शनिवार, 7 नवंबर 2009

अनूदित साहित्य


पंजाबी कविता


सुखदेव की छह कविताएं
हिंदी अनुवाद : सुभाष नीरव
1
कविता

मैं कविता लिख लेता हूँ
सूखे हुए पत्तों में से
झांकती हरी लकीरों जैसी
पर जो एक सघन, सुवाहना
और हरा-भरा वृक्ष
इसमें नहीं दिखाई देता
उसका मैं क्या करूँ ?

2
रिश्ता

मुहब्बत मोहपाश
दूरी भटकन
मैं जब भी तुझसे दूर होता हूँ
तो ये मुझे बहुत दुख देते हैं- मैंने कहा।

तू मुस्करा पड़ी
और मुझे गले से लगा कर कहा-
''चांद बेशक कितना ही दूर हो
नदी की गोद में होता है।''

उस पल से मैं महसूस कर रहा हूँ
कि एक ठंडी निर्मल और शफ़ाफ नदी
मेरे अंतस में बह रही है
जिस में हर रोज़ मैं
चांद बनकर चढ़ता हूँ।

3
याद

आज फिर
दिन भर तेरी याद
इस तरह मेरे साथ रही
जैसे काल कोठरी की
भूरी उदास खिडकी के पार
बसंत की सुनहरी धूप में
खिला हुआ गुलाब।

4
चलने का ढंग

मैं
चलता हूँ बाहर
और देखता हूँ अंदर।

मैं
चलता हूँ अंदर
और भटकता हूँ बाहर।
इक उम्र बीत चली है
पर मुझे अभी तक
चलने का ढंग नहीं आया।

5
अलविदा

हे मेरे पुरखो !
पालनहार पिता !
पवित्र पुस्तक और पूज्यनीय पुरोहितो!

जाने से पूर्व
नमस्कार स्वीकार हो

क्षमा करना
मैं जा रहा हूँ
काली नदी के सीने पर
जलते हुए दीये खोजने
और उस ऑंख की तलाश में भी
जो इन्हें देख सके।

6
अच्छी बात नहीं

दीया जलता है
तो उजाला होता है

शायर बोलता है
तो कंदील जगमगाती है

सूरज उदय होता है
तो प्रकाश की बाढ़ आती है

पर सारा ही उजाला
बाहर से आए
यह भी कोई अच्छी बात नहीं।
00

पंजाबी के उभरते हुए कवि-कहानीकार। नागमणि, समदर्शी, हुण, अक्खर आदि अनेक पंजाबी की पत्रिकाओं में कविताएं और कहानियाँ प्रकाशित। इसके अतिरिक्त जैन कहानियों का पंजाबी में अनुवाद किया है जो हर सप्ताह पंजाबी अखबार 'अजीत' में प्रकाशित हो रहा है।
संप्रति : अध्यापन
गली नं0 8, गुरू नानक नगरी
मलोट, ज़िला-मुक्तसर(पंजाब)
फोन : 01637 २६४९४७

ई-मेल : matharusukhdev@gmail.com

16 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

सभी कविताये बहुत सुंदर लगी, आप का धन्यवाद इन्हे हिन्दी मै अनुवाद कर के हम तक पहुचाया

PRAN SHARMA ने कहा…

SUKHDEV JEE KEE KAVITAAYEN PADHKAR
MUN KO SUKH HEE SUKH MILAA HAI.
CHHOTEE-CHOTEE KAVITAAON MEIN
VE BAHUT KUCHH KAHNE MEIN DAKSH
LAGTE HAIN.ASHA HAI KI BHAVISHYA
MEIN UNKEE AUR RACHNAAYEN BHEE
PADHNE KO MILENGEE.SUBHAASH JEE KO
UNKE SUNDAR ANUWAD KE LIYE BADHAAEE

रूपसिंह चन्देल ने कहा…

मैं
चलता हूँ बाहर
और देखता हूँ अंदर।

मैं
चलता हूँ अंदर
और भटकता हूँ बाहर।
इक उम्र बीत चली है
पर मुझे अभी तक
चलने का ढंग नहीं आया।
सुभाष कवि-कथाकार सुखदेव की सभी कविताएं पढ़ गया. ऊपर लिखी कविता उनकी मुझे सर्वाधिक पसंद आयी.

