मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

अनूदित साहित्य


पंजाबी लघुकथा

दोस्त
गुरमेल सिंह चहल
हिन्दी अनुवाद : सुभाष नीरव


आज सुबह ही पति-पत्नी के बीच छोटी-सी बात से हुई तकरार ने बड़ा रूप धारण कर लिया था। पति चुपचाप बिना कुछ खाये-पिये तैयार होकर दफ्तर पहुँच गया। दफ्तर पहुँचकर उसने पत्नी को मैसेज कर दिया, ''मैंने आज से रात की डयूटी करवा ली है।''
प्रत्युत्तर में पत्नी ने मैसेज से जवाब दे दिया, ''मैं भी यही चाहती थी, अच्छा किया।''
उन्होंने कई दिन न तो एक-दूजे को बुलाया और न ही एक दूजे को मिले। सुबह पति घर आता तो पत्नी दफ्तर चली जाती और शाम को पत्नी घर लौटती तो पति जा चुका होता। लेकिन घर के सारे कामकाज मैसेज के द्वारा ही हो रहे थे।
आज पत्नी का जन्मदिन था। पति ने सवेरे ही मैसेज द्वारा 'हैप्पी बर्थ डे टू यू' कह दिया। पत्नी ने भी मैसेज से ही 'थैंक यू।' कह दिया।
पति ने शाम को तीन बजे मैसेज भेज दिया, ''मैंने तेरे लिए गिफ्ट अल्मारी में बायीं ओर रखा है, ले लेना।''
उधर पत्नी ने मैसेज भेज दिया, ''तुम्हारे लिए केक फ्रिज में पड़ा है, मेरा नाम लेकर खा लेना।''
पाँच बजे पति ने मैसेज कर दिया, ''दिन कैसे बीतते हैं ?''
''बहुत बढ़िया ।'' पत्नी ने मैसेज भेजकर जवाब दे दिया।
''और रातें ?'' पति ने एक और मैसेज कर दिया।
''जहाँ अच्छे दोस्त साथ मिल जाएँ, फिर रातें भी बढ़िया गुजर जाती हैं।''
यह मैसेज पढ़ते ही पति आगबबूला हो उठा। वह झट दफ्तर से निकला और सीधा घर पहुँच गया।
''सीमा ! किस दोस्त की बात कर रही हो ?'' पति महीने बाद चुप को तोड़ता हुआ बोला।
''अपने दोस्त की जिसके सहारे इतने दिनों से मैं अकेलापन काट रही हूँ।''
''कहाँ है तेरा वो दोस्त ?'' पति बोला।
''बैड पर रजाई में पड़ा होगा।''
''यहाँ तो कोई नहीं।'' पति ने बैड पर से रजाई उठाते हुए पूछा।
''कोई क्यों नहीं, तुम्हारे सामने सिरहाने पर तो पड़ा है।''
''यह तो मोबाइल है।'' पति ने सिरहाने पर निगाह मारते हुए कहा।
''बस, यही तो मेरा दोस्त है। कभी गाने सुन लेती हूँ, कभी गेम खेल लेती हूँ। कभी तुम्हें मैसेज भेज देती हूँ और कभी तुम्हारा मैसेज पढ़ लेती हूँ। बस, इस तरह रात कट जाती है।'' आँसू पोंछती हुई पत्नी ने पति को आलिंगन में ले लिया।
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जन्म : 15 जनवरी 1971
शिक्षा : बी ए
कृतियाँ : अल्ले ज़ख्म(लघुकथा संग्रह-2004)
टिडा पंडित(बाल कहानी संग्रह- प्रकाशनाधीन)
चंगे बच्चे(बाल गीत- प्रकाशनाधीन)
संप्रति : स्टेट बैंक आफ इंडिया में कार्यरत।
सम्पर्क : 12/415, नानक नगर,मक्खू रोड
जीरा, जिला-फिराजपुर
फोन : 01682-251893(घर)
09463381196(मोबाइल)
ई मेल : gurgaganchahal@yahoo.com
Allejakham2004@yahoo.com

14 टिप्‍पणियां:

राजेश अग्रवाल ने कहा…

मौजूदा हाल यही है सरदार जी.

shama ने कहा…

Bahut khoob..meree to aankh bhar aayee...!

सहज साहित्य ने कहा…

बहुत अच्छी लघुकथा , कथ्य और शिल्प दोनों ही दृष्टियों से ।
रामेश्वर काम्बोज'हिमांशु'

Pran Sharma ने कहा…

LAGHU KATHA ROCHAK HAI LEKIN ---
KYA PATI-PATNI BAARAH-BAARAH GHANTE
KAAM PAR RAHTE THE KI VE SUBAH-
SHAAM KABHEE AAPAS MEIN MIL NAHIN
PAATE THE?

Roop Singh Chandel ने कहा…

यार

चहल की लघुकथा पढ़कर आनन्द आ गया. हम दोनों ही खूब हंसे. रचना में एक गंभीर सच छुपा हुआ है भरपूर रोचकता के साथ.

बधाई.

चन्देल

Rangnath Singh ने कहा…

बेहतरीन कहानी।

बलराम अग्रवाल ने कहा…

विपरीत स्थितियों के साथ अनुकूलन की जो शक्ति स्त्री में होती है, पुरुष में नहीं--इस मनोवैज्ञानिक सत्य को चहलजी ने बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। आ0 प्राणजी ने एक सवाल उठाया है। दरअसल गहन यथार्थ स्थितियों को दर्शाने के लिए कभी-कभी ऐसी छूट कथाकार ले लेता है और पाठक को सहृदयता के साथ यह छूट उसे देनी चाहिए। चहलजी को अच्छी रचना के लिए बधाई।

सुरेश यादव ने कहा…

चहल जी की लघुकथा पुरुष और स्त्री के चरित्र को गहराई से रेखांकित करती है.प्राण शर्मा जी का प्रश्न भी स्वाभाविक है लेकिन इसका उत्तर भी इस कहानी की संवेदना में छुपा हुआ है.सामने न पड़ने के लिए और साथ में समय कम गुजरने की गरज से भी तो कहीं पर समय काटा जा सकता है एक स्वाभाविक लघुकथा के लिए बधाई.नीरव जी आप का चुनाव और अनुवाद अच्छे हैं.धन्यवाद .

भगीरथ ने कहा…

how technology has changed our life
this theme is properly expressed in
this ministory

बेनामी ने कहा…

Res nirav ji namaskar. aap kay blogs dekhe. aacha laga aap bahut mehnat kar rahe ho badhae savikar kare.’dost’ laghukatha aachi lagi.
aap ka apna
jagdish rai kulrian
jagdish_kulrian@yahoo.com
9417329033

प्रदीप कांत ने कहा…

दर असल जरा ज़रा सी बात पर केवल अहम को लगी चोट और फिर तक्नीक के सहारे जीवन! जबकि तकनीक भावनाओं का स्थान नहीं ले सकती।


अच्छी कहानी

Indra Narthunge ने कहा…

Best Sort Story. I like it. Congratulation Gurmel Sing g.

चण्डीदत्त शुक्ल ने कहा…

सुखद अंत!

उमेश महादोषी ने कहा…

एक बेहतरीन लघुकथा है। अंत में यदि पति की आँखों से भी दो आंसू निकलवा देते तो मार्मिकता और भी बढ जाती। प्राण शर्मा जी के सवाल का जबाब देने की गुंजाईश भी थी, पर तब रचनाकार और आलोचक के बीच का रिश्ता कैसे कायम होता! खैर! ऐसी सुन्दर रचना पदवाने के लिए धन्यवाद्।