पंजाबी कविता
रिश्ता
मनजीत इंदरा
रिश्ता
मनजीत इंदरा
हिंदी रूपांतर : सुभाष नीरव
चित्र : अवधेश मिश्र
रिश्ता क्या है ?
इसकी बुनियाद किस पर है ?
कितनी होती है उम्र किसी भी रिश्ते की ?
बहुत लम्बी और शायद बहुत छोटी भी...
रिश्ते दिलों के होते हैं
कभी-कभार दिमाग के भी
पर सिर्फ़ कभी-कभी ही...
रिश्ता रूह, जिस्म या केवल अहसास नहीं होता
रिश्ता पलछिन में नहीं बनता
रिश्ता मज़बूरी भी नहीं होता
और न ही रहम की बुनियाद पर टिकता है रिश्ता
रिश्ते की बुनियाद खोखली नहीं होती
अहसान भी नहीं होता रिश्ता
और न ही फर्ज़...
फर्ज़ी रिश्ते जोड़े जाते हैं
ये बंधन पड़ते नहीं, बांधे जाते हैं...
पर आफ़ताब हमेशा आसमान पर ही रहे
यह भी तो ज़रूरी नहीं
कभी-कभी दिल के आंगन में भी उतर आता है चांद
कभी-कभी माथे पर भी उग आता है सूरज
सेक इस रवि का छाती में सुलगता है, मचता है
पर कभी-कभार यह सेक जलाता है
फ़ना करता है...
पता नहीं किस रिश्ते की अंगुली पकड़ कर चल पड़ी हूँ मैं
पता नहीं किस राह हैं मेरे कदम
पता नहीं इस राह की मंजिल भी होगी कोई कि नहीं ?
दिल कहता है कि मंजिल से क्या लेना
दिमाग वरजता है– निश्चित मंजिल के बिना
रिश्ते या कदमों का
मूल्य ही नहीं कोई...
दिल की दिमाग के आगे कुछ नहीं चलती
जीतता है दिल और हारता भी...
कौन-सा रिश्ता है वह जो पाल रही हूँ मैं ?
कौन-सा पड़ाव है वह जिसकी तलाश में हूँ ?
कौन-से हैं दो पैर जो हमराह हैं मेरे ?
किसकी हैं वो दो आँखें जो मेरे चेहरे पर है ?
और वही आँखें मेरी आमद की प्रतीक्षा करती हैं
वो कान जो मेरे कदमों की आहट के लिए बेचैन है ?
रेत के घर नहीं होते रिश्ते
बारिश की बूंदों को
हथेलियों पर इकट्ठा करने का नाम भी नहीं होता रिश्ता
रिश्ता फूल के खिलने का नाम होता होगा ?
भ्रम-सा... ख़ुदी ही शायद... अहं...
सागर-सी लहर जैसे होते होंगे रिश्ते... शायद नहीं...
ढलते सायों के संग ढल भी जाते होंगे रिश्ते...
नहीं जानती
क्या हैं रिश्ते ? कैसे हैं ?
यह रिश्ता जो पास बैठा है मेरे
मेरे दिल के करीब
नहीं सच तो यह है– मेरे दिल के अंदर
मेरी हस्ती को लपेटे बैठा है
मेरी तमाम ज़िंदगी के हासिल जैसा
क्या है यह ?
कौन-सा उड़ता पंछी या तेज बहती हवा
पल्लू में बांध रही हूँ जिसको ?
किसका दामन है यह
जिसे कसकर पकड़ रही हूँ ?
खुदाया ! तौफ़ीक दे... हिम्मत और हौसला भी...
पार हो जाऊँ इस भंवर में से
पर शायद यह भंवर हो ही न
पानी की लहर भर हो
गुजर जाएगी सिर के ऊपर से
सिर्फ़ भिगोकर ही...
आज का दिन
आज की धूप
आज की आमद
ठंडी शीत फुहार हो...
और यह आज शायद सहज ही कल में बदल जाए
और यह कल जे़हन की चीस बन जाए
यह माथे का सूरज छाती की जलन हो जाए
यह दिल का चंद्रमा अंगारा बन
सब कुछ फूंक दे...
मैं आज हूँ
जो कल भी थी
और कल भी होऊँगी
कल– काला, कड़वा, कुरूप रहा
आज– आजाद परिंदे की तरह उड़ाने भरता...
आज– वर्तमान मेरा
आज– मेरी जुस्तजू, मेरी सुंदरता,
मेरा रूप,
मेरा राह
रौनक मेरी
जिसके पैरों पर उड़ रही हूँ...
यह मेरी जन्नत
मेरा ज़ौक और शौक
उंमगें मेरी
अनंत राहों का उजाला...