’अलविदा’ भी अच्छी कविता बनते बनते रह गयी क्योंकि मेरे अनुसार पुरोहित कभी पूज्यनीय नहीं होते. उन जैसा धूर्त कोई नहीं होता ---- कभी भले-सरल होते रहे होंगे लेकिन आज नहीं . शेष कविताएं भी पसंद आईं.

रूपसिंह चन्देल

रूपसिंह चन्देल ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
बेनामी ने कहा…

प्रिय दोस्त,
तुम्हें फिर सक्रिय हो कर फील्ड में देख कर बहुत अच्छा लग रहा है. मन की संवेदना बनी भी रहे और वह भीतर की द्रढ़ता को भुरभुराए भी नहीं यह संतुलन बहुत महत्व रखता है. विश्वास है कि तुम इसे साध पा रहे हो.
'सेतु साहित्य' देख कर टिप्पणी दूंगा.

अशोक गुप्ता
ashok267@gmail.com

प्रदीप कांत ने कहा…

मैं
चलता हूँ बाहर
और देखता हूँ अंदर।

मैं
चलता हूँ अंदर
और भटकता हूँ बाहर।
इक उम्र बीत चली है
पर मुझे अभी तक
चलने का ढंग नहीं आया।

AChchhi kavitaein

Ria Sharma ने कहा…

मुहब्बत मोहपाश
दूरी भटकन
मैं जब भी तुझसे दूर होता हूँ
तो ये मुझे बहुत दुख देते हैं- मैंने कहा।

चलने का ढंग' कविता लाजवाब !!
बहुत सुन्दर रचनाएँ..उतना सुन्दर अनुवाद भी...!!

बेनामी ने कहा…

kavitaayen waqaee taza hawa ke jhonke see hain!
man prasann ho utha !
Rekha Maitra
rekha.maitra@gmail.com

बलराम अग्रवाल ने कहा…

सुखदेव की सभी कविताएँ लाजवाब हैं।
सारा ही उजाला
बाहर से आए
यह भी कोई अच्छी बात नहीं।
जो कवि इस सत्य से परिचित है--उसकी कविताओं में उजाला न हो यह हो नहीं सकता।

ashok andrey ने कहा…

SUKHDEV JEE KI SAAREE KAVITAEN PADEE MAN KHUSH HO GAYAA TATHAA BALRAAM JEE KI TIPPANEE SE SEHMAT HOON-
SAARAA HEE OOJAALA
BAAHAR SE AAE
YEH BHEE KOII ACHCHHI BAAT NAHEEN.
MEREE AUR SE BADHAAEE SWEEKAREN
ASHOK ANDREY

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

पर जो एक सघन, सुवाहना
और हरा-भरा वृक्ष
इसमें नहीं दिखाई देता
उसका मैं क्या करूँ ?

बहुत खूब....!!

आज फिर
दिन भर तेरी याद
इस तरह मेरे साथ रही
जैसे काल कोठरी की
भूरी उदास खिडकी के पार
बसंत की सुनहरी धूप में
खिला हुआ गुलाब।

वाह .....सुभाष जी सुखदेव जी को बधाई इन सुंदर रचनाओं के लिए ....इनकी लेखनी में गहनता है जो आपके अति सुंदर अनुवाद से और खिल उठीं हैं ....नागमणि तो शायद अब बंद हो चुकी है ......!!

कडुवासच ने कहा…

... बेहद प्रसंशनीय रचनाएं हैं !!!!!!

सुरेश यादव ने कहा…

भाई ,सुभाष नीरव.आप ने सुखदेव जी की बहुत सुन्दर रचनाओं का चयन और अनुवाद किया है.कवि को संवेदन शील रचनाओं केलिए तथा आप को सहज अनुवाद के लिए बधाई.

राजेश उत्‍साही ने कहा…

सुभाष जी सुखदेव जी सुंदर कविताओं का हिन्‍दी में इतना अच्‍छा अनुवाद है कि पढ़कर यह प्रतीत ही नहीं होता कि यह किसी और भाषा की कविताएं हैं। सुखदेव जी सुंदर कविताएं लिखने के लिए और आपको अनुवाद के लिए बधाई।

Anuj Kumar ने कहा…

बहुत बढ़िया लघुकथा ! पढ़कर मजा आ गया। लेखक और अनुवादक दोनों को बधाई !

Sufi ने कहा…

Subhaash ji,
Bahut achhi kavitayen hain...Aur aapka anuvaad bhi...Thanks for sharing !!!
priya