रविवार, 9 सितंबर 2007

अनूदित साहित्य

अनूदित साहित्य” के अंतर्गत इसबार पंजाबी के जाने-माने लघुकथाकार और पंजाबी की त्रैमासिक पत्रिका “मिनी” के संपादक डा0 श्यामसुंदर दीप्ती की दो चर्चित लघुकथाएं-

हद

एक अदालत में मुकदमा पेश हुआ।
“साहब, यह पाकिस्तानी है। हमारे देश में हद पार करता हुआ पकड़ा गया है।"
“तू इस बारे में कुछ कहना चाहता है?” मजिस्ट्रेट ने पूछा।
“मैंने क्या कहना है, सरकार। मैं तो खेतों में पानी लगा कर बैठा था, ‘हीर’ के सुरीले बोल मेरे कानों में पड़े, मैं उन्हीं बोलों को सुनता इधर चला आया। मुझे तो कोई हद नज़र नहीं आयी।"
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मूर्ति

वह बाज़ार से गुजर रहा था। एक फुटपाथ पर पड़ी मूर्तियाँ देखकर वह रुक गया।
फुटपाथ पर पड़ी खूबसूरत मूर्तियाँ! बढ़िया तराशी हुई! रंगों के सुमेल में मूर्तिकला का अनुपम नमूना थीं वे!

वह मूर्तिकला का कद्रदान था। उसने सोचा कि एक मूर्ति ले जाए। उसे गौर से मूर्तियाँ देखता पाकर मूर्तिवाले ने कहा- “ले जाओ साहब, भगवान कृष्ण की मूर्ति है।"

“भगवान कृष्ण?” उसके मुँह से यह एक प्रश्न की तरह निकला।
“हाँ, साहब, भगवान कृष्ण! आप तो हिन्दू हैं, आप तो जानते ही होंगे।"
वह खड़े-खड़े सोचने लगा कि यह मूर्ति तो आदमी को हिन्दू बनाती है।
“क्या सोच रहे हैं साहब? यह मूर्ति तो हर हिन्दू के घर होती है। ज्यादा मंहगी नहीं है।” मूर्तिवाला बोला।

“नहीं चाहिए…” कहकर वह वहाँ से चला गया।
0(हिन्दी अनुवाद : सुभाष नीरव)