भला पूछो, कहाँ उड़ चली हूँ मैं ?
किस अनुपम दुनिया की ओर ले जा रही है यह उड़ान ?
मेरा भ्रम या सच...
सच ! जो सदा सपना हुआ
सच, जो शाश्वत रहा ही नहीं
और फिर कौन-सा सच है यह
जिसे अपने केशों में सजा रही हूँ ?
कौन-सा सच है जिसकी टिकली
सजी मैं मेरे माथे पर ?
कहीं भ्रमजाल ही तो नहीं... छलावा ?... संकट ?...सज़ा ?
इतने सवालिया निशान ????
शायद, इसलिए कि भरोसा तिड़क गया हो... टूट गया हो...
कयास करें तो विश्वास छलावे नहीं होते
पर कई बार भ्रम विश्वास लगता है
और जब टूटता है, उफ !
कोई पूछे– क्यों सह रही हूँ यह संताप ?
किस रिश्ते का कर रही हूँ बार-बार जाप ?
या किस रिश्ते की बुनियाद पर करती हूँ किंतु-परंतु ?
रिश्ता ब्रोच नहीं होता
निर्जीव वस्तु नहीं होता रिश्ता
अनिश्चितता पर आधारित नहीं होता रिश्ता
यह कोई ‘बाय-वे’ नहीं
हाई-वे होता है रिश्ता
सर्वव्यापक
आनंदमयी...
0
(कवयित्री की लंबी कविता ‘तू आवाज़ मारी है’ का आरंभिक अंश है जिसे उनके कविता संग्रह ‘तू आवाज़ मारी है’ से लिया गया है)
कवयित्री संपर्क :
3934, सेक्टर–22–डी
चंडीगढ़
दूरभाष :09876423934
रिश्ता क्या है ?
इसकी बुनियाद किस पर है ?
कितनी होती है उम्र किसी भी रिश्ते की ?
बहुत लम्बी और शायद बहुत छोटी भी...
रिश्ते दिलों के होते हैं
कभी-कभार दिमाग के भी
पर सिर्फ़ कभी-कभी ही...
रिश्ता रूह, जिस्म या केवल अहसास नहीं होता
रिश्ता पलछिन में नहीं बनता
रिश्ता मज़बूरी भी नहीं होता
और न ही रहम की बुनियाद पर टिकता है रिश्ता
रिश्ते की बुनियाद खोखली नहीं होती
अहसान भी नहीं होता रिश्ता
और न ही फर्ज़...
फर्ज़ी रिश्ते जोड़े जाते हैं
ये बंधन पड़ते नहीं, बांधे जाते हैं...
पर आफ़ताब हमेशा आसमान पर ही रहे
यह भी तो ज़रूरी नहीं
कभी-कभी दिल के आंगन में भी उतर आता है चांद
कभी-कभी माथे पर भी उग आता है सूरज
सेक इस रवि का छाती में सुलगता है, मचता है
पर कभी-कभार यह सेक जलाता है
फ़ना करता है...
पता नहीं किस रिश्ते की अंगुली पकड़ कर चल पड़ी हूँ मैं
पता नहीं किस राह हैं मेरे कदम
पता नहीं इस राह की मंजिल भी होगी कोई कि नहीं ?
दिल कहता है कि मंजिल से क्या लेना
दिमाग वरजता है– निश्चित मंजिल के बिना
रिश्ते या कदमों का
मूल्य ही नहीं कोई...
दिल की दिमाग के आगे कुछ नहीं चलती
जीतता है दिल और हारता भी...
कौन-सा रिश्ता है वह जो पाल रही हूँ मैं ?
कौन-सा पड़ाव है वह जिसकी तलाश में हूँ ?
कौन-से हैं दो पैर जो हमराह हैं मेरे ?
किसकी हैं वो दो आँखें जो मेरे चेहरे पर है ?
और वही आँखें मेरी आमद की प्रतीक्षा करती हैं
वो कान जो मेरे कदमों की आहट के लिए बेचैन है ?
रेत के घर नहीं होते रिश्ते
बारिश की बूंदों को
हथेलियों पर इकट्ठा करने का नाम भी नहीं होता रिश्ता
रिश्ता फूल के खिलने का नाम होता होगा ?
भ्रम-सा... ख़ुदी ही शायद... अहं...
सागर-सी लहर जैसे होते होंगे रिश्ते... शायद नहीं...
ढलते सायों के संग ढल भी जाते होंगे रिश्ते...
नहीं जानती
क्या हैं रिश्ते ? कैसे हैं ?
