ko chhaya dene ki koshish karni....tandeep ki kavita ki yahi pehchaan hai... wo likhti nahi... shabad uski izaajat lete hai...aameen !
Darshan Darvesh

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

Samayki nabj ko pakadati Tandeep Tamanna ki kavitayen prakashit karke tumane Hindi Pathakon ke liye mahatvapurna kaam kiya hai. Dono ko badhai.

Roop Singh Chandel

बेनामी ने कहा…

Hello Neerav:
I am enjoying reading poems in Hindi on your blog.

-Sukhinder
poet_sukhinder@hotmail.com

बेनामी ने कहा…

Tandeep Tamanna ko mera salaam kahiyega.anuvad bhee kamaal ka hei. man prasann ho utha.

Rekha Maitra
rekha.maitra@gmail.com

बेनामी ने कहा…

Tandeep Tamanna kee sanvaad kartee
kavitayen bhale hee chandmukt hain
lekin shabdon mein aesaa sangeet
rachaa-basaa hai ki chandyukt se bhee badh kar lagtee hain.
Ek baat aur,shabdon ke
saaf-suthre paridhaan ko audhe ye
kavitayen ,lagta hai ki Hindi kee
hain.Auvaad ho to aesaa ho.

रंजना ने कहा…

रचनाओं के गहरे भावों ने ऐसे बाँधा कि पढ़ चुकने के कुछ समय बाद भी आत्मविस्मृति की अवस्था में निश्चेष्ट बैठी रही.........
सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक हैं.आपका भावानुवाद है ही इतना सशक्त कि वह अनुवाद तो लगता ही नही.बहुत ही अच्छा ,सुखकर लगा पढ़ना.
आभार.

Writer-Director ने कहा…

Ramesh Kamboz 'Himanshu'.... itna literature parha hai uunhone.... ke unse jiyada koi nahi janta ke ane vale kal ki Amrita ji kaun hain.... Sach bola to baaloo bal uuthene... Lekin fir bhi sach yeh hai ke Amarita ji aa rahi hain....

Darshan Darvesh

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' ने कहा…

Respected Kamboj ji, Darvesh ji, Chandel ji, Sukhinder ji, Rekha ji aur Sharma ji..Main aap sabh ki abhaari hoon ke aap sabh ne meri kavitaon ko itni mohabbatt di hai. Yeh sabh sambhav hua hai, Neerav ji ke prayaas ke karn. Itna waqt nilaktey hain anuvaad karne ke liye aur mann se blog update kartey hain ke lekhak ya pathak ko pata hi nahin chalta ke rachna anuvadit hai. Aap sabh ne itni tareef ki hai behadd shukriya, main aap sabh ki rachnaon se bahut kuch seekh kar aur behtar likhoongi, aisa mera vishvaas hai.

Neerav ji, ek baar phir se aapka aur baki sabhi doston ka teh-dil se shukriya adah karti hoon. Pls keep up this wonderful job.

Best Regards
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada

बलराम अग्रवाल ने कहा…

बॉक्स को खोलते ही पहली टिप्पणी काम्बोजजी की पढ़ने को मिल गई, मैं भला क्या तारीफ करूँ। उन्होंने एकदम सही टिप्पणी की है। लेकिन मैं यह जरूर जोड़ना चाहूँगा कि तनदीप को खुद की अभिव्यक्ति क्षमता पर हावी होती जा रही अमृताजी की छाया से मुक्त हो जाने की कोशिश शुरू कर देनी पड़ेगी। मैं चाहूँगा कि तनदीप की आगामी कविताएँ ऐसी होंगी कि काम्बोजजी और मैं आज की तरह ही एक साथ बोलें कि 'ये अमृताजी से आगे की कविताएँ हैं जो तनदीप के अलावा किसी और की नहीं हो सकतीं'।

haidabadi ने कहा…

जनाबे नीरज साहिब
अंदाजे बयाँ उस दुख्तरे पंजाब का
और तेरा खुबसूरत तर्ज़मा
मोहतरमा साहिबा
रहें महकते सदा तेरी तमन्ना के गुलाब
तू इनको चाँद सितारों की छाँव में रखना

चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

shipraak ने कहा…

apni tasveer koi dikha jaye
chupke se dil chuu jaye....


bahut khoob..bahut badhai


shipra verma

ashok andrey ने कहा…

apke blog me tandeep jee kee kavitayen padi jise apke davara anudit kiya hua hai jisme piramid tatha kasturi gayab hai bahut achchi kavitaen hain sitakant jee tatha k sahhidanandanjee ko to kafi pada hai ek bar phir unhen pad kar achcha laga hai aisi achchi kavitaoke liya me apko tatha tadeep ke sath anyay kavaon ko badhai deta hoon

ashok andrey

Unknown ने कहा…

Dear Subhash Neerav ji: Tandeep ji ki kavitaein padh kar mann prasann ho geya hai.Apne anuvaad bhi bahut acha kiya hai. Unki kavitaon mein pathak ko bandh ke rakhney ki shamta hai.Maine Unko bhi email ki hai.Aap dono ko badhai ho.