यह रिश्ता जो पास बैठा है मेरे
मेरे दिल के करीब
नहीं सच तो यह है– मेरे दिल के अंदर
मेरी हस्ती को लपेटे बैठा है
मेरी तमाम ज़िंदगी के हासिल जैसा
क्या है यह ?
कौन-सा उड़ता पंछी या तेज बहती हवा
पल्लू में बांध रही हूँ जिसको ?
किसका दामन है यह
जिसे कसकर पकड़ रही हूँ ?
खुदाया ! तौफ़ीक दे... हिम्मत और हौसला भी...
पार हो जाऊँ इस भंवर में से
पर शायद यह भंवर हो ही न
पानी की लहर भर हो
गुजर जाएगी सिर के ऊपर से
सिर्फ़ भिगोकर ही...
आज का दिन
आज की धूप
आज की आमद
ठंडी शीत फुहार हो...
और यह आज शायद सहज ही कल में बदल जाए
और यह कल जे़हन की चीस बन जाए
यह माथे का सूरज छाती की जलन हो जाए
यह दिल का चंद्रमा अंगारा बन
सब कुछ फूंक दे...
मैं आज हूँ
जो कल भी थी
और कल भी होऊँगी
कल– काला, कड़वा, कुरूप रहा
आज– आजाद परिंदे की तरह उड़ाने भरता...
आज– वर्तमान मेरा
आज– मेरी जुस्तजू, मेरी सुंदरता,
मेरा रूप,
मेरा राह
रौनक मेरी
जिसके पैरों पर उड़ रही हूँ...
यह मेरी जन्नत
मेरा ज़ौक और शौक
उंमगें मेरी
अनंत राहों का उजाला...
भला पूछो, कहाँ उड़ चली हूँ मैं ?
किस अनुपम दुनिया की ओर ले जा रही है यह उड़ान ?
मेरा भ्रम या सच...
सच ! जो सदा सपना हुआ
सच, जो शाश्वत रहा ही नहीं
और फिर कौन-सा सच है यह
जिसे अपने केशों में सजा रही हूँ ?
कौन-सा सच है जिसकी टिकली
सजी मैं मेरे माथे पर ?
कहीं भ्रमजाल ही तो नहीं... छलावा ?... संकट ?...सज़ा ?
इतने सवालिया निशान ????
शायद, इसलिए कि भरोसा तिड़क गया हो... टूट गया हो...
कयास करें तो विश्वास छलावे नहीं होते
पर कई बार भ्रम विश्वास लगता है
और जब टूटता है, उफ !
कोई पूछे– क्यों सह रही हूँ यह संताप ?
किस रिश्ते का कर रही हूँ बार-बार जाप ?
या किस रिश्ते की बुनियाद पर करती हूँ किंतु-परंतु ?
रिश्ता ब्रोच नहीं होता
निर्जीव वस्तु नहीं होता रिश्ता
अनिश्चितता पर आधारित नहीं होता रिश्ता
यह कोई ‘बाय-वे’ नहीं
हाई-वे होता है रिश्ता
सर्वव्यापक
आनंदमयी...
0
(कवयित्री की लंबी कविता ‘तू आवाज़ मारी है’ का आरंभिक अंश है जिसे उनके कविता संग्रह ‘तू आवाज़ मारी है’ से लिया गया है)
कवयित्री संपर्क :
3934, सेक्टर–22–डी
चंडीगढ़
दूरभाष :09876423934
5 टिप्पणियां:
Priy Subhash jee,
Rishta par likhee manjeet indra kee kavita maine
padhee hai.Bahut achhi hai.Aapka anuvaad bhee
khoob hai.Man ko chhoo lene walee aise kavitaayen
chhaapte rahen.
Manjeet ko achhee kavita ke liye meri
badhaaee zaroor den
Pran Sharma
प्रिय सुभाष,
मंजीत इंदिरा की कविताओं का तुमने बहुत सुन्दर अनुवाद किया है. पंजाबी अनुवाद में तुम्हारा जवाब नहीं है. तुमसे यदि ईर्ष्या करूं तो आपत्ति न होगी.
चन्देल
Anuwaad saahitya kee bahut Zaroorat hai.
dhanyawaad is kaarya kay liyay
Vishwa Mohan Tiwari
onevishwa@gmail.com
पाश-वाकई अन्तस की अनुभूतियों का चितेरा कवि है,जी पाश का पार्थिव -शरीर ही गया है पाश-कवि तो सदा रहेगा,जब तक कविता रहेगी-पाश रहेगा
श्यामस्खा ‘श्याम’
complete poetry of Paash in Punjabi, Hindi and English and much more about his life and times is available at my blog http://paash.wordpress.com
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