Aryan Kumar

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

सुभाष नीरव जी
नमस्कार
आज पहली आर आपके ब्लाग का भ्रमण किया अच्छा लगा

"अधर सिल गए थे मेरे
कुछ पलों का सन्नाटा
तेरा दर्द
मेरी रूह के हवाले कर गया था।"
-0-0-0-0-
" अहसासों को
लकवा मार गया
इशारे आँखों में ही
पथरा गए"
-0-0-0-
" सदियों पहले
किसी ने दफ़ना दिया था मुझे
देह पर चंदन का लेप कर
हीरे, चांदी और सोने से लाद कर
गहरी नींद की दवा दे कर!"
(पिरामिड की सार्थकता )
-0-0-0-
" परबतों की चीख
नदी का दर्द
समाये रह जाते हैं
दिलकश चित्रों के अंदर।"
-0-0-0-
" एक रात
हाँ, उस रात
तेरे दर्द के जंगल में से
गुजरी थी
पंख कतरे गए थे मेरी
चीख के।"
-0-0-0-
तमन्ना जी की हर रचना में नयापन लगा.
आपको एवं तमन्ना जी को अशेष बधाई
- विजय

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' ने कहा…

Tandeep tamanna jee

Namaste

Subhas neerav jee ke blog par aapki hindi men anoodit kavitaaen padh raha hoon. Mujhe yah mahsoos hota hai ki aap bharat se door hain lekin aap jazbaati taur par yahan ki dharti se judi hui hain jiski jhalak aapki umda kavitaon men milti hai. aapki paanch kavitaen Kudaa khair kare, Kuchh kahna to zaroor tha, Piramid, kastoori gayab hai aur dard padhkar man mugdh ho gaya. Likhte rahiye. Aapko bahut bahut badhai.
Main apani ek ghazal jisko Bihar ki Ranjana Jha ne gaya hai, aapko bhej raha hoon.Ise suniye aur zaroor likhiye.

R.P.'Ghayal'
Manager
Rajbhasha Cell
Reserve bank of India, Patna
===========
Neerav saheb, I received this mail on Feb 5, 2008. Please post it under comments.
Tandeep Tamanna

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' ने कहा…

Tamanna ji,
aapki rachanayen padhi. bahut hee achchhi lagi. aap videsh me rahte huve bhee bharat evan bharateey bhashaon ke prati moh anukarniya hai.

--
Narendra Vyas
Bikaner (Rajasthan) India
======================
Neerav saheb, I recived this mail on Feb 21,, 2009. Pls post this one too so that I m able to thank them all.

Regards
Tandeep Tamanna

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' ने कहा…

Respected Neerav saheb.
Literary Adaab!
Kuch tabiyat nasaaz hone ke karan main un sabhi doston ka shukriya adah nahin kar saki, jinhon ne meri rachnaein parh kar comments bhej kar mera utshah badhaeya hai...muaafi chahti hoon.
----
Main visheh taur par shukriya kar rahi hoon...Balram Agarwalji, Chand Shukla ji, Shirpa Veram ji, Ashok Andrey ji, Aryan ji, Dr. Vijay Tiwari ji, Narendra Kumar ji aur R.P. Ghayal ji ka..jinhon ne apni masroof zindagi se waqt nikala aur meri nazamein parh kar mujhey aur achha likhney ke liye prerit kiya hai.
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Aur Neerav saheb, aapki bahut abhaari hoon ke aap ne nazamon ka anuvaad itna acchha kiya ke mere paas alfaz hain hi nahin aapka shukriya adah karne ke liye.
---
Main aap sabhi adarniye doston ko sarr jhukka kar salaam bahej rahi hoon..kabool keijeiyega. Neerav saheb, keep the good work up!

Best Regards
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अब हम दोनों चुप खड़े थे !

मेरी आँखों के अंदर की
शोख तितली
तेरे मन के
मनचले भौंरे का हाथ थाम
तर्क के ग्लेशियर की
सीमा पार कर चुकी थी
और हम
सूरज को क्षितिज पर
अस्त होता देख रहे थे।

" सदियों पहले
किसी ने दफ़ना दिया था मुझे
देह पर चंदन का लेप कर
हीरे, चांदी और सोने से लाद कर
गहरी नींद की दवा दे कर!"....

Tandeep ji kya kahun...?? har kavita dil ko chu rahi hai...bhot khooob...! Aapko bhot bhot bdhai!!

Subhas ji ,

Tandeep ki kavitaye pdha kr aapne ek sukun sa diya kavitayen bhot gahri aur hirday sparsi hain....shukriya...!!

ਤਨਦੀਪ 'ਤਮੰਨਾ' ने कहा…

Dear Harkirat ji..behadd shukriya ji. Aapne rachnaein parh kar itni sundar tippni bheji hai. Aap khud bhi bahut khoobsurat likhti hain. Phone pe huyee baat aaj takk zehan main rass ghol rahi hai.
---
Main aapko aur aapki nazamon ko bhi salaam bhej rahi hoon. 'Aarsi' pe aapki haazri jald laggney jaa rahi hai, mere liye aur baki doston ke liye yeh bahut khushi ki baat hai.

Phone pe huyee baaton ki mithaas ke saath...

Best Regards
Tandeep 'Tamanna'

प्रदीप कांत ने कहा…

आज
कुछ कहना तो था
शब्दों के
दाँत भिच गए…
ख़यालों के
होश उड़ गए
अहसासों को
लकवा मार गया
इशारे आँखों में ही
पथरा गए

वैसे
आज
कुछ कहना तो
ज़रूर था

- अच्छी कविताएँ.